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भ्रष्टाचार निरोध (Anti-Corruption

भ्रष्टाचार निरोध (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

भ्रष्टाचार निरोध (Anti-Corruption) एक व्यापक प्रयास है जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार को रोकना, उसका पता लगाना और उसे दंडित करना है। भ्रष्टाचार सार्वजनिक जीवन में एक गंभीर समस्या है जो सुशासन, आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय को बाधित करती है। भारत में, भ्रष्टाचार से निपटने के लिए विभिन्न संस्थागत, कानूनी और नीतिगत उपाय किए गए हैं।

1. भ्रष्टाचार की अवधारणा (Concept of Corruption)

भ्रष्टाचार सार्वजनिक पद का निजी लाभ के लिए दुरुपयोग है।

1.1. परिभाषा

  • भ्रष्टाचार को आमतौर पर सार्वजनिक पद के निजी लाभ के लिए दुरुपयोग के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें रिश्वतखोरी, धोखाधड़ी, भाई-भतीजावाद, गबन और सत्ता का दुरुपयोग जैसे कार्य शामिल हैं।

1.2. प्रकार

  • बड़ा भ्रष्टाचार (Grand Corruption): उच्च-स्तरीय राजनीतिक नेताओं और अधिकारियों द्वारा किया गया भ्रष्टाचार।
  • छोटा भ्रष्टाचार (Petty Corruption): निचले स्तर के सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा रोजमर्रा की सेवाओं में किया गया भ्रष्टाचार।
  • व्यवस्थागत भ्रष्टाचार (Systemic Corruption): जब भ्रष्टाचार प्रणाली में गहराई से अंतर्निहित हो जाता है।

2. भ्रष्टाचार के कारण (Causes of Corruption)

भ्रष्टाचार एक जटिल घटना है जिसके कई अंतर्निहित कारण हैं।

  • आर्थिक कारण:
    • गरीबी और आय असमानता: कम वेतन और बढ़ती महंगाई।
    • आर्थिक उदारीकरण के बाद विनियमन की कमी: कुछ क्षेत्रों में विनियमन की कमी से भ्रष्टाचार के अवसर बढ़े।
    • काला धन और समानांतर अर्थव्यवस्था।
  • राजनीतिक कारण:
    • राजनीति का अपराधीकरण: आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का राजनीति में प्रवेश।
    • चुनावों में धन शक्ति का दुरुपयोग और चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता की कमी।
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव।
    • दल-बदल और गठबंधन राजनीति की अस्थिरता।
  • प्रशासनिक कारण:
    • लालफीताशाही और नौकरशाही की जड़ता: जटिल प्रक्रियाएँ और अनावश्यक देरी।
    • पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव।
    • निगरानी और ऑडिट तंत्र की कमजोरी।
    • अधिकारियों को विवेकाधीन शक्तियों का अत्यधिक उपयोग।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक कारण:
    • नैतिक मूल्यों का क्षरण।
    • सामाजिक सहिष्णुता और भ्रष्टाचार के प्रति उदासीनता।
    • जातिवाद और भाई-भतीजावाद।
  • कानूनी कारण:
    • भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों का कमजोर कार्यान्वयन।
    • न्यायिक प्रक्रिया में देरी।
    • साक्ष्य एकत्र करने में चुनौतियाँ।

3. भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाएँ (Anti-Corruption Institutions)

भारत में भ्रष्टाचार से निपटने के लिए कई संवैधानिक और वैधानिक संस्थाएँ मौजूद हैं।

  • केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission – CVC):
    • 1964 में संथानम समिति की सिफारिशों पर स्थापित। 2003 में इसे वैधानिक दर्जा दिया गया।
    • भ्रष्टाचार या कदाचार से संबंधित शिकायतों की जांच करता है और लोक सेवकों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश करता है।
  • केंद्रीय जांच ब्यूरो (Central Bureau of Investigation – CBI):
    • भारत की प्रमुख जांच एजेंसी, जो भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराधों और अन्य गंभीर अपराधों की जांच करती है।
    • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 से अपनी शक्तियाँ प्राप्त करती है।
  • लोकपाल और लोकायुक्त:
    • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत स्थापित।
    • लोकपाल केंद्र स्तर पर और लोकायुक्त राज्य स्तर पर सार्वजनिक पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करते हैं।
    • लोकपाल का क्षेत्राधिकार प्रधान मंत्री, केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों तक फैला हुआ है।
  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General – CAG):
    • भारत सरकार और राज्य सरकारों के खातों का ऑडिट करता है (अनुच्छेद 148)।
    • सार्वजनिक वित्त का संरक्षक है और सरकारी खर्च में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC):
    • मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित भ्रष्टाचार के मामलों में भी हस्तक्षेप कर सकता है।
  • न्यायपालिका:
    • भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई करती है और दोषियों को दंडित करती है।
    • न्यायिक सक्रियता के माध्यम से भ्रष्टाचार के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

4. भ्रष्टाचार निरोधक कानून और नीतियाँ (Anti-Corruption Laws and Policies)

