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स्वास्थ्य की दशाएं (Health in Uttarakhand)

उत्तराखंड में स्वास्थ्य की दशाएँ (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति राज्य के नागरिकों के जीवन स्तर और मानव विकास सूचकांकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियाँ, दूरस्थ ग्रामीण आबादी और सीमित संसाधनों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच और गुणवत्ता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती रही है। राज्य गठन के बाद से इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं।

उत्तराखंड में स्वास्थ्य की दशाएँ: एक सिंहावलोकन

कुछ त्वरित तथ्य (Quick Facts):
  • उत्तराखंड में शिशु मृत्यु दर (IMR) और मातृ मृत्यु दर (MMR) में पिछले वर्षों में कमी आई है, लेकिन अभी भी सुधार की गुंजाइश है। (SRS के नवीनतम आंकड़ों का संदर्भ लें)।
  • राज्य में सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।
  • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), ऋषिकेश राज्य में एक प्रमुख तृतीयक देखभाल स्वास्थ्य संस्थान है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत योजना जैसी केंद्रीय योजनाएँ राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच और डॉक्टरों की उपलब्धता एक प्रमुख चुनौती बनी हुई है।
  • राज्य में 108 आपातकालीन एम्बुलेंस सेवा (पूर्व में दीनदयाल उपाध्याय 108 आपातकालीन सेवा) जीवन रक्षक साबित हुई है।

1. स्वास्थ्य सेवाओं का ढाँचा (Health Infrastructure)

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं का त्रि-स्तरीय ढाँचा है:

  • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ (Primary Healthcare):
    • उप-केंद्र (Sub-Centres): ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहली कड़ी।
    • प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHCs): उप-केंद्रों से रेफरल और बुनियादी चिकित्सा सुविधाएँ।
    • सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHCs): PHCs से रेफरल, विशेषज्ञ चिकित्सा सुविधाएँ (जैसे स्त्री रोग, बाल रोग, सर्जरी)। ये 30 बिस्तरों वाले अस्पताल होते हैं।
  • द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाएँ (Secondary Healthcare):
    • जिला अस्पताल (District Hospitals): जिलों में प्रमुख रेफरल अस्पताल, अधिक विशेषज्ञता वाली चिकित्सा सुविधाएँ।
    • उप-जिला अस्पताल (Sub-District Hospitals) / बेस अस्पताल: जिला अस्पतालों का भार कम करने और पहुँच बढ़ाने के लिए।
  • तृतीयक स्वास्थ्य सेवाएँ (Tertiary Healthcare):
    • राजकीय मेडिकल कॉलेज एवं संबद्ध अस्पताल: देहरादून, हल्द्वानी, श्रीनगर, अल्मोड़ा।
    • अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), ऋषिकेश: सुपर-स्पेशियलिटी चिकित्सा सुविधाएँ और अनुसंधान।
    • प्रमुख निजी अस्पताल।
  • अन्य स्वास्थ्य संरचनाएँ:
    • आयुष (AYUSH) चिकित्सालय: आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी चिकित्सा सुविधाएँ।
    • महिला चिकित्सालय, टी.बी. अस्पताल, कुष्ठ रोग अस्पताल आदि।

2. प्रमुख स्वास्थ्य संकेतक (Key Health Indicators)

राज्य के स्वास्थ्य संकेतकों में पिछले कुछ वर्षों में सुधार देखा गया है, लेकिन अभी भी कई क्षेत्रों में ध्यान देने की आवश्यकता है। (नवीनतम SRS, NFHS और राज्य सरकार के आंकड़ों का संदर्भ लें)।

  • शिशु मृत्यु दर (IMR): प्रति 1000 जीवित जन्मों पर एक वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु। (उदाहरण: SRS 2020 के अनुसार उत्तराखंड में IMR 27 था)।
  • मातृ मृत्यु दर (MMR): प्रति 1,00,000 जीवित जन्मों पर गर्भावस्था या प्रसव संबंधी कारणों से माताओं की मृत्यु। (उदाहरण: SRS 2018-20 के अनुसार उत्तराखंड में MMR 103 था)।
  • कुल प्रजनन दर (TFR): एक महिला द्वारा अपने प्रजनन काल में औसतन जन्म दिए जाने वाले बच्चों की संख्या। (NFHS-5, 2019-21 के अनुसार उत्तराखंड में TFR 1.9 था)।
  • संस्थागत प्रसव (Institutional Deliveries): NFHS-5 के अनुसार उत्तराखंड में लगभग 85.2% प्रसव संस्थागत होते हैं।
  • टीकाकरण कवरेज (Immunization Coverage): बच्चों का पूर्ण टीकाकरण।
  • जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy): जन्म के समय औसत जीवन प्रत्याशा।
  • कुपोषण की स्थिति (Malnutrition Status): बच्चों में स्टंटिंग, वेस्टिंग और कम वजन।

