दोस्तों कुछ दिनों पहले इंटरनेट पर एक वीडियो काफी वायरल हुई थी जिसमें रतन टाटा एक नौजवान लड़के के साथ अपना 84 बर्थडे सेलिब्रेट करते हुए दिखाई दिए थे की इस वीडियो में इन दोनों के अलावा और कोई भी नहीं था वीडियो में रतन टाटा एक छोटे से कप केक पर लगी कैंडल्स को फूंक मारकर बुझाते हैं और फिर वह लड़का उन्हें अपने हाथों से के खिलाता है और जिस तरह इस लड़के ने रतन टाटा के कंधे पर हाथ रखा था उसे देखकर ज्यादातर लोगों को यह लगा कि शायद यह को उनका करीबी रिश्तेदार होगा यहां तक कि बहुत से लोगों ने तो इस लड़के को रतन टाटा का वारिस भी घोषित कर दिया
लेकिन वह तो असल में लोगों के द्वारा किए जाने वाले इनमें से किसी भी दावे में सच्चाई नहीं थी क्योंकि सच यह है इस वीडियो में नजर आने वाले इस लड़के का नाम शांतनु नायडू है जो कि महाराष्ट्र के पुणे शहर का रहने वाला है और रतन टाटा के साथ में उसका कोई भी पारिवारिक संबंध नहीं है शांतनु नायडू की उम्र 28 साल है और उसने पुणे यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने के साथी अमेरिका की कार्डिनल यूनिवर्सिटी से एमबीए किया हुआ है और इस समय वह टाटा ट्रस्ट कंपनी के चेयरमैन ऑफिस में डेप्युटी जनरल मैनेजर के पद पर जॉब कर रहा है यानी कि दूसरे शब्दों में कहें तो
वह रतन टाटा का assistant है शांतनु से पहले भी उसके परिवार की चार पीढ़ियां टाटा कंपनी के लिए काम कर चुके हैं वैसे इस जॉब के अलावा शांतरूप कुत्तों के लिए रात के अंधेरे में चमकने वाले डॉक्टर्स यानि कि पट्टे बनाए जाते हैं इन फैक्ट अपने इसे स्टार्टअप की वजह से ही शांतनु ने इतनी पॉपुलरिटी हासिल की है और यह Tata की वजह है जिससे कि रतन टाटा का वह इतना ज्यादा करीबी बन पाया है
तो चलिए दोस्तों अब हम रतन टाटा और शांति दोनों के मिलने की इस इंटरेस्टिंग स्टोरी को शुरुआत से जानते हैं दरअसल अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान शांतनु ने सबसे पहले टाटा टेक्नोलॉजिज कंपनी को एक इंजीनियरिंग इंटरनेट के तौर पर ज्वाइन किया था जहां उसने एक साल तक की इंटर्नशिप की और उसके बाद उसे मौका मिला तो उसने इंटरेस्ट कंपनी को एक बिजनेस स्ट्रेटजी इंटर्न के तौर पर जॉइंट कर लिया जहां पर वह डेप्युटी जनरल मैनेजर के पद को हासिल करने से पहले लगभग 5 साल तक यह इंटर्नशिप करता रहा
एक इंटरव्यू में शांत उन्होंने बताया एक दिन रात के समय जब वह काम से लौट कर अपने घर जा रहा था तो फिर उसकी आंखों के सामने ही रोड पर एक कुत्ते का एक्सीडेंट हो गया बॉस कुत्ते को सड़क से हटाने के लिए आगे बढ़ रहा था तभी पीछे से आ रही एक दूसरे गाड़ी ने उसे कुचल दिया जिससे कि उस कुत्ते की उसी समय ही मौत हो गई अब तो के शांतनु एक डॉग लवर है तो ऐसे में उसे यह घटना अपनी आंखों से देखकर बहुत ज्यादा दुख हुआ और इसके बारे में सोच-सोचकर वह काफी ज्यादा परेशान रहने लगा और दोस्तों आखिरकार उसने यह तय किया कि वह स्ट्रीट डॉग्स को सड़क दुर्घटनाओं से बचाने के लिए जरूर कुछ करेगा और फिर काफी सोच-विचार करने के बाद से उसके मन में कुतों के लिए स्पेशल किस्म का चमकने वाला डिक्टेक्टर बनाने का आइडिया आया
