लैंगिक राजनीति (समानता, आरक्षण, सशक्तिकरण, कल्याण और सुरक्षा) (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
लैंगिक राजनीति (Gender Politics) समाज में पुरुषों और महिलाओं के बीच शक्ति संबंधों, भूमिकाओं और अधिकारों से संबंधित है। यह इस बात का अध्ययन है कि कैसे लैंगिक पहचान राजनीतिक प्रक्रियाओं, नीतियों और शासन को प्रभावित करती है और उनसे प्रभावित होती है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, लैंगिक समानता प्राप्त करना और महिलाओं को मुख्यधारा में लाना एक महत्वपूर्ण संवैधानिक और सामाजिक लक्ष्य रहा है, जिसके लिए समानता, आरक्षण, सशक्तिकरण, कल्याण और सुरक्षा जैसे विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
1. लैंगिक समानता (Gender Equality)
लैंगिक समानता का अर्थ है कि पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार, अवसर और संसाधन प्राप्त हों, और उनके साथ लिंग के आधार पर कोई भेदभाव न हो।
1.1. अवधारणा और महत्व
- परिभाषा: लैंगिक समानता का अर्थ है कि सभी लिंगों को समान रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए, और उनके अधिकारों, जिम्मेदारियों और अवसरों का लिंग के आधार पर निर्धारण नहीं किया जाना चाहिए।
- महत्व: यह एक न्यायपूर्ण, समावेशी और विकसित समाज के लिए आवश्यक है। यह मानव विकास सूचकांक (HDI) और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) का एक महत्वपूर्ण घटक है।
1.2. संवैधानिक प्रावधान
- प्रस्तावना: ‘न्याय’, ‘स्वतंत्रता’, ‘समानता’ और ‘बंधुत्व’ के आदर्शों के माध्यम से लैंगिक समानता का वादा करती है।
- मौलिक अधिकार (भाग III):
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता और कानूनों का समान संरक्षण।
- अनुच्छेद 15: धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध। अनुच्छेद 15(3) राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
- अनुच्छेद 16: सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता।
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (भाग IV):
- अनुच्छेद 39(a): पुरुषों और महिलाओं के लिए आजीविका के पर्याप्त साधनों का समान अधिकार।
- अनुच्छेद 39(d): पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान कार्य के लिए समान वेतन।
- अनुच्छेद 42: काम की न्यायसंगत और मानवीय परिस्थितियों तथा मातृत्व राहत का प्रावधान।
2. आरक्षण (Reservation)
महिलाओं को समाज के विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने और ऐतिहासिक असमानताओं को दूर करने के लिए आरक्षण एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
2.1. उद्देश्य और संवैधानिक आधार
- उद्देश्य: महिलाओं को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में समान अवसर प्रदान करना और उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाना।
- संवैधानिक आधार: अनुच्छेद 15(3) राज्य को महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।
2.2. प्रमुख क्षेत्र
- स्थानीय स्वशासन (Panchayati Raj Institutions – PRIs):
- 73वां और 74वां संविधान संशोधन अधिनियम (1992): पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं के लिए कम से कम एक-तिहाई (33%) सीटों का आरक्षण अनिवार्य करता है।
- कुछ राज्यों ने पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण भी लागू किया है (जैसे बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड)।
- संसद और राज्य विधानसभाओं में आरक्षण (महिला आरक्षण विधेयक):
- महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन अधिनियम, 2023): लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई (33%) सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है।
- यह विधेयक अभी तक लागू नहीं हुआ है और जनगणना तथा परिसीमन के बाद लागू होगा।
- शिक्षा और रोजगार: कुछ राज्यों में महिलाओं के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में भी आरक्षण का प्रावधान है।
3. सशक्तिकरण (Empowerment)
महिला सशक्तिकरण का अर्थ है महिलाओं को अपने जीवन को नियंत्रित करने और समाज में पूर्ण रूप से भाग लेने के लिए शक्ति और अधिकार प्रदान करना।
3.1. सशक्तिकरण के आयाम
- राजनीतिक सशक्तिकरण: निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना (जैसे पंचायतों में आरक्षण)।
- सामाजिक सशक्तिकरण: शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करना, सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ना।
- आर्थिक सशक्तिकरण: रोजगार के अवसर, संपत्ति के अधिकार, वित्तीय स्वतंत्रता।
- शैक्षिक सशक्तिकरण: लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा तक समान पहुंच सुनिश्चित करना।
3.2. सरकारी पहल और योजनाएँ
- बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ: लिंगानुपात में सुधार और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना: ग्रामीण महिलाओं को स्वच्छ खाना पकाने का ईंधन प्रदान करना।
- महिला शक्ति केंद्र (MSK): ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से।
