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नगर निगम (Municipal Corporation)

नगर निगम (Municipal Corporation) भारत में शहरी स्थानीय स्वशासन का सबसे बड़ा रूप है। यह बड़े शहरी क्षेत्रों (जैसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता) के प्रशासन के लिए स्थापित किया जाता है। नगर निगम का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में बुनियादी नागरिक सेवाएँ प्रदान करना, शहरी नियोजन करना और स्थानीय विकास को बढ़ावा देना है। इसे भारतीय संविधान के 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है।

1. नगर निगम की पृष्ठभूमि और संवैधानिक आधार (Background and Constitutional Basis of Municipal Corporation)

भारत में शहरी स्थानीय स्वशासन का इतिहास ब्रिटिश काल से चला आ रहा है, जिसे स्वतंत्रता के बाद संवैधानिक रूप से सशक्त किया गया।

1.1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • भारत में पहला नगर निगम 1687 में मद्रास (चेन्नई) में स्थापित किया गया था।
  • 1726 में, बंबई और कलकत्ता में भी नगर निगम स्थापित किए गए।
  • लॉर्ड मेयो (1870) के प्रस्ताव और लॉर्ड रिपन (1882) के प्रस्ताव ने स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा दिया।

1.2. संवैधानिक आधार

  • 74वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992:
    • इस अधिनियम ने शहरी स्थानीय निकायों (नगर पालिकाओं) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
    • संविधान में एक नया भाग IXA (‘नगर पालिकाएँ’) जोड़ा गया, जिसमें अनुच्छेद 243P से 243ZG तक के प्रावधान हैं।
    • एक नई बारहवीं अनुसूची जोड़ी गई, जिसमें नगर पालिकाओं के 18 कार्यात्मक विषय शामिल हैं।

2. नगर निगम की संरचना (Structure of Municipal Corporation)

नगर निगम में तीन मुख्य प्राधिकरण होते हैं: परिषद, स्थायी समितियाँ और नगर आयुक्त।

2.1. परिषद (Council)

  • यह नगर निगम का विधायी और विचार-विमर्श करने वाला अंग है।
  • सदस्य (पार्षद): सीधे वार्डों से वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाते हैं।
  • महापौर (Mayor):
    • नगर निगम का औपचारिक प्रमुख होता है।
    • वह परिषद की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
    • कुछ राज्यों में सीधे जनता द्वारा चुना जाता है, जबकि अन्य में पार्षदों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।
    • उसका कार्यकाल आमतौर पर 1 वर्ष होता है, लेकिन कुछ राज्यों में 5 वर्ष भी हो सकता है।

2.2. स्थायी समितियाँ (Standing Committees)

  • ये परिषद द्वारा गठित की जाती हैं ताकि परिषद के कार्यभार को कम किया जा सके।
  • ये विभिन्न क्षेत्रों (जैसे वित्त, सार्वजनिक कार्य, शिक्षा, स्वास्थ्य) में कार्य करती हैं और नीतिगत निर्णय लेने में मदद करती हैं।

2.3. नगर आयुक्त (Municipal Commissioner)

  • यह नगर निगम का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (Chief Executive Officer – CEO) होता है।
  • यह एक IAS अधिकारी होता है जिसे राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • वह महापौर और पार्षदों द्वारा लिए गए निर्णयों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होता है।
  • वह नगर निगम के प्रशासन का प्रमुख होता है और उसके पास सभी कार्यकारी शक्तियाँ होती हैं।

2.4. वार्ड समितियाँ (Ward Committees)

  • 74वें संशोधन के तहत, 3 लाख या उससे अधिक आबादी वाले शहरों में वार्ड समितियों का गठन अनिवार्य है।
  • ये जमीनी स्तर पर स्थानीय मुद्दों को हल करने में मदद करती हैं।

3. नगर निगम के कार्य और जिम्मेदारियाँ (Functions and Responsibilities of Municipal Corporation)

नगर निगम शहरी क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की नागरिक सेवाएँ प्रदान करता है।

3.1. अनिवार्य कार्य (Obligatory Functions) – बारहवीं अनुसूची में 18 विषय

  • शहरी नियोजन: टाउन प्लानिंग, भूमि उपयोग का विनियमन।
  • पानी की आपूर्ति: पीने योग्य पानी की आपूर्ति।
  • सीवरेज और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: स्वच्छता और अपशिष्ट निपटान।
  • सड़कें और पुल: सड़कों का निर्माण और रखरखाव।
  • स्ट्रीट लाइटिंग: सार्वजनिक स्थानों पर प्रकाश व्यवस्था।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता: अस्पताल, औषधालय, टीकाकरण।
  • जन्म और मृत्यु पंजीकरण।
  • अग्निशमन सेवाएँ।
  • शहरी वानिकी, पर्यावरण संरक्षण।
  • झुग्गी-झोपड़ी सुधार और उन्नयन।
  • शहरी गरीबी उन्मूलन।

3.2. विवेकाधीन कार्य (Discretionary Functions)