इसके बाद से उसने कुत्तों के लिए ऐसे पट्टे बनाएं जो कि अंधेरे में चमकते थे ताकि कोई अगर कुत्ता रात में सड़क से होकर गुजर रहा हो तो फिर गाड़ियों को वह दूर से ही नजर आ जाए और इस तरह की दर्दनाक दुर्घटना होने बंद हो जाए शुरुआत में शांतनु ने जैसे-तैसे फंड जमा करके 500 डॉक्टर्स बनाए थे और अपने दोस्तों के साथ मिलकर उन्हें सड़कों पर रहने वाले स्ट्रीट डॉग्स के गले में पहना दिया शांतनु का यह कार्य वाकई में काफी कारगर निकला और इसकी वजह से सड़क पर कुत्तों के एक्सीडेंट होने की घटनाएंसच में कम हो गई हालांकि दोस्तों शांतनु के इस इनिशिएटिव को असल पहचान तब मिली जब टाटा कंपनी ने इसका जिक्र अपने न्यूज़लेटर में किया जिसके चलते रतन टाटा ने भी उसके काम को सराहा
इस न्यूज लेटर का हिस्सा बनते ही इनकी की डिमांड काफी तेज बढ़ने लगे लेकिन फंड की कमी के चलते शांतनु इस डिमांड को पूरा नहीं कर पा रहा था और ऐसे में उसके पिता ने उसे सजेशन दिया कि वह अपने स्टाफ को फण्ड की कमी के बारे में रतन टाटा को एक पर जरूर लिखिए क्योंकि रतन टाटा भी कुत्तों को बहुत ज्यादा पसंद करते हैं पहले तो शांतनु को यह लेटर लिखने में थोड़ी सी हेजिटेशन हुई लेकिन पिता के इंटरेस्ट करने पर उसने अपने हाथों से एक लेटर लिखकर सीधा रतन टाटा को भेज दिया और दोस्तों लेटर लिखने के दो महीने बाद शांतनु को जवाब के रूप में रतन टाटा का साइन किया हुआ लेटर मिला जिसमें कि उन्होंने लिखा कि वह शांतनु नायडू से मिलना चाहते हैं अब एक पल के लिए तो शांतनु को यकीन ही नहीं हुआ कि रतन टाटा ने उसको मिलने के लिए बुलाया है हालांकि इसके बाद से वह रतन टाटा से मिलने के लिए उनके मुंबई ऑफिस पर गया और इस मुलाकात के दौरान उसने अपने स्टार्टअप के बारे में रतन टाटा को विस्तार से बताया
रतन टाटा कुत्तों को बचाने के प्रति सांत्वना के डेडिकेशन व कमिटमेंट को देखकर उसने काफी इंप्रेस हुए और वह शांतनु के इस अच्छे काम में फंडिंग के लिए राजी हो गए और दोस्तों इस तरह से रतन टाटा की हेल्प से शांतनु के स्टाफ में फण्ड की प्रॉब्लम पूरी तरह से खत्म हो गई रतन टाटा से मीटिंग करने के कुछ समय में शांतनु एमबीए के लिए अमेरिका चला गया लेकिन जाने से पहले उसने वादा किया कि वापस आने के बाद से वो टाटा ट्रस्ट के लिए काम करते हुए ही अपना पूरा जीवन समर्पित करेगा इसके बाद से 2018 में जब वह एमबीए करके भारत वापस लौटा तो रतन टाटा ने उसे फोन करके बोला कि मुझे मेरे ऑफिस में काफी सारा काम करना है क्या तुम मेरे assistant बनना चाहोगे अब दोस्तों डाइरैक्टली रतन टाटा से जॉब ऑफर मिलने पर शांतनु की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं रहा और खुशी के कारण एक पल के लिए तो उसके साथ रुक गई थी उसने दो-तीन गहरी सांस लेकर उस जॉब ऑफर को तुरंत उसी पल स्वीकार कर लिया और इस तरह से सा 2018 से ही और टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन ऑफिस में काम कर रहा है और इन तीन सालों में रतन टाटा और शांति दोनों एक दूसरे के काफी Close हो गए हैं जहां इनके बीच का रिश्ता एक बॉस और एम्पलाई से कहीं ज्यादा दोस्ती का बन चुका है और दोस्तों रतन टाटा के पर्सनल इनवेस्टमेंट के मामले में शांतनु नहीं यह बताते हैं कि किस तब उन इनवेस्ट करना चाहिए और किस में नहीं रतन टाटा स्टार्टअप्स को लेकर शांतनु के आइडियाज को काफी पसंद करते हैं यानी कि हम कह सकते हैं कि शांतनु ने अपने काम से रतन टाटा के दिल को पूरी तरह से जीत लिया है और यही कारण है कि वो उनकी जिंदगी के अंतिम समय तक अहम हिस्सा बन चुका था।