उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि, पर्यटन और सेवा क्षेत्र पर आधारित है। राज्य अपनी विशिष्ट भौगोलिक संरचना के कारण अद्वितीय आर्थिक अवसर और चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। राज्य गठन के बाद से, उत्तराखंड ने आर्थिक विकास के विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति की है, लेकिन सतत और समावेशी विकास अभी भी एक प्रमुख लक्ष्य है।
उत्तराखंड की राज्य अर्थव्यवस्था
- उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को “मनीऑर्डर अर्थव्यवस्था” भी कहा जाता रहा है, क्योंकि यहाँ से बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए बाहर जाते हैं और अपने परिवारों को पैसा भेजते हैं।
- राज्य की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से अधिक है (समय-समय पर आँकड़े बदलते हैं)।
- पर्यटन राज्य की आय का एक प्रमुख स्रोत है।
- राज्य सरकार औद्योगिक विकास, निवेश प्रोत्साहन और बुनियादी ढाँचे के विकास पर विशेष ध्यान दे रही है।
- राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) में तृतीयक क्षेत्र (सेवा क्षेत्र) का योगदान सर्वाधिक है।
अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्रक (Major Sectors of Economy)
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को मुख्यतः तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है:
1. प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)
इस क्षेत्र में वे गतिविधियाँ शामिल हैं जो सीधे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करती हैं।
- कृषि (Agriculture):
- राज्य की अधिकांश ग्रामीण आबादी कृषि पर निर्भर है।
- प्रमुख फसलें: गेहूँ, धान, मंडुवा, झंगोरा, गन्ना, दालें।
- पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेती प्रचलित है।
- जैविक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- बागवानी और पुष्प उत्पादन (Horticulture and Floriculture):
- राज्य में सेब, नाशपाती, आड़ू, खुबानी, लीची, माल्टा जैसे फलों का उत्पादन होता है।
- पुष्प उत्पादन (जैसे जरबेरा, गुलाब, ग्लेडियोलस) भी एक महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि बन रहा है।
- पशुपालन (Animal Husbandry):
- दूध, मांस, ऊन और कृषि कार्यों के लिए पशुपालन महत्वपूर्ण है।
- भेड़-बकरी पालन पर्वतीय क्षेत्रों में पारंपरिक व्यवसाय है।
- वानिकी और लॉगिंग (Forestry and Logging):
- राज्य का एक बड़ा हिस्सा वनों से आच्छादित है, जिनसे इमारती लकड़ी, जड़ी-बूटियाँ, लीसा, पिरूल जैसे उत्पाद प्राप्त होते हैं।
- वन संरक्षण और सतत वन प्रबंधन पर जोर दिया जा रहा है।
- खनन और उत्खनन (Mining and Quarrying):
- राज्य में चूना-पत्थर, मैग्नेसाइट, सोपस्टोन, डोलोमाइट जैसे खनिजों का खनन होता है।
- नदी तल से रेत, बजरी और बोल्डर का भी खनन होता है।
2. द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector)
इस क्षेत्र में विनिर्माण और निर्माण गतिविधियाँ शामिल हैं।
- विनिर्माण (Manufacturing):
- राज्य में फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल और ऑटो कंपोनेंट्स, खाद्य प्रसंस्करण, इंजीनियरिंग सामान, सीमेंट जैसे उद्योगों का विकास हुआ है।
- सिडकुल (SIDCUL – State Infrastructure & Industrial Development Corporation of Uttarakhand Ltd.) द्वारा विकसित औद्योगिक क्षेत्रों (जैसे हरिद्वार, पंतनगर, सितारगंज, सेलाकुई) ने औद्योगिक विकास को गति दी है।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) भी राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- निर्माण (Construction):