- स्टैंड-अप इंडिया योजना: महिला उद्यमियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- जन धन योजना: महिलाओं का वित्तीय समावेशन।
- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके मुद्दों को उठाना।
4. कल्याण (Welfare)
महिलाओं के कल्याण का अर्थ है उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करना और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना।
4.1. प्रमुख क्षेत्र और योजनाएँ
- स्वास्थ्य और पोषण:
- जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK): गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएँ।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को वित्तीय सहायता।
- राष्ट्रीय पोषण मिशन (POSHAN Abhiyaan): कुपोषण को कम करने पर ध्यान केंद्रित।
- शिक्षा:
- सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA) में लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर।
- कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (KGBV): पिछड़े क्षेत्रों में लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय।
- आर्थिक कल्याण:
- दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM): स्वयं सहायता समूहों (SHGs) के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना।
- मनरेगा (MGNREGA) में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देना।
5. सुरक्षा (Safety and Security)
महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोकना और उनके लिए एक सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण चुनौती है।
5.1. कानूनी प्रावधान
- घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005: घरेलू हिंसा से महिलाओं को बचाता है।
- यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012: बच्चों को यौन शोषण से बचाता है।
- दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961: दहेज प्रथा को प्रतिबंधित करता है।
- कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (POSH Act): कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करता है।
- आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013: यौन अपराधों के लिए कठोर दंड का प्रावधान।
5.2. संस्थागत तंत्र और पहल
- राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW): महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनके खिलाफ अपराधों की जांच करता है।
- वन स्टॉप सेंटर (OSC): हिंसा से प्रभावित महिलाओं को एकीकृत सहायता प्रदान करना।
- महिला हेल्पलाइन (181): आपातकालीन सहायता प्रदान करना।
- निर्भया फंड: महिलाओं की सुरक्षा के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए।
- पुलिस सुधार: पुलिस को लैंगिक रूप से संवेदनशील बनाना।
5.3. चुनौतियाँ
- हिंसा की घटनाओं की कम रिपोर्टिंग।
- पितृसत्तात्मक सामाजिक मानसिकता और रूढ़ियाँ।
- कानूनी प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन में कमी।
- न्याय प्रणाली में देरी।
6. चुनौतियाँ (Challenges)
लैंगिक समानता और महिलाओं के सशक्तिकरण के मार्ग में कई चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं।
- पितृसत्तात्मक मानसिकता: समाज में गहरी जड़ें जमा चुकी पितृसत्तात्मक सोच और लैंगिक रूढ़ियाँ।
- लैंगिक असमानता: शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और संपत्ति के अधिकारों में असमानताएँ।
- महिलाओं के खिलाफ हिंसा: घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, दहेज हत्याएँ, बाल विवाह आदि।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व में कमी: संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व।
- आर्थिक असमानता: कार्यबल में महिलाओं की कम भागीदारी, समान कार्य के लिए असमान वेतन, संपत्ति के अधिकारों का अभाव।
- डिजिटल डिवाइड: डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट तक पहुंच में लैंगिक अंतर।
- सुरक्षा और न्याय प्रणाली: महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच और न्याय सुनिश्चित करने में चुनौतियाँ।
7. निष्कर्ष (Conclusion)
लैंगिक राजनीति भारत में एक गतिशील और महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसमें समानता, आरक्षण, सशक्तिकरण, कल्याण और सुरक्षा जैसे कई आयाम शामिल हैं। भारतीय संविधान लैंगिक समानता के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है, और सरकार ने महिलाओं के उत्थान के लिए विभिन्न कानूनी और नीतिगत उपाय किए हैं। पंचायतों में आरक्षण ने महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त किया है, जबकि विभिन्न कल्याणकारी और सुरक्षा योजनाएँ उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर रही हैं। हालांकि, पितृसत्तात्मक मानसिकता, हिंसा और आर्थिक असमानता जैसी चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। एक truly समावेशी और न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के लिए इन चुनौतियों का सामना करना और महिलाओं को उनके पूर्ण अधिकार और अवसर प्रदान करना आवश्यक है।