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सैय्यद और लोदी वंश (Sayyid and Lodi Dynasties)

दिल्ली सल्तनत: सैय्यद और लोदी वंश (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

दिल्ली सल्तनत: सैय्यद और लोदी वंश (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)

तैमूर के आक्रमण (1398 ईस्वी) ने तुगलक वंश और दिल्ली सल्तनत को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया, जिससे राजनीतिक अस्थिरता और विखंडन का दौर शुरू हुआ। इसी पृष्ठभूमि में सैय्यद वंश और उसके बाद लोदी वंश का उदय हुआ, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत के अंतिम चरण का प्रतिनिधित्व किया।

1. सैय्यद वंश (Sayyid Dynasty) (1414-1451 ईस्वी)

यह दिल्ली सल्तनत का चौथा राजवंश था, जिसका शासनकाल तैमूर के आक्रमण के बाद की अराजकता में स्थापित हुआ।

  • संस्थापक: खिज्र खान (1414-1421 ईस्वी)।
    • वह तैमूर का प्रतिनिधि था और उसने स्वयं को तैमूर के पुत्र शाहरुख का वफादार घोषित किया।
    • उसने ‘सुल्तान’ की उपाधि धारण नहीं की, बल्कि ‘रैयत-ए-अला’ (उच्च पदस्थ) की उपाधि से संतुष्ट रहा।
    • उसने दिल्ली पर अधिकार किया और एक नए वंश की नींव डाली।
  • प्रमुख शासक:
    • खिज्र खान (1414-1421 ईस्वी):
      • एक सक्षम नेता जिसने शांति और व्यवस्था बनाए रखने का प्रयास किया।
      • उसके साम्राज्य का विस्तार दिल्ली के अतिरिक्त पंजाब तक था।
    • मुबारक शाह (1421-1434 ईस्वी):
      • खिज्र खान का पुत्र, जिसने ‘शाह’ की उपाधि धारण की।
      • उसने विद्रोहों का दमन किया और सल्तनत की स्थिति को मजबूत करने का प्रयास किया।
      • उसके शासनकाल में प्रसिद्ध इतिहासकार याह्या बिन अहमद सरहिंदी ने ‘तारीख-ए-मुबारकशाही’ की रचना की।
    • मुहम्मद शाह (1434-1443 ईस्वी):
      • एक कमजोर शासक जिसके समय में सल्तनत का पतन तेज हुआ।
      • कई प्रांतीय गवर्नरों ने अपनी स्वतंत्रता घोषित कर दी।
    • अलाउद्दीन आलम शाह (1443-1451 ईस्वी):
      • सैय्यद वंश का अंतिम शासक।
      • वह एक अयोग्य और विलासी शासक था जिसने स्वेच्छा से दिल्ली की गद्दी छोड़ दी और बदायूँ चला गया।
      • उसके राज्य त्यागने के बाद बहलोल लोदी ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया।
  • प्रशासन और स्थिति:
    • सैय्यद वंश का शासनकाल राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय शक्तियों के उदय का काल था।
    • सल्तनत का क्षेत्र दिल्ली और उसके आसपास के कुछ इलाकों तक ही सीमित हो गया था।
    • प्रशासन कमजोर था और सामंतों का प्रभाव बढ़ गया था।

2. लोदी वंश (Lodi Dynasty) (1451-1526 ईस्वी)

यह दिल्ली सल्तनत का पहला अफगान राजवंश था, जिसने भारत में एक नए राजनीतिक युग की शुरुआत की।

