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रेडियोधर्मिता (Radioactivity)

परिचय: रेडियोधर्मिता (Radioactivity)

रेडियोधर्मिता कुछ अस्थिर परमाणु नाभिकों का एक गुण है, जिसके कारण वे अधिक स्थिर अवस्था प्राप्त करने के लिए स्वतः ही ऊर्जा और कणों का उत्सर्जन करते हैं। इस प्रक्रिया को रेडियोधर्मी क्षय (Radioactive Decay) कहा जाता है। इस घटना की खोज 1896 में हेनरी बेकरेल ने की थी।

रेडियोधर्मी क्षय के प्रकार

रेडियोधर्मी नाभिक मुख्य रूप से तीन प्रकार के विकिरण उत्सर्जित करते हैं:

गुण अल्फा (α) क्षय बीटा (β) क्षय गामा (γ) क्षय
कण की प्रकृति हीलियम नाभिक (²⁴He) इलेक्ट्रॉन (⁻¹⁰e) या पॉज़िट्रॉन (⁺¹⁰e) उच्च ऊर्जा फोटॉन (विद्युत चुम्बकीय तरंग)
आवेश +2e -e या +e 0 (उदासीन)
भेदन क्षमता बहुत कम (कागज की शीट से रुक जाती है) मध्यम (एल्यूमीनियम की पतली शीट से रुक जाती है) बहुत अधिक (सीसे की मोटी परत की आवश्यकता होती है)
आयनन क्षमता बहुत अधिक मध्यम बहुत कम

रेडियोधर्मी क्षय का नियम और अर्ध-आयु

क्षय का नियम

किसी भी क्षण पर, रेडियोधर्मी नाभिकों के क्षय होने की दर उस क्षण पर उपस्थित अविघटित नाभिकों की संख्या के समानुपाती होती है।

अर्ध-आयु (Half-Life, T₁/₂)

अर्ध-आयु वह समय है जिसमें किसी रेडियोधर्मी पदार्थ के आधे नाभिक विघटित हो जाते हैं। यह प्रत्येक रेडियोधर्मी समस्थानिक के लिए एक विशिष्ट और स्थिर मान है।

सूत्र

N = N₀e⁻ˡᵗ (जहाँ N₀ प्रारंभिक नाभिकों की संख्या है)
T₁/₂ = 0.693 / λ

जहाँ λ क्षय नियतांक (decay constant) है।

नाभिकीय अभिक्रियाएं

नाभिकीय विखंडन (Nuclear Fission)

यह वह प्रक्रिया है जिसमें एक भारी नाभिक (जैसे यूरेनियम-235) न्यूट्रॉन के प्रहार से लगभग बराबर द्रव्यमान के दो या दो से अधिक छोटे नाभिकों में टूट जाता है। इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है। परमाणु बम और परमाणु ऊर्जा संयंत्र इसी सिद्धांत पर आधारित हैं।

नाभिकीय संलयन (Nuclear Fusion)

यह वह प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक हल्के नाभिक अत्यधिक उच्च ताप और दाब पर मिलकर एक भारी नाभिक बनाते हैं। इस प्रक्रिया में विखंडन से भी अधिक ऊर्जा मुक्त होती है। सूर्य और अन्य तारों की ऊर्जा का स्रोत नाभिकीय संलयन ही है।

संख्यात्मक उदाहरण

उदाहरण 1

प्रश्न: एक रेडियोधर्मी पदार्थ की अर्ध-आयु 10 दिन है। 1 ग्राम पदार्थ को 125 मिलीग्राम तक कम होने में कितना समय लगेगा?

हल:
प्रारंभिक मात्रा (N₀) = 1 g = 1000 mg
अंतिम मात्रा (N) = 125 mg
अर्ध-आयु (T₁/₂) = 10 दिन

हम जानते हैं कि N = N₀ / 2ⁿ, जहाँ n अर्ध-आयु की संख्या है।
125 = 1000 / 2ⁿ
2ⁿ = 1000 / 125 = 8
2ⁿ = 2³
अतः, n = 3

कुल समय = n × T₁/₂
कुल समय = 3 × 10 दिन
कुल समय = 30 दिन

उदाहरण 2

प्रश्न: कोबाल्ट-60 की अर्ध-आयु 5.3 वर्ष है। इसके क्षय नियतांक (λ) की गणना कीजिए।

हल:
दिया है: T₁/₂ = 5.3 वर्ष

सूत्र: T₁/₂ = 0.693 / λ
λ = 0.693 / T₁/₂
λ = 0.693 / 5.3
λ ≈ 0.1307 प्रति वर्ष

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द्रव्यमान क्षति

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