उत्तराखंड में कृषि के साथ-साथ पशुपालन भी ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक अभिन्न अंग है। यह न केवल दूध, मांस, अंडे और ऊन जैसे उत्पाद प्रदान करता है, बल्कि कृषि कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और ग्रामीण परिवारों के लिए आय का एक अतिरिक्त स्रोत भी है।
उत्तराखंड में पशुपालन
- मिश्रित कृषि प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक है। पशुपालन राज्य की
- पर्वतीय क्षेत्रों में पशुधन, विशेषकर भेड़-बकरी पालन, पारंपरिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है।
- राज्य में दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
- कुक्कुट पालन भी ग्रामीण क्षेत्रों में आय का एक साधन बन रहा है।
- पशुधन बीमा योजना और पशु स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार पशुपालकों के लिए महत्वपूर्ण है।
उत्तराखंड में प्रमुख पशुधन
1. गौवंशीय पशु (Cattle)
राज्य में गाय और बैल कृषि कार्यों (जुताई, ढुलाई) और दूध उत्पादन दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- देसी नस्लें: पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानीय, छोटे आकार की और कठोर गायें पाई जाती हैं जो कम चारे पर भी जीवित रह सकती हैं।
- उन्नत नस्लें: मैदानी क्षेत्रों और कुछ पर्वतीय क्षेत्रों में जर्सी, होल्स्टीन-फ्रिजियन जैसी संकर नस्लों को दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए पाला जाता है।
- बैल: कृषि कार्यों और परिवहन के लिए आज भी पर्वतीय क्षेत्रों में इनका महत्व है।
2. महिषवंशीय पशु (Buffaloes)
भैंसें मुख्य रूप से दूध उत्पादन के लिए पाली जाती हैं। इनका दूध गाय के दूध की तुलना में अधिक वसायुक्त होता है।
- प्रमुख नस्लें: मुर्रा और स्थानीय नस्लें।
- क्षेत्र: मैदानी और निचले पर्वतीय क्षेत्रों में भैंस पालन अधिक प्रचलित है।
3. भेड़ (Sheep)
भेड़ पालन मुख्य रूप से ऊन और मांस के लिए किया जाता है। यह पर्वतीय क्षेत्रों, विशेषकर उच्च हिमालयी चरागाहों (बुग्यालों) पर निर्भर समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है।
- प्रमुख नस्लें: गद्दी, रामपुर बुशहरी और कुछ विदेशी नस्लें (जैसे मेरिनो) ऊन की गुणवत्ता सुधारने के लिए।
- उत्पाद: ऊन, मांस। भेड़ की ऊन से पारंपरिक ऊनी वस्त्र बनाए जाते हैं।
- ऋतु प्रवास: कई भेड़ पालक गर्मियों में अपने झुंडों को बुग्यालों में ले जाते हैं और सर्दियों में निचले इलाकों में आ जाते हैं।
4. बकरी (Goat)
बकरी पालन दूध और मांस दोनों के लिए किया जाता है। इन्हें “गरीब की गाय” भी कहा जाता है क्योंकि ये कम संसाधनों में भी पाली जा सकती हैं।
- प्रमुख नस्लें: पहाड़ी (स्थानीय), जमुनापारी, बारबरी।
- विशेषता: बकरियाँ विभिन्न प्रकार की वनस्पतियों को खा सकती हैं और कठिन पर्वतीय इलाकों के लिए उपयुक्त होती हैं।
5. कुक्कुट पालन (Poultry)
अंडे और मांस की बढ़ती मांग के कारण कुक्कुट पालन एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक गतिविधि के रूप में उभर रहा है।
- प्रकार: ब्रायलर (मांस के लिए) और लेयर (अंडे के लिए)।
- सरकारी योजनाओं के माध्यम से इसे प्रोत्साहित किया जा रहा है।
6. अन्य पशुधन
- घोड़े और खच्चर: पर्वतीय क्षेत्रों में परिवहन और ढुलाई के लिए महत्वपूर्ण।
- सूअर पालन: कुछ समुदायों द्वारा मांस के लिए।
- खरगोश पालन: ऊन (अंगोरा) और मांस के लिए।
- मत्स्य पालन: नदियों, झीलों और तालाबों में। ट्राउट मछली पालन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
पशुपालन का महत्व
- खाद्य सुरक्षा: दूध, मांस, अंडे जैसे पौष्टिक खाद्य पदार्थ प्रदान करता है।
- आय का स्रोत: ग्रामीण परिवारों के लिए अतिरिक्त आय और रोजगार का साधन।
- कृषि में सहायक: बैल कृषि कार्यों में मदद करते हैं। पशुओं का गोबर जैविक खाद के रूप में उपयोग होता है।
- कच्चा माल: ऊन, चमड़ा आदि उद्योगों के लिए कच्चा माल।
- पारिस्थितिक संतुलन: चराई से घास के मैदानों का प्रबंधन।
पशुपालन संबंधी प्रमुख योजनाएँ एवं प्रयास
राज्य और केंद्र सरकार द्वारा पशुधन विकास और पशुपालकों के कल्याण के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं:
- एकीकृत पशुधन विकास परियोजना (ILDP): पशुधन उत्पादकता बढ़ाने और पशुपालकों की आय में सुधार हेतु।
- राष्ट्रीय गोकुल मिशन: देसी गौवंशीय नस्लों के संरक्षण और विकास के लिए।
- पशुधन बीमा योजना: पशुओं की मृत्यु से होने वाले आर्थिक नुकसान से पशुपालकों को सुरक्षा प्रदान करना।
- गंगा गाय महिला डेयरी योजना (2014 में प्रस्तावित/शुरू): महिला सशक्तिकरण और दुग्ध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए।
- मुख्यमंत्री घस्यारी कल्याण योजना (2021): महिलाओं को रियायती दरों पर पौष्टिक चारा उपलब्ध कराना।
- मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयाँ: दूरस्थ क्षेत्रों में पशु स्वास्थ्य सेवाएँ पहुँचाना।
- कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम: पशु नस्ल सुधार के लिए।
- चारा विकास कार्यक्रम: गुणवत्तापूर्ण चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- समग्र डेयरी विकास योजना।
- उत्तराखंड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड और उत्तराखंड पशुधन विकास बोर्ड जैसी संस्थाएँ इस क्षेत्र में कार्यरत हैं।
पशुपालन क्षेत्र की चुनौतियाँ
- चारे की कमी: विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में और शुष्क मौसम में।
- पशु स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव: दूरस्थ क्षेत्रों में पशु चिकित्सालयों और डॉक्टरों की कमी।
- उन्नत नस्लों की अनुपलब्धता: स्थानीय नस्लों की उत्पादकता कम होना।
- बाजार और विपणन सुविधाओं की कमी: पशु उत्पादों का उचित मूल्य न मिलना।
- प्राकृतिक आपदाएँ: भूस्खलन, बाढ़ आदि से पशुधन की हानि।
- पशुपालकों में जागरूकता और प्रशिक्षण का अभाव।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड में पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और इसमें विकास की अपार संभावनाएं हैं। उन्नत तकनीकों, बेहतर पशु स्वास्थ्य सेवाओं, चारा प्रबंधन और सरकारी योजनाओं के प्रभावी कार्यान्वयन के माध्यम से इस क्षेत्र को और अधिक लाभकारी और टिकाऊ बनाया जा सकता है, जिससे राज्य के समग्र विकास में मदद मिलेगी।