उत्तराखंड, अपनी अद्वितीय प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और पवित्र तीर्थ स्थलों के कारण भारत के प्रमुख पर्यटन राज्यों में से एक है। राज्य सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए विभिन्न योजनाओं और पहलों का क्रियान्वयन कर रही है, ताकि सतत पर्यटन सुनिश्चित किया जा सके और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिले।
उत्तराखंड में पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण योजनाएँ
- उत्तराखंड में पर्यटन राज्य की आय का एक प्रमुख स्रोत है और यह बड़ी संख्या में रोजगार भी प्रदान करता है।
- राज्य में धार्मिक पर्यटन, साहसिक पर्यटन, प्रकृति पर्यटन, स्वास्थ्य एवं कल्याण पर्यटन (योग, आयुर्वेद), ग्रामीण पर्यटन और सांस्कृतिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं।
- उत्तराखंड पर्यटन विकास बोर्ड (UTDB) राज्य में पर्यटन के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए नोडल एजेंसी है।
- सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए संस्कृति विभाग और पुरातत्व विभाग कार्यरत हैं।
पर्यटन विकास हेतु प्रमुख योजनाएँ और पहलें
1. उत्तराखंड पर्यटन नीति (Uttarakhand Tourism Policy)
- विवरण: राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर पर्यटन नीति जारी की जाती है (जैसे 2001, 2018)। नवीनतम नीति 2018 में जारी की गई, जिसे 2023 में संशोधित किया गया।
- उद्देश्य: राज्य को एक वैश्विक पर्यटन गंतव्य के रूप में स्थापित करना, सतत और जिम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा देना, निवेश आकर्षित करना, रोजगार सृजित करना और स्थानीय समुदायों को लाभान्वित करना।
- प्रमुख प्रावधान: नए पर्यटन स्थलों का विकास, बुनियादी ढाँचे का उन्नयन, निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहन, पर्यटन उत्पादों का विविधीकरण, विपणन और प्रचार-प्रसार।
2. 13 डिस्ट्रिक्ट 13 डेस्टिनेशन योजना (लगभग 2018 से)
- उद्देश्य: राज्य के प्रत्येक 13 जिलों में कम से कम एक नए पर्यटन स्थल को विकसित करना और पर्यटन का विकेंद्रीकरण करना।
- क्रियान्वयन: UTDB और जिला प्रशासन के माध्यम से।
- उदाहरण: टिहरी झील, मुनस्यारी, चौकोरी, लोहाघाट आदि।
3. होमस्टे योजना ( पंडित दीनदयाल उपाध्याय गृह आवास विकास योजना – 2018)
- उद्देश्य: ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटकों के लिए किफायती और प्रामाणिक आवास विकल्प प्रदान करना तथा स्थानीय लोगों के लिए आय का स्रोत सृजित करना।
- प्रावधान: होमस्टे स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और विपणन सहयोग।
4. चारधाम ऑल वेदर रोड परियोजना (लगभग 2016-17 से प्रारंभ)
- उद्देश्य: यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धामों तक हर मौसम में सुगम और सुरक्षित सड़क संपर्क प्रदान करना।
- महत्व: धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने और यात्रा को सुगम बनाने में महत्वपूर्ण।
5. ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन परियोजना
- उद्देश्य: गढ़वाल के पर्वतीय क्षेत्रों को रेल नेटवर्क से जोड़ना, जिससे चारधाम यात्रा और अन्य पर्यटन स्थलों तक पहुँच आसान हो सके।
6. उड़ान योजना (UDAN – उड़े देश का आम नागरिक – 2016)
- उद्देश्य: क्षेत्रीय हवाई संपर्क को बढ़ावा देना और हवाई यात्रा को किफायती बनाना।
