भारत का प्रमुख विश्व मुद्दों पर दृष्टिकोण: निशस्त्रीकरण, मानवाधिकार, वैश्वीकरण (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
भारत की विदेश नीति हमेशा वैश्विक शांति, सहयोग और बहुपक्षवाद के सिद्धांतों पर आधारित रही है। एक विकासशील देश और एक उभरती हुई शक्ति के रूप में, भारत ने विभिन्न विश्व मुद्दों पर एक सक्रिय और स्वतंत्र दृष्टिकोण अपनाया है, जिनमें निशस्त्रीकरण, मानवाधिकार और वैश्वीकरण प्रमुख हैं।
1. निशस्त्रीकरण (Disarmament)
भारत ने हमेशा एक सार्वभौमिक, गैर-भेदभावपूर्ण और सत्यापन योग्य निशस्त्रीकरण की वकालत की है।
1.1. भारत का दृष्टिकोण
- पूर्ण परमाणु निशस्त्रीकरण: भारत ने हमेशा वैश्विक और पूर्ण परमाणु निशस्त्रीकरण का आह्वान किया है। भारत का मानना है कि परमाणु हथियार मानवता के लिए खतरा हैं और उन्हें पूरी तरह से समाप्त किया जाना चाहिए।
- भेदभावपूर्ण संधियों का विरोध: भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) और व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) जैसी संधियों पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है, क्योंकि इन्हें भेदभावपूर्ण माना जाता है। भारत का तर्क है कि ये संधियाँ परमाणु हथियार संपन्न देशों को उनके हथियार बनाए रखने की अनुमति देती हैं, जबकि अन्य देशों को ऐसा करने से रोकती हैं।
- ‘नो फर्स्ट यूज़’ (NFU) नीति: भारत ने अपनी परमाणु नीति में ‘नो फर्स्ट यूज़’ (पहले उपयोग न करना) के सिद्धांत को अपनाया है, जिसमें कहा गया है कि वह पहले परमाणु हथियारों का उपयोग नहीं करेगा।
- विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध: भारत का उद्देश्य एक विश्वसनीय न्यूनतम परमाणु प्रतिरोध क्षमता बनाए रखना है, जो उसकी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके।
- बहुपक्षीय मंचों पर सक्रियता: भारत संयुक्त राष्ट्र, निशस्त्रीकरण सम्मेलन (Conference on Disarmament) और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर निशस्त्रीकरण के मुद्दों को सक्रिय रूप से उठाता रहा है।
1.2. चुनौतियाँ
- परमाणु हथियार संपन्न देशों की अनिच्छा।
- क्षेत्रीय सुरक्षा चुनौतियाँ (जैसे पाकिस्तान और चीन के परमाणु हथियार)।
- आतंकवादियों के हाथों में परमाणु सामग्री पहुँचने का खतरा।
2. मानवाधिकार (Human Rights)
भारत मानवाधिकारों के सार्वभौमिक घोषणापत्र का एक हस्ताक्षरकर्ता है और मानवाधिकारों को अपनी विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण पहलू मानता है।
2.1. भारत का दृष्टिकोण
- संवैधानिक प्रतिबद्धता: भारत का संविधान मौलिक अधिकारों (भाग III) और राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (भाग IV) के माध्यम से मानवाधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
- सार्वभौमिकता और अविभाज्यता: भारत मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता और अविभाज्यता में विश्वास करता है, जिसका अर्थ है कि सभी मानवाधिकार (नागरिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक) समान रूप से महत्वपूर्ण हैं।
- गैर-हस्तक्षेप का सिद्धांत: भारत का मानना है कि मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों में अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप को सावधानी से किया जाना चाहिए और यह किसी देश की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
- विकास का अधिकार: भारत विकास के अधिकार पर जोर देता है, यह तर्क देते हुए कि गरीबी और अभाव में मानवाधिकारों को पूरी तरह से महसूस नहीं किया जा सकता है।
- आतंकवाद और मानवाधिकार: भारत आतंकवाद को मानवाधिकारों का सबसे बड़ा उल्लंघन मानता है और आतंकवाद से निपटने के दौरान मानवाधिकारों के सम्मान पर जोर देता है।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रियता: भारत संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर मानवाधिकारों के मुद्दों को सक्रिय रूप से उठाता रहा है।
2.2. चुनौतियाँ
- भारत में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप (जैसे पुलिस ज्यादती, सांप्रदायिक हिंसा)।
- आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने के दौरान मानवाधिकारों का संतुलन।
- विकास और मानवाधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करना।
3. वैश्वीकरण (Globalization)
भारत ने 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से वैश्वीकरण को अपनाया है, लेकिन इसके प्रभावों के प्रति एक संतुलित दृष्टिकोण रखता है।
3.1. भारत का दृष्टिकोण
- आर्थिक एकीकरण: भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकृत किया है, जिससे व्यापार, निवेश और प्रौद्योगिकी के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा मिला है।
- अवसर और चुनौतियाँ: भारत वैश्वीकरण को आर्थिक विकास और गरीबी उन्मूलन के लिए एक अवसर के रूप में देखता है, लेकिन साथ ही इसकी चुनौतियों (जैसे असमानता, सांस्कृतिक प्रभाव) के प्रति भी सचेत है।
- बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली का समर्थन: भारत विश्व व्यापार संगठन (WTO) जैसी बहुपक्षीय व्यापार प्रणालियों का समर्थन करता है, लेकिन विकासशील देशों के हितों की रक्षा पर भी जोर देता है।
- कौशल विकास और रोजगार: भारत वैश्वीकरण के माध्यम से कौशल विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देना चाहता है।
- सांस्कृतिक विविधता का संरक्षण: भारत अपनी सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करते हुए वैश्वीकरण के सांस्कृतिक प्रभावों को संतुलित करने का प्रयास करता है।
- डिजिटल वैश्वीकरण: भारत डिजिटल वैश्वीकरण को बढ़ावा दे रहा है, जिसमें डिजिटल सेवाओं और प्रौद्योगिकी का आदान-प्रदान शामिल है।
3.2. चुनौतियाँ
- आर्थिक असमानता में वृद्धि।
- सांस्कृतिक पहचान का क्षरण।
- पर्यावरणीय प्रभाव।
- वैश्विक वित्तीय संकटों के प्रति संवेदनशीलता।
- साइबर सुरक्षा के मुद्दे।
4. निष्कर्ष (Conclusion)
भारत की विदेश नीति निशस्त्रीकरण, मानवाधिकार और वैश्वीकरण जैसे प्रमुख विश्व मुद्दों पर एक सुविचारित और स्वतंत्र दृष्टिकोण को दर्शाती है। भारत ने हमेशा एक न्यायपूर्ण, समतावादी और शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था की वकालत की है। निशस्त्रीकरण के प्रति इसका दृष्टिकोण परमाणु हथियारों के पूर्ण उन्मूलन पर केंद्रित है, जबकि मानवाधिकारों के प्रति इसकी प्रतिबद्धता संवैधानिक मूल्यों और सार्वभौमिकता पर आधारित है। वैश्वीकरण को भारत ने आर्थिक विकास के एक अवसर के रूप में अपनाया है, लेकिन इसके नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए भी प्रयास करता है। इन मुद्दों पर भारत का दृष्टिकोण इसकी बढ़ती वैश्विक भूमिका और जिम्मेदारियों को दर्शाता है, क्योंकि यह एक बहुध्रुवीय विश्व में अपनी स्थिति को मजबूत कर रहा है।