भारत में भ्रष्टाचार को रोकने और दंडित करने के लिए कई कानून और नीतियाँ लागू की गई हैं।

  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988):
    • भ्रष्टाचार से संबंधित अपराधों को परिभाषित करता है और उनके लिए दंड का प्रावधान करता है।
    • सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा रिश्वतखोरी, आपराधिक कदाचार आदि को कवर करता है।
  • सूचना का अधिकार (Right to Information – RTI) अधिनियम, 2005:
    • नागरिकों को सरकारी जानकारी तक पहुँच प्रदान करता है।
    • यह पारदर्शिता को बढ़ावा देता है और भ्रष्टाचार को कम करने में मदद करता है।
  • लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013:
    • भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए लोकपाल और लोकायुक्त की स्थापना।
  • बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 (संशोधित 2016):
    • बेनामी लेनदेन (जहां संपत्ति किसी और के नाम पर खरीदी जाती है) को प्रतिबंधित करता है और ऐसी संपत्तियों को जब्त करने का प्रावधान करता है।
  • धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act – PMLA, 2002):
    • धन शोधन (Money Laundering) को रोकने और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए।
  • व्हिसल ब्लोअर्स संरक्षण अधिनियम, 2014 (Whistleblowers Protection Act, 2014):
    • भ्रष्टाचार का खुलासा करने वाले व्हिसल ब्लोअर्स को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003: CVC को वैधानिक दर्जा प्रदान करता है।

5. भ्रष्टाचार निरोध के उपाय और पहलें (Measures and Initiatives to Combat Corruption)

भारत में भ्रष्टाचार को कम करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में कई पहलें की गई हैं।

  • ई-गवर्नेंस पहलें:
    • डिजिटल इंडिया कार्यक्रम: सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराना (जैसे DBT, UMANG ऐप)।
    • आधार का उपयोग करके सेवाओं को लक्षित करना, जिससे रिसाव कम होता है।
    • ई-टेंडरिंग, ई-प्रोक्योरमेंट।
  • नागरिक भागीदारी:
    • जन शिकायत निवारण तंत्र: ऑनलाइन पोर्टल और हेल्पलाइन।
    • नागरिक चार्टर।
    • सामाजिक ऑडिट।
  • पुलिस और न्यायिक सुधार:
    • पुलिस को अधिक जवाबदेह और संवेदनशील बनाना।
    • न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाना।
  • क्षमता निर्माण:
    • सरकारी कर्मचारियों के लिए नैतिक प्रशिक्षण और कौशल विकास।
    • नैतिकता संहिता और आचरण नियम।
  • चुनावी सुधार:
    • राजनीति के अपराधीकरण को कम करना।
    • चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाना।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • संयुक्त राष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन (UNCAC) का अनुसमर्थन।
    • मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण का मुकाबला करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग।

6. चुनौतियाँ (Challenges)

भ्रष्टाचार निरोध के प्रयासों के बावजूद, भारत में अभी भी कई चुनौतियाँ मौजूद हैं।

  • राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव: भ्रष्टाचार से निपटने के लिए पर्याप्त राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी।
  • संस्थागत बाधाएँ: भ्रष्टाचार निरोधक संस्थाओं की सीमित स्वायत्तता, संसाधनों की कमी और राजनीतिक हस्तक्षेप।
  • न्यायिक प्रक्रिया में देरी: भ्रष्टाचार के मामलों के निपटान में अत्यधिक समय लगना।
  • भ्रष्टाचार का सामाजिक स्वीकृति: समाज के कुछ वर्गों में भ्रष्टाचार के प्रति उदासीनता या स्वीकृति।
  • व्हिसल ब्लोअर्स की सुरक्षा: व्हिसल ब्लोअर्स को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने में चुनौतियाँ।
  • जटिल नौकरशाही: जटिल नियम और प्रक्रियाएँ भ्रष्टाचार के अवसर पैदा करती हैं।
  • काला धन और बेनामी संपत्ति: काले धन और बेनामी संपत्तियों का पता लगाने और जब्त करने में चुनौतियाँ।

7. निष्कर्ष (Conclusion)

भ्रष्टाचार निरोध भारत में सुशासन और समावेशी विकास के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है। ब्रिटिश शासन के दौरान विकसित हुई प्रशासनिक प्रणाली में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं, और स्वतंत्रता के बाद भी यह एक बड़ी समस्या बनी हुई है। CVC, CBI, लोकपाल और लोकायुक्त जैसी संस्थाओं, और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, RTI अधिनियम जैसे कानूनों के माध्यम से भारत ने भ्रष्टाचार से निपटने के लिए एक मजबूत ढाँचा विकसित किया है। ई-गवर्नेंस पहलें और नागरिक भागीदारी भी भ्रष्टाचार को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। हालांकि, राजनीतिक इच्छाशक्ति, संस्थागत स्वायत्तता और न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाने जैसी चुनौतियों का सामना करना अभी भी आवश्यक है। भ्रष्टाचार मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक बहुआयामी, सतत और दृढ़ प्रयास की आवश्यकता है।

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