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हिंदी व्याकरण: कारक और उसके भेद

परिभाषा

कारक वे शब्द होते हैं जो संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया या वाक्य के अन्य शब्दों के साथ संबंध बताते हैं। ये संबंध को स्पष्ट करने के लिए विभक्तियों (कारक चिह्नों) का प्रयोग करते हैं।
उदाहरण: राम ने खाना खाया। (यहाँ ‘ने’ कारक चिह्न है)

कारक के प्रकार

हिंदी व्याकरण में कारक मुख्य रूप से आठ प्रकार के होते हैं:

  • कर्ता कारक (Nominative Case)
  • कर्म कारक (Accusative Case)
  • करण कारक (Instrumental Case)
  • संप्रदान कारक (Dative Case)
  • अपादान कारक (Ablative Case)
  • संबंध कारक (Possessive Case)
  • अधिकरण कारक (Locative Case)
  • संबोधन कारक (Vocative Case)

प्रत्येक कारक का विस्तृत विवरण

1. कर्ता कारक

परिभाषा: वाक्य में जो शब्द क्रिया को करने वाले का बोध कराता है, उसे कर्ता कारक कहते हैं।
चिह्न: ने (कभी-कभी चिह्न लुप्त भी रहता है)
उदाहरण:

  • राम ने खाना खाया।
  • लड़का खेलता है। (यहाँ ‘ने’ चिह्न लुप्त है)

2. कर्म कारक

परिभाषा: जिस पर क्रिया का फल पड़ता है, उसे कर्म कारक कहते हैं।
चिह्न: को (कभी-कभी चिह्न लुप्त भी रहता है)
उदाहरण:

  • राम ने रावण को मारा।
  • मैंने किताब पढ़ी। (यहाँ ‘को’ चिह्न लुप्त है)

3. करण कारक

परिभाषा: जिस साधन या माध्यम से क्रिया की जाती है, उसे करण कारक कहते हैं।
चिह्न: से, के द्वारा
उदाहरण:

  • वह कलम से लिखता है।
  • मेरे द्वारा पत्र लिखा गया।

4. संप्रदान कारक

परिभाषा: जिसके लिए कोई क्रिया की जाती है या जिसे कुछ दिया जाता है, उसे संप्रदान कारक कहते हैं।
चिह्न: को, के लिए
उदाहरण:

  • पिताजी ने बच्चों को खिलौने दिए।
  • मैंने मोहन के लिए खाना बनाया।

5. अपादान कारक

परिभाषा: जिससे किसी वस्तु का अलग होना, डरना, तुलना करना, सीखना आदि का भाव प्रकट हो, उसे अपादान कारक कहते हैं।
चिह्न: से (अलग होने के अर्थ में)
उदाहरण:

  • पेड़ से पत्ता गिरा। (अलग होना)
  • वह शेर से डरता है। (डरना)
  • मोहन सोहन से लंबा है। (तुलना)

6. संबंध कारक

परिभाषा: जो संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के अन्य संज्ञा या सर्वनाम से संबंध बताता है, उसे संबंध कारक कहते हैं।
चिह्न: का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी
उदाहरण:

  • यह राम की किताब है।
  • मेरा घर पास है।
  • अपना काम करो।

7. अधिकरण कारक

परिभाषा: जो क्रिया के आधार (स्थान, समय, अवसर) का बोध कराता है, उसे अधिकरण कारक कहते हैं।
चिह्न: में, पर
उदाहरण:

  • पुस्तक मेज पर है। (स्थान)
  • वह सुबह में आता है। (समय)
  • चिड़िया पेड़ पर बैठी है। (स्थान)

8. संबोधन कारक

परिभाषा: जिससे किसी को पुकारा या संबोधित किया जाए, उसे संबोधन कारक कहते हैं।
चिह्न: हे, अरे, ओ (और विस्मयादिबोधक चिह्न !)
उदाहरण:

  • हे भगवान! रक्षा करो।
  • अरे मोहन! कहाँ जा रहे हो?

