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उत्तर-मौर्य काल – शुंग वंश (Post-Mauryan Period – Shunga Dynasty)

मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद (लगभग 185 ईसा पूर्व), भारतीय उपमहाद्वीप में राजनीतिक अस्थिरता का दौर शुरू हुआ। इस अवधि को उत्तर-मौर्य काल (Post-Mauryan Period) के रूप में जाना जाता है। इस दौरान कई छोटे और मध्यम आकार के राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से कुछ स्थानीय राजवंश थे और कुछ विदेशी आक्रमणकारी। इनमें शुंग, कण्व, इंडो-ग्रीक, शक और कुषाण प्रमुख थे। यह नोट्स शुंग वंश पर केंद्रित है, जिसने मौर्यों के बाद मगध पर शासन किया।

1. शुंग वंश (Sungas)

शुंग वंश ने लगभग 185 ईसा पूर्व से 73 ईसा पूर्व तक शासन किया। यह ब्राह्मण राजवंश था, जिसने मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद केंद्रीय सत्ता को संभाला।

1.1. स्थापना और समयकाल (Establishment and Period)

  • संस्थापक: पुष्यमित्र शुंग।
  • समयकाल: लगभग 185 ईसा पूर्व – 73 ईसा पूर्व।
  • पृष्ठभूमि: पुष्यमित्र शुंग अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ का सेनापति था। उसने 185 ईसा पूर्व में बृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की। यह घटना मौर्य साम्राज्य के अंत और एक नए ब्राह्मण राजवंश के उदय का प्रतीक थी।
  • राजधानी: पाटलिपुत्र।

1.2. प्रमुख शासक (Prominent Rulers)

  • पुष्यमित्र शुंग (लगभग 185-149 ईसा पूर्व):
    • शुंग वंश का सबसे शक्तिशाली शासक।
    • उसने अपने शासनकाल में दो अश्वमेध यज्ञ किए, जिसकी जानकारी पतंजलि के ‘महाभाष्य’ से मिलती है।
    • उसने बैक्ट्रियन यूनानियों के आक्रमणों को सफलतापूर्वक रोका, जिसका उल्लेख ‘गार्गी संहिता’ और ‘मालविकाग्निमित्रम्’ में मिलता है।
    • बौद्ध ग्रंथों में उसे बौद्ध धर्म का उत्पीड़नकर्ता बताया गया है, हालांकि इसके पुरातात्विक प्रमाण कम हैं। सांची और भरहुत स्तूपों का विस्तार और मरम्मत उसके काल में हुई।
  • अग्निमित्र (लगभग 149-141 ईसा पूर्व):
    • पुष्यमित्र का पुत्र और उत्तराधिकारी।
    • कालिदास के प्रसिद्ध नाटक ‘मालविकाग्निमित्रम्’ का नायक। यह नाटक उसके और मालविका के प्रेम प्रसंग पर आधारित है।
  • भागभद्र (लगभग 110 ईसा पूर्व):
    • शुंग वंश का एक महत्वपूर्ण शासक।
    • उसके दरबार में यूनानी राजदूत हेलियोडोरस आया था, जिसने विदिशा (बेसनगर) में ‘गरुड़ स्तंभ’ का निर्माण करवाया और स्वयं को ‘परम भागवत’ बताया। यह वैष्णव धर्म के प्रभाव को दर्शाता है।
  • देवभूति (लगभग 83-73 ईसा पूर्व):
    • शुंग वंश का अंतिम शासक।
    • उसकी हत्या उसके अमात्य वासुदेव कण्व ने कर दी, जिसने कण्व वंश की स्थापना की।

1.3. प्रशासन और समाज (Administration and Society)

  • प्रशासन: मौर्यों की तुलना में शुंगों का साम्राज्य छोटा था और प्रशासन भी कम केंद्रीकृत था। प्रांतीय गवर्नरों को अधिक स्वायत्तता प्राप्त थी।
  • सामाजिक स्थिति:
    • यह काल ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान का काल माना जाता है।
    • ‘मनुस्मृति’ का वर्तमान स्वरूप इसी काल में सामने आया।
    • वर्ण व्यवस्था और आश्रम व्यवस्था को पुनः बल मिला।

1.4. सांस्कृतिक विकास (Cultural Developments)

  • कला और वास्तुकला:
    • भरहुत स्तूप: पुष्यमित्र शुंग ने भरहुत स्तूप की वेदिका (रेलिंग) और तोरण (गेटवे) का निर्माण करवाया। इसकी कला शैली में लोक कला का प्रभाव स्पष्ट दिखता है।
    • सांची स्तूप: अशोक द्वारा निर्मित सांची के महास्तूप का विस्तार और उसकी वेदिका का निर्माण शुंग काल में हुआ।
    • भाजा, कार्ले और बेदसा के चैत्य और विहार: पश्चिमी दक्कन में निर्मित ये बौद्ध गुफाएँ भी शुंग काल से संबंधित हैं।
  • साहित्य:
    • संस्कृत भाषा और साहित्य का विकास हुआ।
    • पतंजलि ने पुष्यमित्र शुंग के दरबार में ‘महाभाष्य’ की रचना की, जो पाणिनि की ‘अष्टाध्यायी’ पर एक टीका है।
    • ‘मालविकाग्निमित्रम्’ (कालिदास) शुंग शासक अग्निमित्र पर आधारित है।
  • धर्म:
    • ब्राह्मण धर्म (वैदिक धर्म) का पुनरुत्थान हुआ। अश्वमेध यज्ञों का पुनः प्रचलन हुआ।
    • वैष्णव और शैव धर्मों का विकास हुआ। हेलियोडोरस का गरुड़ स्तंभ इसका प्रमाण है।
    • बौद्ध धर्म का भी सह-अस्तित्व बना रहा, जैसा कि भरहुत और सांची के स्तूपों के विस्तार से पता चलता है।

1.5. महत्व (Significance)

  • शुंग वंश ने मौर्यों के बाद केंद्रीय सत्ता को बनाए रखने का प्रयास किया, हालांकि वे मौर्यों जितने विशाल साम्राज्य का निर्माण नहीं कर सके।
  • उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों (यूनानियों) से भारत की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • यह काल ब्राह्मणवादी पुनरुत्थान और संस्कृत साहित्य तथा कला के विकास के लिए जाना जाता है।
  • यह उत्तर-मौर्य काल में भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक निरंतरता का प्रतीक था।

2. निष्कर्ष (Conclusion)

शुंग वंश ने मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय इतिहास में एक संक्रमणकालीन भूमिका निभाई। यद्यपि उनका साम्राज्य मौर्यों जितना विशाल नहीं था, फिर भी उन्होंने राजनीतिक स्थिरता लाने, विदेशी आक्रमणों का सामना करने और ब्राह्मणवादी संस्कृति व कला को संरक्षण देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह काल भारतीय इतिहास में धार्मिक और सांस्कृतिक पुनरुत्थान का साक्षी रहा।

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