- उत्तराखंड में प्रभाव: पंतनगर, पिथौरागढ़ (नैनी-सैनी), चिन्यालीसौड़ जैसे हवाई अड्डों/पट्टियों को इस योजना के तहत विकसित किया गया है या किया जा रहा है।
7. साहसिक पर्यटन को बढ़ावा
- पहलें: ट्रेकिंग मार्गों का विकास और रखरखाव, रिवर राफ्टिंग, पैराग्लाइडिंग, स्कीइंग जैसे साहसिक खेलों के लिए सुरक्षा मानकों का निर्धारण और प्रशिक्षण।
- एडवेंचर टूरिज्म विंग की स्थापना।
8. इको-टूरिज्म और ग्रामीण पर्यटन
- उद्देश्य: पर्यावरण के प्रति संवेदनशील पर्यटन को बढ़ावा देना और स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करना।
- पहलें: इको-टूरिज्म सर्किट का विकास, नेचर गाइड प्रशिक्षण, ग्रामीण पर्यटन क्लस्टर।
9. पर्यटन अवस्थापना विकास योजना
- उद्देश्य: पर्यटन स्थलों पर बुनियादी सुविधाओं (जैसे सड़क, बिजली, पानी, स्वच्छता) का विकास करना।
सांस्कृतिक संरक्षण हेतु प्रमुख योजनाएँ और पहलें
उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जिसमें लोक कलाएँ, शिल्प, भाषाएँ, मेले, त्योहार और ऐतिहासिक स्मारक शामिल हैं, के संरक्षण और संवर्धन के लिए विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं।
1. संस्कृति विभाग और संबंधित संस्थान
- उत्तराखंड संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद् (2004): राज्य की कला, साहित्य और संस्कृति के संवर्धन के लिए।
- उत्तराखंड भाषा संस्थान (24 फरवरी, 2010): स्थानीय भाषाओं और बोलियों के संरक्षण और विकास के लिए।
- लोक कला एवं प्रदर्शन कला संस्थान।
- पुरातत्व विभाग: पुरातात्विक स्थलों और स्मारकों का संरक्षण।
2. संग्रहालयों की स्थापना और उन्नयन
- राज्य के विभिन्न भागों में स्थानीय इतिहास, कला और संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले संग्रहालयों की स्थापना और उनका विकास।
- उदाहरण: लोक संस्कृति संग्रहालय (भीमताल), हिमालय पुरातत्व एवं नृवंशविज्ञान संग्रहालय (श्रीनगर)।
3. लोक कलाओं और कलाकारों को प्रोत्साहन
- लोक कलाकारों को मंच प्रदान करना, उन्हें वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण देना।
- पारंपरिक लोक नृत्यों, लोकगीतों और वाद्य यंत्रों के संरक्षण के लिए कार्यशालाएँ और कार्यक्रम।
- गुरु-शिष्य परंपरा को बढ़ावा देना।
4. हस्तशिल्प और हथकरघा का संरक्षण एवं विकास
- पारंपरिक शिल्पों (जैसे काष्ठ शिल्प, ऐपण, रिंगाल शिल्प, ऊनी वस्त्र) को पुनर्जीवित करना और कारीगरों को बाजार उपलब्ध कराना।
- उत्तराखंड हथकरघा एवं हस्तशिल्य विकास परिषद् (UHHDC)।
- “हिमाद्री” ब्रांड के तहत स्थानीय उत्पादों का विपणन।
5. अभिलेखागार और पांडुलिपियों का संरक्षण
- ऐतिहासिक दस्तावेजों, पांडुलिपियों और अभिलेखों का डिजिटलीकरण और संरक्षण।
6. सांस्कृतिक उत्सवों और मेलों का आयोजन
- राज्य और जिला स्तर पर विभिन्न सांस्कृतिक उत्सवों, मेलों और प्रदर्शनियों का आयोजन कर स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देना।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड में पर्यटन और सांस्कृतिक संरक्षण एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। राज्य की अद्वितीय प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर ही इसके पर्यटन का मुख्य आधार है। इन धरोहरों का सतत संरक्षण करते हुए पर्यटन को इस प्रकार विकसित करना आवश्यक है कि यह पर्यावरण के अनुकूल हो, स्थानीय समुदायों को लाभान्वित करे और राज्य की विशिष्ट पहचान को अक्षुण्ण बनाए रखे।