उच्च न्यायालय (High Court) भारतीय न्यायिक प्रणाली में सर्वोच्च न्यायालय के बाद दूसरे सर्वोच्च न्यायालय हैं। ये राज्य स्तर पर न्याय प्रदान करने, कानूनों की व्याख्या करने और निचली अदालतों पर पर्यवेक्षण करने के लिए जिम्मेदार हैं। भारतीय संविधान के भाग VI (अनुच्छेद 214 से 231) उच्च न्यायालयों से संबंधित है।
1. संवैधानिक प्रावधान और संरचना (Constitutional Provisions and Composition)
प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होता है, या दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय हो सकता है।
1.1. संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान का भाग VI (अनुच्छेद 214 से 231) उच्च न्यायालयों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 214: प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा।
- अनुच्छेद 231: संसद कानून द्वारा दो या दो से अधिक राज्यों या एक राज्य और एक केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है। (उदाहरण: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय)।
1.2. संरचना
- प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश और ऐसे अन्य न्यायाधीश होते हैं जिन्हें राष्ट्रपति समय-समय पर आवश्यक समझें।
- संविधान में उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की कोई निश्चित संख्या निर्धारित नहीं है।
1.3. न्यायाधीशों की नियुक्ति
- उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) और संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श करने के बाद की जाती है।
- अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा CJI, संबंधित राज्य के राज्यपाल और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के बाद की जाती है।
- कॉलेजियम प्रणाली: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की तरह, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में भी कॉलेजियम प्रणाली महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
1.4. न्यायाधीशों की योग्यताएँ
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
- उसे कम से कम 10 वर्षों के लिए भारत के क्षेत्र में किसी न्यायिक कार्यालय का धारणकर्ता होना चाहिए; या
- उसे कम से कम 10 वर्षों के लिए किसी उच्च न्यायालय का अधिवक्ता होना चाहिए।
1.5. कार्यकाल और हटाना
- कार्यकाल: न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक पद धारण करते हैं (15वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1963 द्वारा 60 से 62 वर्ष किया गया)।
- त्यागपत्र: राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र दे सकते हैं।
- हटाना: उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान ही हटाया जा सकता है (संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा राष्ट्रपति के आदेश पर)। यह प्रक्रिया बहुत कठोर है।
2. उच्च न्यायालय की स्वतंत्रता (Independence of the High Court)
संविधान उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान करता है।
- नियुक्ति का तरीका: न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका का सीमित हस्तक्षेप (कॉलेजियम प्रणाली)।
- कार्यकाल की सुरक्षा: न्यायाधीशों को उनके कार्यकाल की सुरक्षा प्राप्त है।
- वेतन और भत्ते: न्यायाधीशों के वेतन और भत्ते राज्य की संचित निधि (Consolidated Fund of the State) पर भारित होते हैं, इसलिए इन पर राज्य विधानमंडल में मतदान नहीं होता।
- संसद/राज्य विधानमंडल में आचरण पर चर्चा नहीं: न्यायाधीशों के आचरण पर संसद या राज्य विधानमंडल में चर्चा नहीं की जा सकती, सिवाय महाभियोग प्रस्ताव के।
- सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर प्रतिबंध: उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद सर्वोच्च न्यायालय या किसी अन्य उच्च न्यायालय में वकालत कर सकते हैं, लेकिन उस उच्च न्यायालय में नहीं जहाँ वे स्थायी न्यायाधीश रहे हैं।
- अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति: उच्च न्यायालय के पास अपनी अवमानना (Contempt of Court) के लिए दंडित करने की शक्ति है।
3. उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार और शक्तियाँ (Jurisdiction and Powers of the High Court)
उच्च न्यायालयों के पास व्यापक क्षेत्राधिकार और शक्तियाँ हैं।
3.1. मूल क्षेत्राधिकार (Original Jurisdiction)
- कुछ मामलों में, उच्च न्यायालय सीधे मामलों की सुनवाई कर सकते हैं, जैसे:
- मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन से संबंधित मामले (रिट क्षेत्राधिकार)।
- विवाह, तलाक, वसीयत, कंपनी कानून और admiralty से संबंधित मामले (कुछ उच्च न्यायालयों में)।
- सांसद और विधायकों के चुनाव से संबंधित विवाद।
3.2. रिट क्षेत्राधिकार (Writ Jurisdiction – अनुच्छेद 226)
- उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए और किसी अन्य उद्देश्य (अन्य कानूनी अधिकारों) के लिए भी पांच प्रकार की रिट जारी कर सकते हैं: बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण और अधिकार पृच्छा।
- उच्च न्यायालय का रिट क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32) से अधिक व्यापक है, क्योंकि यह मौलिक अधिकारों के साथ-साथ अन्य कानूनी अधिकारों के लिए भी रिट जारी कर सकता है।
3.3. अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction)
- उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनते हैं।
- दीवानी मामलों में अपील: जिला न्यायालयों और अन्य अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील।
- आपराधिक मामलों में अपील: सत्र न्यायालयों और अन्य अधीनस्थ आपराधिक न्यायालयों के निर्णयों के खिलाफ अपील।
3.4. पर्यवेक्षी क्षेत्राधिकार (Supervisory Jurisdiction – अनुच्छेद 227)
- उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ सभी न्यायालयों और न्यायाधिकरणों (सैन्य न्यायालयों को छोड़कर) पर पर्यवेक्षण की शक्ति रखता है।
- यह अधीनस्थ न्यायालयों से रिपोर्ट मांग सकता है, नियम बना सकता है और उनके कामकाज को नियंत्रित कर सकता है।
3.5. नियंत्रण क्षेत्राधिकार (Control over Subordinate Courts – अनुच्छेद 235)
- उच्च न्यायालय जिला न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और छुट्टी से संबंधित मामलों पर नियंत्रण रखता है।
3.6. अभिलेख न्यायालय (Court of Record – अनुच्छेद 215)
- उच्च न्यायालय के सभी निर्णय और कार्यवाही रिकॉर्ड के रूप में रखी जाती हैं और सभी अधीनस्थ न्यायालयों के लिए बाध्यकारी होती हैं।
- इसके पास अपनी अवमानना के लिए दंडित करने की शक्ति है।
3.7. न्यायिक समीक्षा (Judicial Review)
- उच्च न्यायालय के पास भी विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों और कार्यपालिका द्वारा किए गए कार्यों की संवैधानिकता की समीक्षा करने की शक्ति है।
- यह संविधान के ‘मूल ढांचे’ के सिद्धांत का भी पालन करता है।
4. उच्च न्यायालयों के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to High Courts)
उच्च न्यायालयों को अपने प्रभावी कामकाज में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
- मामलों का भारी बोझ: सर्वोच्च न्यायालय की तरह, उच्च न्यायालयों में भी बड़ी संख्या में मामले लंबित हैं, जिससे न्याय मिलने में देरी होती है।
- न्यायाधीशों की कमी: न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या और वास्तविक संख्या के बीच बड़ा अंतर है।
- बुनियादी ढांचे का अभाव: पर्याप्त बुनियादी ढांचे, प्रौद्योगिकी और सहायक कर्मचारियों की कमी।
- क्षेत्रीय असमानताएँ: विभिन्न राज्यों में उच्च न्यायालयों की दक्षता और संसाधनों में असमानताएँ।
- कार्यपालिका से हस्तक्षेप: न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण में कार्यपालिका के हस्तक्षेप के आरोप।
- न्यायिक जवाबदेही: न्यायपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक प्रभावी तंत्र की कमी।
- भाषा बाधा: कुछ उच्च न्यायालयों में कार्यवाही मुख्य रूप से अंग्रेजी में होती है, जिससे स्थानीय लोगों के लिए पहुंच मुश्किल हो सकती है।
5. निष्कर्ष (Conclusion)
उच्च न्यायालय भारतीय न्यायिक प्रणाली के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जो राज्य स्तर पर न्याय प्रदान करने, कानूनों की व्याख्या करने और अधीनस्थ न्यायालयों पर पर्यवेक्षण करने के लिए जिम्मेदार हैं। अपनी स्वतंत्रता, व्यापक रिट क्षेत्राधिकार और न्यायिक समीक्षा की शक्ति के साथ, उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के संरक्षक और संविधान के प्रहरी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यद्यपि उन्हें मामलों का भारी बोझ, न्यायाधीशों की कमी और बुनियादी ढांचे का अभाव जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उच्च न्यायालय भारतीय लोकतंत्र में न्याय, समानता और कानून के शासन को बनाए रखने के लिए अपरिहार्य हैं। न्याय प्रणाली को अधिक सुलभ, कुशल और जवाबदेह बनाने के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता है।