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भारतीय संविधान में संसदीय प्रणाली (Parliamentary System)

संसदीय प्रणाली (Parliamentary System), जिसे वेस्टमिंस्टर मॉडल भी कहा जाता है, सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें कार्यपालिका अपनी लोकतांत्रिक वैधता विधायिका (संसद) से प्राप्त करती है और उसके प्रति जवाबदेह होती है। भारत ने ब्रिटिश मॉडल पर आधारित संसदीय प्रणाली को अपनाया है, जहाँ राष्ट्रपति नाममात्र का प्रमुख होता है और प्रधान मंत्री वास्तविक कार्यकारी प्रमुख होता है।

1. संसदीय प्रणाली की विशेषताएँ (Features of Parliamentary System)

संसदीय प्रणाली की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इसे अध्यक्षीय प्रणाली से अलग करती हैं।

  • नाममात्र और वास्तविक कार्यपालिका:
    • नाममात्र कार्यपालिका (Nominal Executive): राज्य का प्रमुख (भारत में राष्ट्रपति) केवल नाममात्र का कार्यकारी होता है। वह संवैधानिक प्रमुख होता है और उसकी शक्तियाँ औपचारिक होती हैं।
    • वास्तविक कार्यपालिका (Real Executive): सरकार का प्रमुख (भारत में प्रधान मंत्री) वास्तविक कार्यकारी होता है और उसके पास वास्तविक शक्तियाँ होती हैं।
  • विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य:
    • कार्यपालिका के सदस्य विधायिका (संसद) के भी सदस्य होते हैं।
    • सरकार का गठन विधायिका के बहुमत वाले दल से होता है।
  • सामूहिक उत्तरदायित्व:
    • मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) सामूहिक रूप से लोकसभा (निचले सदन) के प्रति उत्तरदायी होती है।
    • इसका अर्थ है कि यदि लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है।
  • दोहरी सदस्यता: मंत्री विधायिका और कार्यपालिका दोनों के सदस्य होते हैं।
  • प्रधान मंत्री का नेतृत्व: प्रधान मंत्री सरकार का प्रमुख होता है और मंत्रिपरिषद का नेतृत्व करता है। वह सरकार की नीतियों और निर्णयों में केंद्रीय भूमिका निभाता है।
  • निचले सदन का विघटन: प्रधान मंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा निचले सदन (लोकसभा) को उसके कार्यकाल से पहले भंग किया जा सकता है।
  • गोपनीयता: मंत्री अपने निर्णयों और कार्यवाही के बारे में गोपनीयता बनाए रखते हैं, और वे ‘गोपनीयता की शपथ’ लेते हैं।

2. संसदीय प्रणाली के गुण (Merits of Parliamentary System)

संसदीय प्रणाली के कई फायदे हैं जो इसे कुछ देशों के लिए एक पसंदीदा विकल्प बनाते हैं।

  • विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य: यह विधायिका और कार्यपालिका के बीच संघर्ष को रोकता है, जिससे सरकार सुचारू रूप से कार्य कर पाती है।
  • उत्तरदायी सरकार: कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है, जिससे सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित होती है। संसद विभिन्न उपकरणों (जैसे प्रश्नकाल, अविश्वास प्रस्ताव) के माध्यम से सरकार पर नियंत्रण रखती है।
  • निरंकुशता पर रोक: सामूहिक उत्तरदायित्व और अविश्वास प्रस्ताव की संभावना कार्यकारी की निरंकुशता पर रोक लगाती है।
  • वैकल्पिक सरकार की उपलब्धता: यदि सत्तारूढ़ दल बहुमत खो देता है, तो एक वैकल्पिक सरकार आसानी से बनाई जा सकती है, जिससे राजनीतिक अस्थिरता कम होती है।
  • प्रतिनिधित्व: यह विभिन्न समूहों और क्षेत्रों को सरकार में प्रतिनिधित्व प्रदान कर सकती है।
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  • विभिन्न दृष्टिकोणों का समावेश: कैबिनेट में विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों का समावेश होता है, जिससे बेहतर निर्णय लिए जा सकते हैं।
  • 3. संसदीय प्रणाली के दोष (Demerits of Parliamentary System)

