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संघीय और संसदीय प्रणाली (Federal and Parliamentary System)

भारतीय संविधान एक अद्वितीय दस्तावेज है जो संघीय (Federal) और एकात्मक (Unitary) दोनों विशेषताओं के साथ-साथ संसदीय (Parliamentary) शासन प्रणाली को भी समाहित करता है। यह भारत की विशाल विविधता और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को समायोजित करने के लिए बनाया गया एक जटिल ढाँचा है।

1. संघीय प्रणाली (Federal System)

संघीय प्रणाली सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें शक्ति केंद्र सरकार और विभिन्न क्षेत्रीय इकाइयों (राज्यों) के बीच विभाजित होती है।

1.1. संघीय प्रणाली की विशेषताएँ (Features of a Federal System)

  • शक्तियों का दोहरा शासन: केंद्र और राज्य स्तर पर सरकार के दो स्तर होते हैं।
  • शक्तियों का विभाजन: संविधान द्वारा केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का स्पष्ट विभाजन होता है (भारत में सातवीं अनुसूची – संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची)।
  • लिखित संविधान: संविधान लिखित होता है और सर्वोच्च होता है, जो शक्तियों के विभाजन को सुनिश्चित करता है।
  • संविधान की सर्वोच्चता: संविधान देश का सर्वोच्च कानून होता है, और सभी कानून इसके अधीन होते हैं।
  • संविधान की कठोरता: संविधान में संशोधन करना आसान नहीं होता है, खासकर संघीय प्रावधानों में।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका: संविधान की व्याख्या करने और केंद्र व राज्यों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए एक स्वतंत्र न्यायपालिका होती है।
  • द्विसदनीय विधानमंडल: आमतौर पर विधायिका के दो सदन होते हैं, जिनमें से एक राज्यों का प्रतिनिधित्व करता है (भारत में राज्यसभा)।

1.2. भारतीय संघवाद की एकात्मक विशेषताएँ (Unitary Features of Indian Federalism)

  • मजबूत केंद्र: संघ सूची में अधिक विषय हैं, और केंद्र के पास अवशिष्ट शक्तियाँ हैं।
  • एकल संविधान: राज्यों का अपना अलग संविधान नहीं है।
  • एकल नागरिकता: भारत में एकल नागरिकता है, न कि दोहरी।
  • लचीला संविधान: संविधान के कुछ हिस्से साधारण बहुमत से संशोधित किए जा सकते हैं।
  • राज्यपाल की नियुक्ति: राज्यपाल केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है और राज्य में केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
  • अखिल भारतीय सेवाएँ (All-India Services): IAS, IPS, IFS जैसी अखिल भारतीय सेवाएँ केंद्र और राज्यों दोनों के लिए काम करती हैं।
  • आपातकालीन प्रावधान: आपातकाल के दौरान (अनुच्छेद 352, 356, 360), केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली हो जाती है और संघीय ढाँचा एकात्मक बन जाता है।
  • संसद की राज्यों की सीमाओं को बदलने की शक्ति: संसद साधारण बहुमत से किसी राज्य के क्षेत्र, सीमाओं या नाम को बदल सकती है (अनुच्छेद 3)।

1.3. भारत का संघवाद: एक ‘अर्ध-संघीय’ राज्य (‘Quasi-Federal’ State)

  • भारतीय संविधान को अक्सर ‘अर्ध-संघीय’ (Quasi-Federal) कहा जाता है क्योंकि इसमें संघीय और एकात्मक दोनों विशेषताएँ हैं।
  • के.सी. व्हेयर (K.C. Wheare) ने भारतीय संविधान को ‘अर्ध-संघीय’ बताया।
  • यह ‘सहकारी संघवाद’ (Cooperative Federalism) पर आधारित है, जहाँ केंद्र और राज्य एक दूसरे के सहयोग से कार्य करते हैं।

2. संसदीय प्रणाली (Parliamentary System)

संसदीय प्रणाली सरकार का एक ऐसा रूप है जिसमें कार्यपालिका अपनी लोकतांत्रिक वैधता विधायिका (संसद) से प्राप्त करती है और उसके प्रति जवाबदेह होती है।

2.1. संसदीय प्रणाली की विशेषताएँ (Features of Parliamentary System)

