उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का अभाव लंबे समय तक विकास में एक बड़ी बाधा रहा है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद भी, बेहतर सड़क संपर्क की मांग को लेकर कई आंदोलन हुए, जिनमें “गाड़ी सड़क आंदोलन” एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
उत्तराखंड में गाड़ी सड़क आंदोलन
- यह आंदोलन मुख्य रूप से 1939-40 के आसपास गढ़वाल क्षेत्र में केंद्रित था, हालांकि सड़क संपर्क की मांग पूरे पर्वतीय क्षेत्र में समय-समय पर उठती रही।
- आंदोलन का मुख्य उद्देश्य पर्वतीय क्षेत्रों को मोटर योग्य सड़कों से जोड़ना था ताकि आवागमन सुगम हो सके और आर्थिक विकास को गति मिल सके।
- इस आंदोलन ने स्थानीय जनता को संगठित करने और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करने में भी भूमिका निभाई।
आंदोलन की पृष्ठभूमि
- ब्रिटिश शासनकाल में पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का विकास मुख्यतः प्रशासनिक और सैन्य आवश्यकताओं तक सीमित था। आम जनता के लिए सुगम यातायात के साधनों का अभाव था।
- पर्वतीय क्षेत्रों के निवासी अपने उत्पादों को बाजारों तक पहुँचाने, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँचने तथा बाहरी दुनिया से जुड़ने के लिए पैदल मार्गों और घोड़ों-खच्चरों पर निर्भर थे।
- सड़कों के अभाव के कारण क्षेत्र का आर्थिक विकास अवरुद्ध था और लोगों का जीवन अत्यंत कठिन था।
- 20वीं सदी की शुरुआत से ही विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता सड़कों की मांग उठाते रहे थे।
आंदोलन का स्वरूप और प्रमुख घटनाएँ
- 1938-1940 के दौरान यह आंदोलन विशेष रूप से सक्रिय हुआ।
- इसका नेतृत्व मुख्य रूप से टिहरी राज्य प्रजामंडल और अन्य स्थानीय संगठनों ने किया, हालांकि ब्रिटिश गढ़वाल में भी इसकी गूंज सुनाई दी।
- आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र लैंसडाउन (पौड़ी गढ़वाल) के निकटवर्ती क्षेत्र थे।
- श्रीदेव सुमन ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी यात्राओं और लेखों के माध्यम से सड़कों की आवश्यकता को प्रमुखता से उठाया।
- आंदोलनकारियों ने सभाओं, प्रदर्शनों, ज्ञापनों और सत्याग्रह जैसे तरीकों का इस्तेमाल किया।
- “गाड़ी सड़क नहीं तो वोट नहीं” जैसे नारे भी इस दौरान प्रचलित हुए, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सड़कों के महत्व को दर्शाते हैं।
- 1939 में लैंसडाउन में आयोजित एक सभा में सड़क निर्माण की मांग को लेकर प्रस्ताव पारित किया गया था।
- 1940 में डाडामंडी (पौड़ी गढ़वाल) में सड़क निर्माण की मांग को लेकर एक बड़ा प्रदर्शन हुआ, जिसमें कई लोगों ने गिरफ्तारी दी। इसे “डाडामंडी का गाड़ी सड़क आंदोलन” भी कहा जाता है।
- इस आंदोलन का प्रभाव यह हुआ कि ब्रिटिश सरकार और टिहरी रियासत पर सड़कों के निर्माण के लिए दबाव बढ़ा।
आंदोलन का महत्व और परिणाम
- यह आंदोलन उत्तराखंड में जन-जागरूकता और संगठित विरोध का एक प्रारंभिक उदाहरण था।
- इसने पर्वतीय क्षेत्रों के विकास के लिए बुनियादी ढांचे (सड़क संपर्क) के महत्व को रेखांकित किया।
- हालांकि आंदोलन के तत्काल परिणाम सीमित रहे, लेकिन इसने भविष्य में सड़क निर्माण की योजनाओं के लिए एक आधार तैयार किया।
- इस आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम की व्यापक भावना के साथ जुड़कर स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय पटल पर लाने में भी मदद की।
- स्वतंत्रता के बाद उत्तराखंड में सड़क नेटवर्क के विस्तार में इस आंदोलन की प्रेरणा और मांगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
निष्कर्ष (Conclusion)
उत्तराखंड का गाड़ी सड़क आंदोलन केवल सड़कों के निर्माण की मांग तक सीमित नहीं था, बल्कि यह पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की विकास की आकांक्षाओं और बेहतर जीवन की चाह का भी प्रतीक था। इसने दर्शाया कि कैसे बुनियादी सुविधाओं का अभाव सामाजिक और राजनीतिक चेतना को जन्म दे सकता है और संगठित प्रयासों से परिवर्तन की नींव रखी जा सकती है।