  • सार्वजनिक पार्क, उद्यान और खेल के मैदानों का निर्माण और रखरखाव।
  • सार्वजनिक पुस्तकालय और संग्रहालय।
  • सार्वजनिक परिवहन।
  • सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों को बढ़ावा देना।

4. नगर निगम के राजस्व के स्रोत (Sources of Revenue for Municipal Corporation)

नगर निगम अपनी सेवाओं को वित्तपोषित करने के लिए विभिन्न स्रोतों से राजस्व प्राप्त करते हैं।

  • कर राजस्व:
    • संपत्ति कर (Property Tax): राजस्व का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत।
    • जल कर, मनोरंजन कर, विज्ञापन कर, टोल, व्यापार लाइसेंस फीस।
  • गैर-कर राजस्व:
    • किराया, फीस, जुर्माना, सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से आय।
  • राज्य सरकार से अनुदान: राज्य सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए प्रदान किए गए अनुदान।
  • राज्य वित्त आयोग की सिफारिशें: राज्य वित्त आयोग स्थानीय निकायों की वित्तीय स्थिति की समीक्षा करता है और राज्य सरकार को अनुदान और राजस्व बंटवारे के लिए सिफारिशें करता है।
  • केंद्रीय सरकार से अनुदान: कुछ केंद्रीय योजनाओं के तहत अनुदान।
  • ऋण: वित्तीय संस्थानों से ऋण।

5. नगर निगम के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges to Municipal Corporation)

नगर निगमों को अपने प्रभावी कामकाज में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।

  • वित्तीय स्वायत्तता का अभाव: राजस्व के सीमित स्रोत और राज्य सरकारों पर अत्यधिक निर्भरता।
  • कार्यों का हस्तांतरण: राज्य सरकारों द्वारा नगर पालिकाओं को पर्याप्त शक्तियाँ, कार्य और कर्मचारी हस्तांतरित न करना (‘3F’s – Funds, Functions, Functionaries का अभाव)।
  • क्षमता का अभाव: निर्वाचित प्रतिनिधियों और कर्मचारियों में प्रशिक्षण और कौशल की कमी।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप: राज्य सरकारों और स्थानीय राजनेताओं द्वारा अनुचित हस्तक्षेप।
  • अधिकारशाही का प्रभुत्व: नगर आयुक्त और अन्य अधिकारियों का निर्वाचित प्रतिनिधियों पर हावी होना।
  • शहरीकरण की चुनौतियाँ: बढ़ती शहरी आबादी, झुग्गी-झोपड़ी, बुनियादी ढांचे की कमी, प्रदूषण और यातायात जैसी समस्याएँ।
  • जन भागीदारी की कमी: शहरी क्षेत्रों में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी की कमी।
  • भ्रष्टाचार: स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार।

6. नगर निगम को मजबूत करने के उपाय (Measures to Strengthen Municipal Corporation)

नगर निगमों को प्रभावी शहरी शासन के लिए सशक्त बनाने के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता है।

  • वित्तीय सशक्तिकरण: नगर निगमों को अधिक राजस्व स्रोत प्रदान करना, संपत्ति कर संग्रह में सुधार करना, और राज्य वित्त आयोग की सिफारिशों को प्रभावी ढंग से लागू करना।
  • कार्यों का पूर्ण हस्तांतरण: राज्यों द्वारा बारहवीं अनुसूची में सूचीबद्ध सभी विषयों को नगर पालिकाओं को पूर्ण रूप से हस्तांतरित करना।
  • क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण: निर्वाचित प्रतिनिधियों और कर्मचारियों के लिए नियमित और गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: ई-गवर्नेंस, नागरिक चार्टर और सामाजिक ऑडिट के माध्यम से पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना।
  • जन भागीदारी को बढ़ावा: वार्ड समितियों और अन्य मंचों के माध्यम से नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
  • शहरी नियोजन में सुधार: एकीकृत और सतत शहरी नियोजन को बढ़ावा देना।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: स्मार्ट सिटी पहल और अन्य ई-गवर्नेंस समाधानों के माध्यम से शहरी सेवाओं में सुधार।

7. निष्कर्ष (Conclusion)

नगर निगम भारत में शहरी स्थानीय स्वशासन की सबसे महत्वपूर्ण इकाई है, जो बड़े शहरी क्षेत्रों में बुनियादी नागरिक सेवाएँ प्रदान करने और स्थानीय विकास को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है। 74वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने इसे संवैधानिक दर्जा प्रदान कर शहरी शासन में क्रांति ला दी। महापौर, पार्षद और नगर आयुक्त इसकी संरचना के प्रमुख घटक हैं, जो मिलकर शहरी चुनौतियों का सामना करते हैं। यद्यपि वित्तीय स्वायत्तता की कमी, कार्यों के हस्तांतरण का अभाव और बढ़ती शहरीकरण की समस्याएँ जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं, नगर निगम शहरी क्षेत्रों में लोकतंत्र को गहरा करने, समावेशी विकास सुनिश्चित करने और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए अपरिहार्य हैं। एक मजबूत और प्रभावी नगर निगम भारत के शहरी भविष्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।

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