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रोजगार की प्रवृत्तियां (Employment Trends)

उत्तराखंड में रोजगार की प्रवृत्तियाँ (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तराखंड में रोजगार की प्रवृत्तियाँ राज्य की आर्थिक संरचना, भौगोलिक विशेषताओं और विकासात्मक प्राथमिकताओं को दर्शाती हैं। राज्य गठन के बाद से, रोजगार के अवसरों में वृद्धि और बेरोजगारी की दर को कम करना सरकार के लिए एक प्रमुख चुनौती और लक्ष्य रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार की बदलती प्रवृत्तियों का अध्ययन राज्य की मानव संसाधन विकास और आर्थिक योजना के लिए महत्वपूर्ण है।

उत्तराखंड में रोजगार की प्रवृत्तियाँ: एक सिंहावलोकन

कुछ त्वरित तथ्य (Quick Facts):
  • उत्तराखंड की अधिकांश कार्यशील जनसंख्या अभी भी प्राथमिक क्षेत्र (कृषि एवं संबद्ध गतिविधियाँ) पर निर्भर है, हालांकि इसका योगदान राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) में अपेक्षाकृत कम है।
  • सेवा क्षेत्र (तृतीयक क्षेत्र) GSDP में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है और रोजगार सृजन का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन रहा है।
  • पर्यटन और आतिथ्य उद्योग राज्य में रोजगार का एक प्रमुख चालक है।
  • पलायन (विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों से) रोजगार की प्रवृत्तियों और श्रम बल की उपलब्धता को प्रभावित करता है।
  • सरकार द्वारा कौशल विकास और उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं।
  • राज्य में बेरोजगारी दर समय-समय पर राष्ट्रीय औसत के आसपास या उससे अधिक रही है, विशेषकर शिक्षित युवाओं में। (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण – PLFS के आंकड़ों का संदर्भ लें)।

1. क्षेत्रवार रोजगार वितरण (Sector-wise Employment Distribution)

उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है, और इनमें रोजगार का वितरण इस प्रकार है:

  • प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector):
    • इसमें कृषि, वानिकी, पशुपालन, मत्स्य पालन और खनन शामिल हैं।
    • राज्य की लगभग 40-45% (अनुमानित, PLFS आंकड़ों के अनुसार भिन्न हो सकता है) कार्यशील जनसंख्या अभी भी इस क्षेत्र पर निर्भर है, खासकर ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों में।
    • GSDP में इसका योगदान लगभग 10-12% है, जो रोजगार में हिस्सेदारी की तुलना में कम है, यह प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment) और निम्न उत्पादकता को इंगित करता है।
  • द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector):
    • इसमें विनिर्माण (Manufacturing), निर्माण (Construction) और विद्युत, गैस एवं जलापूर्ति शामिल हैं।
    • राज्य गठन के बाद विशेष औद्योगिक पैकेज के कारण हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर, देहरादून जैसे मैदानी जिलों में औद्योगिक विकास हुआ है, जिससे इस क्षेत्र में रोजगार बढ़ा है।
    • GSDP में इसका योगदान लगभग 45-50% है, जो काफी महत्वपूर्ण है।
    • रोजगार में इसकी हिस्सेदारी लगभग 18-20% (अनुमानित) है।
  • तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector) / सेवा क्षेत्र (Service Sector):
    • इसमें व्यापार, होटल एवं रेस्तरां (पर्यटन), परिवहन, भंडारण, संचार, वित्तीय सेवाएँ, रियल एस्टेट, लोक प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सेवाएँ शामिल हैं।
    • यह क्षेत्र GSDP में सर्वाधिक योगदान (लगभग 40-45%) करता है और रोजगार सृजन का सबसे तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है।
    • रोजगार में इसकी हिस्सेदारी लगभग 35-40% (अनुमानित) है और इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है।

