कैनबरा में सोमवार को उस समय एक बड़ा राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया जब ऑस्ट्रेलिया की संसद में किंग चार्ल्स के स्वागत समारोह के दौरान आदिवासी अधिकारों की प्रखर समर्थक और स्वतंत्र सीनेटर लिडिया थॉर्प ने किंग चार्ल्स के खिलाफ जोरदार विरोध किया। उन्होंने किंग चार्ल्स पर आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार और उनकी जमीनों को छीनने के आरोप लगाए। उनके इस विरोध ने पूरे देश और दुनिया का ध्यान आकर्षित किया और उनके इस बयान की व्यापक चर्चा होने लगी।
किंग चार्ल्स का ऑस्ट्रेलिया दौरा
किंग चार्ल्स, जो 2022 में ब्रिटिश सिंहासन पर बैठे थे, इस समय ऑस्ट्रेलिया और समोआ की नौ दिवसीय यात्रा पर हैं। यह यात्रा उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह राजा बनने के बाद उनकी पहली ऑस्ट्रेलिया यात्रा है। इस यात्रा का उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच संबंधों को और मजबूत करना है, लेकिन यह दौरा विवादों से अछूता नहीं रह सका।
ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश राजशाही को लेकर पहले से ही कई सवाल उठते रहे हैं, खासकर उन आदिवासी समुदायों के बीच, जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद से प्रभावित हुए हैं। किंग चार्ल्स के इस दौरे ने उस बहस को और अधिक उग्र बना दिया है, जो ऑस्ट्रेलिया के भविष्य में गणराज्य बनने के बारे में हो रही है।
संसद में लिडिया थॉर्प का विरोध
कैनबरा में संसद भवन में आयोजित इस विशेष स्वागत समारोह में किंग चार्ल्स ने अपने संबोधन के दौरान ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के ऐतिहासिक संबंधों की बात की। लेकिन जैसे ही उनका भाषण समाप्त हुआ, लिडिया थॉर्प अचानक खड़ी हो गईं और ऊंची आवाज में विरोध के नारे लगाने लगीं।
थॉर्प ने चिल्लाते हुए कहा, “यह आपकी जमीन नहीं है, आप मेरे राजा नहीं हैं!” उनके इस विरोध ने संसद में बैठे लोगों को चौंका दिया। उन्होंने ब्रिटिश राजशाही पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने आदिवासियों की जमीन छीनी और उनके खिलाफ नरसंहार किया। उन्होंने यह भी कहा, “हमें हमारी जमीन वापस दो। हमारे लोग, हमारे बच्चे, हमारी हड्डियां, हमारे सिर, सब कुछ जो तुमने हमसे चुराया, वापस करो।”
इस दौरान सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें संसद से बाहर निकालने की कोशिश की, लेकिन वह लगातार विरोध करती रहीं। उनका यह विरोध केवल एक मिनट का था, लेकिन इसने पूरे देश और सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रभाव डाला। उनका यह वीडियो वायरल हो गया, और लोग इस पर अपनी प्रतिक्रियाएं देने लगे।
लिडिया थॉर्प कौन हैं?
लिडिया थॉर्प का जन्म 1973 में विक्टोरिया के कार्लटन में हुआ। वह गुनाई, गुंडितजमारा और दजब वुरुंग आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। वह आदिवासी अधिकारों की मुखर समर्थक हैं और ऑस्ट्रेलिया में उनके समुदाय के लिए भूमि और अन्य अधिकारों की बहाली की मांग करती रही हैं।
थॉर्प का राजनीतिक सफर 2017 में शुरू हुआ, जब वह विक्टोरियन विधानसभा में नॉर्थकोट सीट पर चुनी गईं। बाद में वह संघीय सीनेट के लिए चुनी गईं, जहां वह विक्टोरिया का प्रतिनिधित्व करने वाली पहली आदिवासी महिला बनीं। 2022 में ग्रीन्स पार्टी के उपनेता के रूप में उन्हें चुना गया, लेकिन 2023 में उन्होंने पार्टी छोड़ दी। उनके पार्टी छोड़ने का कारण ग्रीन्स पार्टी द्वारा संसद में एक आदिवासी सलाहकार समूह के समर्थन का विरोध था, जिसे उन्होंने आदिवासी समुदायों के हित में नहीं माना।
थॉर्प का किंग चार्ल्स के खिलाफ विरोध क्यों?
लिडिया थॉर्प लंबे समय से ब्रिटिश राजशाही की आलोचक रही हैं। उन्होंने कई मौकों पर कहा है कि ब्रिटिश राजशाही ने ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी लोगों के साथ अन्याय किया है और उनके अधिकारों को कुचलने का काम किया है।
थॉर्प ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “संप्रभु होने के लिए आपको इस जमीन का होना चाहिए। किंग चार्ल्स इस भूमि के नहीं हैं। उन्होंने हमारे लोगों और हमारी जमीन से संपत्ति चुराई है, और अब उन्हें यह सब वापस करना चाहिए।”
थॉर्प के अनुसार, ब्रिटिश साम्राज्य के तहत आदिवासी समुदायों को उनकी जमीन से बेदखल किया गया, उनके सांस्कृतिक अधिकार छीने गए और उनके लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। उनके अनुसार, किंग चार्ल्स को आदिवासी समुदायों के साथ एक शांति संधि पर चर्चा करनी चाहिए और उनकी जमीनों की वापसी के मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
लिडिया थॉर्प का यह विरोध उस समय सामने आया है जब ऑस्ट्रेलिया में ब्रिटिश राजशाही के भविष्य को लेकर एक नई बहस चल रही है। कई ऑस्ट्रेलियाई, विशेषकर आदिवासी समुदायों के लोग, ब्रिटिश राजशाही से अलग होकर ऑस्ट्रेलिया को एक स्वतंत्र गणराज्य के रूप में देखना चाहते हैं।
थॉर्प के इस विरोध ने देश में राजशाही की भूमिका और आदिवासी समुदायों के अधिकारों के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है। कई लोग थॉर्प के इस साहसिक कदम की सराहना कर रहे हैं, जबकि कुछ लोग इसे एक अनावश्यक विवाद मान रहे हैं। फिर भी, इस विरोध ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऑस्ट्रेलिया में राजशाही का भविष्य एक गंभीर बहस का विषय है, और आने वाले समय में इस पर और चर्चाएं होने की संभावना है।
लिडिया थॉर्प का किंग चार्ल्स के खिलाफ विरोध केवल एक राजनीतिक स्टंट नहीं था, बल्कि यह आदिवासी अधिकारों की लड़ाई का एक प्रतीक था। थॉर्प ने ऑस्ट्रेलियाई संसद में अपनी आवाज उठाकर यह साबित कर दिया कि आदिवासी समुदायों के मुद्दे अब और अनदेखे नहीं किए जा सकते। उनके इस कदम ने यह संदेश दिया है कि ब्रिटिश राजशाही की भूमिका और इतिहास पर गंभीर सवाल उठाने का समय आ गया है।