- बुनियादी ढाँचे (सड़कें, पुल, भवन) और जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण से संबंधित गतिविधियाँ।
3. तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector) / सेवा क्षेत्र (Service Sector)
यह क्षेत्र राज्य की GSDP में सर्वाधिक योगदान देता है।
- पर्यटन (Tourism):
- राज्य की अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ। धार्मिक पर्यटन (चार धाम, हरिद्वार, ऋषिकेश), साहसिक पर्यटन (ट्रेकिंग, राफ्टिंग, स्कीइंग), प्रकृति पर्यटन और स्वास्थ्य पर्यटन (योग, आयुर्वेद) प्रमुख हैं।
- होटल, परिवहन, और अन्य संबंधित सेवाएँ रोजगार का एक बड़ा स्रोत हैं।
- व्यापार, होटल और रेस्तरां (Trade, Hotels, and Restaurants): पर्यटन से सीधे जुड़ा हुआ।
- परिवहन, भंडारण और संचार (Transport, Storage, and Communication): सड़क, रेल (सीमित) और वायु परिवहन। दूरसंचार सेवाओं का विस्तार।
- वित्तीय सेवाएँ (Financial Services): बैंकिंग, बीमा।
- लोक प्रशासन और रक्षा (Public Administration and Defence)।
- अन्य सेवाएँ: शिक्षा, स्वास्थ्य, सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और IT-सक्षम सेवाएँ (ITES)।
राज्य की आय और बजट
- राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP): यह राज्य की आर्थिक वृद्धि का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। समय के साथ GSDP में वृद्धि हुई है, जिसमें सेवा क्षेत्र का योगदान सबसे अधिक रहा है।
- प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income): उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से सामान्यतः अधिक रही है।
- राजस्व के स्रोत: राज्य को कर राजस्व (जैसे GST, उत्पाद शुल्क, स्टांप शुल्क) और गैर-कर राजस्व (जैसे खनिजों से रॉयल्टी, वन उत्पाद) से आय प्राप्त होती है। केंद्रीय करों में हिस्सेदारी भी एक महत्वपूर्ण स्रोत है।
- बजट: राज्य सरकार प्रतिवर्ष बजट प्रस्तुत करती है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विकास के लिए धन आवंटित किया जाता है।
औद्योगिक विकास और नीतियाँ
- राज्य गठन के बाद औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए विशेष औद्योगिक पैकेज (2003) केंद्र सरकार द्वारा दिया गया था, जिससे राज्य में महत्वपूर्ण निवेश आया।
- सिडकुल (SIDCUL – राज्य अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास निगम उत्तराखण्ड लिमिटेड) की स्थापना 2002 में औद्योगिक क्षेत्रों के विकास के लिए की गई। प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र: पंतनगर, हरिद्वार, सितारगंज, सेलाकुई (देहरादून)।
- राज्य सरकार द्वारा MSME नीति, स्टार्ट-अप नीति, मेगा इंडस्ट्रियल एंड इन्वेस्टमेंट पॉलिसी, पर्यटन नीति, सौर ऊर्जा नीति जैसी विभिन्न क्षेत्र-विशिष्ट नीतियाँ लागू की गई हैं।
- “ईज ऑफ डूइंग बिजनेस” में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं।
- “सिंगल विंडो सिस्टम” के माध्यम से निवेशकों को सुविधाएँ प्रदान की जा रही हैं।
राज्य की जीडीपी वृद्धि के लिए सरकारी योजनाएँ और पहलें
उत्तराखंड सरकार राज्य की जीडीपी वृद्धि और समग्र आर्थिक विकास के लिए विभिन्न योजनाओं और पहलों का क्रियान्वयन कर रही है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
- निवेश प्रोत्साहन (Investment Promotion):
- उत्तराखंड निवेशक शिखर सम्मेलन (Uttarakhand Investors Summit): राज्य में निवेश आकर्षित करने के लिए समय-समय पर आयोजन।
- विभिन्न क्षेत्रों के लिए विशिष्ट निवेश नीतियाँ (जैसे पर्यटन, उद्योग, आईटी, नवीकरणीय ऊर्जा)।
- निवेशकों को आकर्षित करने के लिए रियायतें और प्रोत्साहन।