  • नाममात्र और वास्तविक कार्यपालिका:
    • नाममात्र कार्यपालिका: राज्य का प्रमुख (भारत में राष्ट्रपति) संवैधानिक प्रमुख होता है।
    • वास्तविक कार्यपालिका: सरकार का प्रमुख (भारत में प्रधान मंत्री) वास्तविक कार्यकारी होता है।
  • विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य: कार्यपालिका के सदस्य विधायिका के भी सदस्य होते हैं।
  • सामूहिक उत्तरदायित्व: मंत्रिपरिषद लोकसभा (निचले सदन) के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है (अनुच्छेद 75)।
  • दोहरी सदस्यता: मंत्री विधायिका और कार्यपालिका दोनों के सदस्य होते हैं।
  • प्रधान मंत्री का नेतृत्व: प्रधान मंत्री सरकार का प्रमुख होता है।
  • निचले सदन का विघटन: प्रधान मंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा निचले सदन (लोकसभा) को भंग किया जा सकता है।

2.2. संसदीय प्रणाली के गुण (Merits of Parliamentary System)

  • विधायिका और कार्यपालिका के बीच सामंजस्य: यह संघर्ष को रोकता है।
  • उत्तरदायी सरकार: कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है।
  • निरंकुशता पर रोक: सामूहिक उत्तरदायित्व कार्यकारी की निरंकुशता पर रोक लगाता है।
  • वैकल्पिक सरकार की उपलब्धता: राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति में एक वैकल्पिक सरकार आसानी से बनाई जा सकती है।

2.3. संसदीय प्रणाली के दोष (Demerits of Parliamentary System)

  • अस्थिर सरकार: यदि स्पष्ट बहुमत नहीं है तो सरकार अस्थिर हो सकती है।
  • नीतियों में निरंतरता का अभाव: सरकार के बदलने से नीतियों में निरंतरता प्रभावित हो सकती है।
  • शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन: कार्यपालिका और विधायिका के घनिष्ठ संबंध के कारण।
  • मंत्रिमंडल की निरंकुशता: यदि सत्तारूढ़ दल के पास भारी बहुमत है।

3. भारत में संघीय और संसदीय प्रणाली का सह-अस्तित्व (Co-existence of Federal and Parliamentary System in India)

भारतीय संविधान ने संघीय और संसदीय दोनों प्रणालियों की विशेषताओं को अपनाया है।

  • संविधान निर्माताओं का चुनाव: संविधान निर्माताओं ने भारत की विशाल विविधता, क्षेत्रीय आकांक्षाओं और लोकतांत्रिक परंपराओं को देखते हुए इन दोनों प्रणालियों को चुना।
  • संघीयता का उद्देश्य: क्षेत्रीय स्वायत्तता और विविधता को समायोजित करना।
  • संसदीयता का उद्देश्य: सरकार को जवाबदेह बनाना और विधायिका व कार्यपालिका के बीच सामंजस्य सुनिश्चित करना।
  • संतुलन: भारतीय संविधान ने एक मजबूत केंद्र के साथ संघीयता और एक जवाबदेह कार्यपालिका के साथ संसदीयता के बीच एक नाजुक संतुलन स्थापित किया है।
  • न्यायिक समीक्षा: स्वतंत्र न्यायपालिका और न्यायिक समीक्षा की शक्ति संविधान की सर्वोच्चता और संघीय संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है।

4. निष्कर्ष (Conclusion)

भारतीय राज्यव्यवस्था संघीय और संसदीय दोनों प्रणालियों का एक अनूठा मिश्रण है। संघीय ढाँचा केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन सुनिश्चित करता है, जबकि संसदीय प्रणाली कार्यपालिका की विधायिका के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करती है। यद्यपि इसमें एकात्मकता की ओर झुकाव और संसदीय प्रणाली की कुछ सीमाएँ हैं, यह ढाँचा भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण लोकतंत्र के लिए उपयुक्त साबित हुआ है। यह संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता को दर्शाता है, जिन्होंने एक ऐसा शासन मॉडल बनाया जो देश की एकता और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखते हुए विभिन्न क्षेत्रीय और सामाजिक आकांक्षाओं को समायोजित कर सके।

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