    संसदीय प्रणाली की कुछ सीमाएँ भी हैं जो इसकी कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकती हैं।

    • अस्थिर सरकार: यदि सत्तारूढ़ दल के पास स्पष्ट बहुमत नहीं है या गठबंधन सरकार है, तो सरकार अस्थिर हो सकती है और बार-बार गिर सकती है।
    • नीतियों में निरंतरता का अभाव: सरकार के बार-बार बदलने से नीतियों में निरंतरता का अभाव हो सकता है, जिससे दीर्घकालिक योजनाएँ प्रभावित हो सकती हैं।
    • शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन: कार्यपालिका और विधायिका के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत कमजोर हो जाता है।
    • मंत्रिमंडल की निरंकुशता: यदि सत्तारूढ़ दल के पास संसद में भारी बहुमत है, तो मंत्रिमंडल निरंकुश हो सकता है और विधायिका पर हावी हो सकता है।
    • अयोग्य व्यक्तियों का शासन: मंत्री बनने के लिए विधायिका का सदस्य होना आवश्यक है, भले ही वह व्यक्ति किसी विशेष विभाग के लिए योग्य न हो।
    • दल-बदल की समस्या: राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा देती है।
    • विपक्ष की भूमिका का कमजोर होना: यदि विपक्ष मजबूत नहीं है, तो सरकार की जवाबदेही कम हो सकती है।

    4. भारत में संसदीय प्रणाली (Parliamentary System in India)

    भारत ने ब्रिटिश मॉडल पर आधारित संसदीय प्रणाली को अपनाया है, जिसमें कुछ भारतीय विशिष्टताएँ भी हैं।

    • ब्रिटिश मॉडल से प्रेरणा: भारत ने ब्रिटिश संसदीय प्रणाली को अपनाया है, लेकिन यह ब्रिटिश प्रणाली की कार्बन कॉपी नहीं है।
    • गणतंत्रात्मक स्वरूप: भारत में राज्य का प्रमुख (राष्ट्रपति) निर्वाचित होता है, जबकि ब्रिटेन में यह वंशानुगत होता है।
    • लिखित संविधान: भारत का एक लिखित संविधान है जो सरकार के अंगों की शक्तियों और कार्यों को परिभाषित करता है।
    • संघीय ढांचा: भारत में संसदीय प्रणाली एक संघीय ढांचे के भीतर कार्य करती है, जहाँ केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन होता है।
    • न्यायिक समीक्षा: भारत में स्वतंत्र न्यायपालिका और न्यायिक समीक्षा की शक्ति है, जो ब्रिटिश प्रणाली में नहीं है।
    • संसदीय संप्रभुता का अभाव: भारत में संसद सर्वोच्च नहीं है, बल्कि संविधान सर्वोच्च है।
    • अनुच्छेद 74 और 75: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 74 और 75 केंद्र में संसदीय प्रणाली से संबंधित हैं। अनुच्छेद 163 और 164 राज्यों में संसदीय प्रणाली से संबंधित हैं।

    5. निष्कर्ष (Conclusion)

    संसदीय प्रणाली भारत में सरकार का एक महत्वपूर्ण रूप है, जो विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य और सामूहिक उत्तरदायित्व पर आधारित है। यद्यपि इसमें अस्थिरता और शक्तियों के पृथक्करण के उल्लंघन जैसे कुछ दोष हैं, इसकी उत्तरदायित्व, निरंकुशता पर रोक और वैकल्पिक सरकार की उपलब्धता जैसे गुण इसे भारत जैसे विविधतापूर्ण और लोकतांत्रिक देश के लिए उपयुक्त बनाते हैं। भारत ने ब्रिटिश मॉडल से प्रेरणा लेते हुए अपनी स्वयं की विशिष्टताओं के साथ एक संसदीय प्रणाली विकसित की है, जो देश के लोकतांत्रिक मूल्यों और संघीय ढांचे को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।



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