3. स्वास्थ्य सेवाओं के विकास हेतु सरकारी पहल एवं योजनाएँ

क. राष्ट्रीय स्तर की योजनाएँ (उत्तराखंड में क्रियान्वित)

  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM): इसके अंतर्गत राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM, 2005) और राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM, 2013) शामिल हैं। इसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराना है।
    • आशा (ASHA – Accredited Social Health Activist) कार्यकर्ताएँ ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की महत्वपूर्ण कड़ी हैं।
  • आयुष्मान भारत योजना:
    • इसके दो घटक हैं:
      1. स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्र (Health and Wellness Centres – HWCs): उप-केंद्रों और PHCs को HWC में परिवर्तित कर व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करना।
      2. प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY): गरीब और कमजोर परिवारों को प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा कवर। उत्तराखंड में इसे “अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना” के रूप में विस्तारित किया गया है, जिसमें राज्य के सभी परिवारों को कवर करने का लक्ष्य है।
  • जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK): गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएँ।
  • राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK): बच्चों में जन्मजात विकृतियों, बीमारियों और विकासात्मक देरी की शीघ्र पहचान और उपचार।
  • राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP), राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (NLEP), राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NVBDCP) आदि।

ख. राज्य स्तरीय पहल एवं योजनाएँ

  • अटल आयुष्मान उत्तराखंड योजना: PM-JAY का राज्य में विस्तारित रूप, जो सभी परिवारों को स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करता है।
  • 108 आपातकालीन एम्बुलेंस सेवा (पूर्व में दीनदयाल उपाध्याय 108 आपातकालीन सेवा): 15 मई 2008 को प्रारंभ। यह आपातकालीन चिकित्सा परिवहन सेवा प्रदान करती है।
  • खुशियों की सवारी (102 सेवा): गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को घर से अस्पताल और अस्पताल से घर तक निःशुल्क परिवहन।
  • मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना (MSBY): अटल आयुष्मान योजना से पूर्व राज्य की अपनी स्वास्थ्य बीमा योजना।
  • टेलीमेडिसिन एवं टेलीरेडियोलॉजी सेवाएँ: दूरस्थ क्षेत्रों में विशेषज्ञ चिकित्सा परामर्श उपलब्ध कराना।
  • पर्वतीय क्षेत्रों में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विशेष प्रोत्साहन और बांड व्यवस्था।
  • राज्य में 2005 में उत्तरांचल स्वास्थ्य एवं जनसंख्या नीति लागू की गई थी।
  • राज्य औषधि एवं जड़ी-बूटी नीति भी स्वास्थ्य से संबंधित है।

4. स्वास्थ्य क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ

  • दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियाँ: पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच और परिवहन एक बड़ी चुनौती है।
  • मानव संसाधन की कमी: विशेषकर पर्वतीय और दूरस्थ क्षेत्रों में डॉक्टरों, विशेषज्ञों और पैरामेडिकल स्टाफ की भारी कमी।
  • आधारभूत संरचना का अभाव: कई स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त भवन, उपकरण और दवाओं की कमी।
  • पलायन: स्वास्थ्य सेवाओं की कमी भी पलायन का एक कारण है, और पलायन से स्वास्थ्य कर्मियों की कमी और बढ़ जाती है।
  • जागरूकता की कमी: स्वास्थ्य, स्वच्छता और सरकारी योजनाओं के प्रति जागरूकता का अभाव।
  • वित्तीय संसाधनों की कमी: स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए बजट आवंटन और उसका प्रभावी उपयोग।
  • प्राकृतिक आपदाओं के समय स्वास्थ्य सेवाएँ: आपदाओं के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं को सुचारू रखना एक बड़ी चुनौती।
  • गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases – NCDs) का बढ़ता बोझ: जैसे हृदय रोग, मधुमेह, कैंसर।
  • मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की अपर्याप्तता।

निष्कर्ष (Conclusion)

उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है, लेकिन अभी भी कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं। पर्वतीय क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच, गुणवत्ता और सामर्थ्य में सुधार करना आवश्यक है। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन, मानव संसाधनों के विकास, प्रौद्योगिकी के उपयोग और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से राज्य के सभी नागरिकों के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित किया जा सकता है।

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