- बुनियादी ढाँचा विकास (Infrastructure Development):
- चारधाम ऑल वेदर रोड परियोजना और अन्य सड़क संपर्क सुधार परियोजनाएँ।
- ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन परियोजना।
- हवाई अड्डों का विकास और उड़ान योजना के तहत क्षेत्रीय हवाई संपर्क में सुधार।
- औद्योगिक क्षेत्रों और लॉजिस्टिक्स पार्कों का विकास।
- पर्यटन विकास (Tourism Development):
- 13 डिस्ट्रिक्ट 13 डेस्टिनेशन योजना: प्रत्येक जिले में नए पर्यटन स्थलों का विकास।
- होमस्टे योजना को बढ़ावा देना।
- इको-टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, वेलनेस टूरिज्म पर विशेष ध्यान।
- धार्मिक पर्यटन स्थलों का विकास और सुविधाओं में सुधार।
- कृषि और बागवानी विकास (Agriculture and Horticulture Development):
- जैविक कृषि अधिनियम और जैविक खेती को बढ़ावा।
- एकीकृत आदर्श कृषि ग्राम योजना।
- उच्च मूल्य वाली फसलों, फलों और फूलों के उत्पादन को प्रोत्साहन।
- कोल्ड स्टोरेज और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और अन्य किसान कल्याणकारी योजनाएँ।
- एमएसएमई और स्टार्ट-अप को बढ़ावा (Promotion of MSMEs and Start-ups):
- मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना और अन्य उद्यमिता विकास कार्यक्रम।
- स्टार्ट-अप उत्तराखंड नीति के तहत वित्तीय सहायता और मार्गदर्शन।
- “वोकल फॉर लोकल” को प्रोत्साहन।
- कौशल विकास (Skill Development):
- उत्तराखंड कौशल विकास मिशन के माध्यम से युवाओं को विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षण।
- उद्योगों की मांग के अनुरूप कौशल विकास कार्यक्रम।
- डिजिटल उत्तराखंड (Digital Uttarakhand):
- ई-गवर्नेंस, डिजिटल साक्षरता और आईटी सेवाओं का विस्तार।
अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ
- पर्वतीय क्षेत्रों का पिछड़ापन: मैदानी जिलों की तुलना में पर्वतीय जिलों में आर्थिक विकास और बुनियादी सुविधाओं का अभाव।
- पलायन: रोजगार और बेहतर अवसरों की तलाश में पर्वतीय क्षेत्रों से युवाओं का मैदानी क्षेत्रों या अन्य राज्यों में पलायन एक गंभीर समस्या है।
- प्राकृतिक आपदाएँ: भूस्खलन, बाढ़ और भूकंप जैसी आपदाएँ अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुँचाती हैं।
- कृषि क्षेत्र की समस्याएँ: छोटी और बिखरी जोतें, सिंचाई सुविधाओं की कमी, जंगली जानवरों से फसलों को नुकसान, विपणन सुविधाओं का अभाव।
- पर्यावरण और विकास में संतुलन: विकास परियोजनाओं, विशेषकर जलविद्युत और खनन, के कारण पर्यावरणीय चिंताएँ।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क, रेल और संचार नेटवर्क का अपर्याप्त विकास।
भविष्य की संभावनाएँ और रणनीतियाँ
- पर्यटन का सतत विकास: इको-टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, वेलनेस टूरिज्म को बढ़ावा देना।
- बागवानी और खाद्य प्रसंस्करण: उच्च मूल्य वाली फसलों और जैविक उत्पादों को बढ़ावा देना।
- नवीकरणीय ऊर्जा: सौर और लघु जलविद्युत परियोजनाओं का विकास।
- सूचना प्रौद्योगिकी और कौशल विकास: युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करना।
- बुनियादी ढाँचे का विकास: सड़क, रेल और हवाई संपर्क में सुधार।
- पलायन को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था में विकास की अपार संभावनाएं हैं, विशेषकर पर्यटन, बागवानी, नवीकरणीय ऊर्जा और सेवा क्षेत्र में। राज्य सरकार द्वारा इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न नीतियां और योजनाएं चलाई जा रही हैं। सतत और समावेशी विकास के माध्यम से ही राज्य अपनी आर्थिक चुनौतियों का सामना कर सकता है और अपने नागरिकों के जीवन स्तर में सुधार ला सकता है।