कारक की पहचान के तरीके

वाक्य में कारक की पहचान करने के लिए क्रिया से प्रश्न पूछना सबसे प्रभावी तरीका है:

  • कौन? / किसने? → कर्ता कारक
  • क्या? / किसको? → कर्म कारक
  • किससे? / किसके द्वारा? → करण कारक
  • किसके लिए? / किसको? (देने के अर्थ में) → संप्रदान कारक
  • किससे? (अलग होने के अर्थ में) → अपादान कारक
  • किसका? / किसके? / किसकी? → संबंध कारक
  • कहाँ? / किस पर? / किस में? → अधिकरण कारक
  • किसे पुकारा जा रहा है? → संबोधन कारक

परीक्षा में भ्रमित करने वाले कारक संबंधी बिंदु

कुछ कारक चिह्नों का प्रयोग एक से अधिक कारकों में होता है, जिससे भ्रम उत्पन्न हो सकता है। ऐसे बिंदुओं पर विशेष ध्यान दें:

  • ‘ने’ चिह्न का प्रयोग:
    यह केवल कर्ता कारक का चिह्न है, लेकिन इसका प्रयोग केवल सकर्मक क्रियाओं के भूतकाल में होता है। अकर्मक क्रियाओं के साथ या वर्तमान/भविष्य काल की सकर्मक क्रियाओं के साथ ‘ने’ का प्रयोग नहीं होता।
    उदाहरण:
    • राम ने खाना खाया। (कर्ता कारक)
    • राम खाना खाता है। (कर्ता कारक, ‘ने’ लुप्त)
    • बच्चा रोता है। (अकर्मक क्रिया, ‘ने’ का प्रयोग नहीं)
  • ‘को’ चिह्न का प्रयोग:
    यह कर्म कारक और संप्रदान कारक दोनों में प्रयुक्त होता है।
    अंतर: यदि ‘को’ का अर्थ ‘के लिए’ हो या कुछ देने का भाव हो, तो वह संप्रदान कारक होगा। यदि क्रिया का फल सीधे संज्ञा पर पड़े, तो वह कर्म कारक होगा।
    उदाहरण:
    • पुलिस ने चोर को पकड़ा। (कर्म कारक – पकड़ने का फल चोर पर)
    • पिताजी ने भिखारी को कपड़े दिए। (संप्रदान कारक – देने का भाव)
  • ‘से’ चिह्न का प्रयोग:
    यह करण कारक और अपादान कारक दोनों में प्रयुक्त होता है।
    अंतर: यदि ‘से’ का अर्थ ‘साधन’ या ‘माध्यम’ हो, तो वह करण कारक होगा। यदि ‘से’ का अर्थ ‘अलग होना’, ‘डरना’, ‘तुलना करना’ आदि हो, तो वह अपादान कारक होगा।
    उदाहरण:
    • बच्चा गेंद से खेलता है। (करण कारक – गेंद साधन है)
    • गंगा हिमालय से निकलती है। (अपादान कारक – अलग होना)
    • वह साँप से डरता है। (अपादान कारक – डरना)
  • संबंध कारक के सर्वनामिक रूप:
    सर्वनामों के साथ ‘का, के, की’ के स्थान पर ‘रा, रे, री’ (मेरा, मेरे, मेरी) या ‘ना, ने, नी’ (अपना, अपने, अपनी) का प्रयोग होता है।
    उदाहरण: यह मेरा घर है। (संबंध कारक)
  • अधिकरण कारक में सूक्ष्म अंतर:
    ‘में’ और ‘पर’ का प्रयोग स्थान और समय दोनों के लिए होता है, लेकिन संदर्भ महत्वपूर्ण है।
    उदाहरण:
    • कमरे में बच्चे हैं। (स्थान)
    • सुबह में बारिश हुई। (समय)
    • छत पर चिड़िया है। (स्थान)
  • कुछ क्रियाओं के साथ निश्चित कारक:
    कुछ क्रियाएँ अपने साथ निश्चित कारक चिह्न लेती हैं, भले ही सामान्य नियम कुछ और सुझाएँ।
    उदाहरण: ‘डरना’ क्रिया के साथ हमेशा अपादान कारक (‘से’) का प्रयोग होता है। ‘देना’ क्रिया के साथ संप्रदान कारक (‘को’/’के लिए’) का प्रयोग होता है।

निष्कर्ष

कारक हिंदी व्याकरण की नींव हैं, जो वाक्य में शब्दों के आपसी संबंध को स्पष्ट करते हैं। इनके नियमों और चिह्नों का सही ज्ञान भाषा की शुद्धता और अर्थ की स्पष्टता के लिए अत्यंत आवश्यक है। विशेष रूप से, समान चिह्नों के विभिन्न प्रयोगों और नियमों के अपवादों पर ध्यान देना परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के लिए महत्वपूर्ण है।

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