2. प्रमुख रोजगार प्रवृत्तियाँ एवं विशेषताएँ

  • कृषि पर निर्भरता में कमी: धीरे-धीरे कृषि पर निर्भर कार्यबल का प्रतिशत कम हो रहा है और लोग गैर-कृषि क्षेत्रों की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन यह परिवर्तन धीमा है।
  • पर्यटन क्षेत्र का महत्व: पर्यटन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बड़ी संख्या में रोजगार प्रदान करता है (जैसे होटल, गाइड, परिवहन, हस्तशिल्प)। होमस्टे योजना जैसी पहलों से ग्रामीण क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
  • औद्योगिक विकास का क्षेत्रीय असंतुलन: अधिकांश औद्योगिक रोजगार मैदानी जिलों में केंद्रित हैं, जबकि पर्वतीय जिले औद्योगिक विकास में पीछे हैं।
  • सेवा क्षेत्र का प्रभुत्व: शिक्षा, स्वास्थ्य, सूचना प्रौद्योगिकी और सरकारी सेवाओं में रोजगार के अवसर बढ़े हैं।
  • सरकारी नौकरी का आकर्षण: राज्य में सरकारी नौकरियों के प्रति युवाओं में अत्यधिक आकर्षण है, जिससे प्रतिस्पर्धा अधिक है।
  • स्वरोजगार और उद्यमिता: सरकार द्वारा स्टार्ट-अप नीति, मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना जैसी पहलों से स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन इसमें अभी और गति लाने की आवश्यकता है।
  • पलायन का प्रभाव:
    • आउट-माइग्रेशन (बहिर्प्रवासन): बेहतर रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों और अन्य राज्यों की ओर युवाओं का पलायन एक बड़ी चुनौती है। इससे पर्वतीय क्षेत्रों में श्रम शक्ति की कमी और कृषि भूमि का बंजर होना (घोस्ट विलेज) जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • इन-माइग्रेशन (अंतःप्रवासन): मैदानी औद्योगिक क्षेत्रों में अन्य राज्यों से श्रमिकों का आगमन भी देखा जाता है।
  • महिला श्रम बल भागीदारी (Female Labour Force Participation – FLFP): उत्तराखंड में FLFP दर राष्ट्रीय औसत से बेहतर रही है, विशेषकर कृषि और संबद्ध गतिविधियों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। हालांकि, संगठित क्षेत्र में उनकी भागीदारी अभी भी कम है।
  • कौशल विकास की आवश्यकता (Skill Gap): उद्योग की मांगों और उपलब्ध श्रम बल के कौशल के बीच अंतर (स्किल गैप) एक प्रमुख मुद्दा है। उत्तराखंड कौशल विकास मिशन इस दिशा में कार्यरत है।
  • मौसमी रोजगार: पर्यटन और कृषि जैसे कुछ क्षेत्रों में रोजगार मौसमी प्रकृति का होता है।
  • असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व: राज्य की अधिकांश कार्यशील जनसंख्या असंगठित क्षेत्र में कार्यरत है, जहाँ सामाजिक सुरक्षा और नियमित आय का अभाव होता है।

3. रोजगार सृजन हेतु सरकारी पहल एवं योजनाएँ

  • मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना (MMSY) एवं नैनो उद्यम योजना: युवाओं को स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन।
  • उत्तराखंड स्टार्ट-अप नीति: नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देना।
  • उत्तराखंड कौशल विकास मिशन (UKSDM): युवाओं को विभिन्न ट्रेडों में कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना।
  • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) और दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना (DDU-GKY) का क्रियान्वयन।
  • औद्योगिक निवेश को प्रोत्साहन: नई औद्योगिक नीतियाँ, सिंगल विंडो सिस्टम, और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में सुधार।
  • पर्यटन विकास योजनाएँ: होमस्टे योजना, नए पर्यटन स्थलों का विकास, एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा।
  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर।
  • विभिन्न विभागों द्वारा सरकारी नौकरियों के लिए भर्ती प्रक्रियाएँ।
  • पलायन आयोग (अब ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग) द्वारा पलायन रोकने और रिवर्स माइग्रेशन को प्रोत्साहित करने हेतु सुझाव।

4. रोजगार क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ

  • उच्च बेरोजगारी दर, विशेषकर शिक्षित युवाओं में।
  • कौशल की कमी (Skill Mismatch): उद्योग की आवश्यकता के अनुरूप कुशल श्रमबल का अभाव।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के सीमित अवसर और आर्थिक गतिविधियों का अभाव।
  • औद्योगिक विकास का असमान वितरण।
  • पलायन के कारण मानव संसाधन की हानि।
  • कृषि क्षेत्र में निम्न उत्पादकता और प्रच्छन्न बेरोजगारी।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों की कमी।
  • आधारभूत संरचना (सड़क, बिजली, इंटरनेट कनेक्टिविटी) का अभाव, विशेषकर दूरस्थ क्षेत्रों में।

5. भविष्य की दिशा एवं सुझाव

  • कृषि और संबद्ध क्षेत्रों (बागवानी, पशुपालन, मत्स्य पालन, खाद्य प्रसंस्करण) में मूल्य संवर्धन और विपणन पर ध्यान केंद्रित करना।
  • पर्यटन को और अधिक टिकाऊ और रोजगारोन्मुखी बनाना, ग्रामीण पर्यटन और इको-टूरिज्म को बढ़ावा देना।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में लघु और कुटीर उद्योगों तथा सेवा क्षेत्र आधारित उद्यमों को प्रोत्साहित करना।
  • कौशल विकास कार्यक्रमों को उद्योग की मांग के अनुरूप बनाना और प्लेसमेंट सहायता प्रदान करना।
  • रिवर्स माइग्रेशन को प्रोत्साहित करने के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में बेहतर सुविधाएँ और अवसर सृजित करना।
  • सूचना प्रौद्योगिकी और डिजिटल सेवाओं का विस्तार।
  • नवीकरणीय ऊर्जा और पर्यावरण के अनुकूल उद्योगों में निवेश को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तराखंड में रोजगार सृजन एक सतत और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। राज्य की विशिष्ट भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए एक समग्र और बहु-आयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। कृषि विविधीकरण, पर्यटन विकास, कौशल उन्नयन, उद्यमिता प्रोत्साहन और पर्वतीय क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देकर ही राज्य में रोजगार की प्रवृत्तियों को सकारात्मक दिशा दी जा सकती है और सतत आर्थिक विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।

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