  • संस्थापक: बहलोल लोदी (1451-1489 ईस्वी)।
    • वह सैय्यद वंश के अंतिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह के राज्य त्याग के बाद दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
    • उसने दिल्ली सल्तनत में अफगान सरदारों की शक्ति को मजबूत किया।
    • उसने ‘बहलोली सिक्के’ जारी किए।
  • प्रमुख शासक:
    • बहलोल लोदी (1451-1489 ईस्वी):
      • उसने अपने अफगान सरदारों के साथ ‘समानता की नीति’ अपनाई और उन्हें उच्च पद दिए।
      • उसने जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में मिलाया, जो एक महत्वपूर्ण विजय थी।
      • उसने दिल्ली सल्तनत की खोई हुई प्रतिष्ठा को कुछ हद तक बहाल किया।
    • सिकंदर लोदी (1489-1517 ईस्वी):
      • बहलोल लोदी का पुत्र और लोदी वंश का सबसे महान शासक।
      • उसने अफगान सरदारों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कठोर नीतियाँ अपनाईं।
      • उसने 1504 ईस्वी में आगरा शहर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया (1506 ईस्वी में)।
      • उसने भू-राजस्व प्रणाली में सुधार किए और भूमि की माप के लिए ‘गज़-ए-सिकंदरी’ (32 इंच का पैमाना) शुरू किया।
      • उसने आंतरिक व्यापार करों को समाप्त किया और कृषि को बढ़ावा दिया।
      • वह एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसने हिंदुओं पर कठोर नीतियाँ लागू कीं, जैसे मंदिरों को नष्ट करना और ब्राह्मणों पर जजिया लगाना।
      • उसने ‘गुलरुखी’ उपनाम से फारसी में कविताएँ लिखीं।
    • इब्राहिम लोदी (1517-1526 ईस्वी):
      • सिकंदर लोदी का पुत्र और लोदी वंश का अंतिम शासक।
      • वह एक अहंकारी और अयोग्य शासक था जिसने अफगान सरदारों के साथ कठोर व्यवहार किया, जिससे वे उसके खिलाफ हो गए।
      • पानीपत का प्रथम युद्ध (1526 ईस्वी):
        • यह युद्ध इब्राहिम लोदी और मुगल शासक बाबर के बीच लड़ा गया था।
        • इब्राहिम लोदी इस युद्ध में पराजित हुआ और युद्ध के मैदान में मारा जाने वाला दिल्ली सल्तनत का एकमात्र सुल्तान था।
        • इस युद्ध में बाबर की जीत हुई, जिससे दिल्ली सल्तनत का अंत हुआ और भारत में मुगल साम्राज्य की नींव पड़ी।

3. प्रशासन और समाज (Administration and Society)

सैय्यद और लोदी काल में प्रशासन की प्रकृति सामंती रही, और अफगान सरदारों का प्रभाव बढ़ा।

  • प्रशासन:
    • सामंती व्यवस्था: अफगान सरदारों को बड़े-बड़े इक्ता दिए गए, जिससे वे अपने क्षेत्रों में शक्तिशाली हो गए।
    • केंद्रीय नियंत्रण में कमी: सैय्यद काल में केंद्रीय नियंत्रण बहुत कमजोर था, लोदी काल में सिकंदर लोदी ने इसे मजबूत करने का प्रयास किया, लेकिन इब्राहिम लोदी के समय यह फिर से कमजोर हो गया।
    • न्याय व्यवस्था: इस्लामी कानून पर आधारित थी। सिकंदर लोदी ने न्याय प्रणाली में सुधार किए।
  • समाज:
    • समाज में अफगान कुलीनों का प्रभुत्व बढ़ा।
    • हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच सह-अस्तित्व था, लेकिन सिकंदर लोदी की नीतियों के कारण कुछ हद तक धार्मिक तनाव भी बढ़ा।
    • भक्ति और सूफी आंदोलन इस काल में भी जारी रहे।

4. कला और स्थापत्य (Art and Architecture)

इस काल की स्थापत्य कला में अफगान शैली का प्रभाव देखा जाता है, जिसमें मकबरे प्रमुख थे।

  • सैय्यद और लोदी काल के मकबरे:
    • ये मकबरे अष्टकोणीय या वर्गाकार योजना पर आधारित थे।
    • लोदी गार्डन (दिल्ली): इसमें कई महत्वपूर्ण मकबरे शामिल हैं, जैसे मुहम्मद शाह का मकबरा (सैय्यद काल) और सिकंदर लोदी का मकबरा (लोदी काल)।
    • मोठ की मस्जिद: सिकंदर लोदी के वजीर द्वारा निर्मित, यह लोदी स्थापत्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • विशेषताएँ:
    • इस काल की इमारतों में दोहरे गुंबद (Double Dome) का प्रयोग शुरू हुआ, जो बाद में मुगल स्थापत्य में भी देखा गया।
    • सादे पत्थर और प्लास्टर का उपयोग किया गया।

5. पतन (Decline)

सैय्यद वंश का पतन उसकी आंतरिक कमजोरियों और क्षेत्रीय शक्तियों के उदय के कारण हुआ, जबकि लोदी वंश का अंत बाबर के आक्रमण से हुआ।

  • सैय्यद वंश का पतन:
    • कमजोर और अयोग्य शासक।
    • केंद्रीय सत्ता का अत्यधिक कमजोर होना और क्षेत्रीय गवर्नरों का स्वतंत्र होना।
    • अंतिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह का स्वेच्छा से गद्दी छोड़ना।
  • लोदी वंश का पतन:
    • इब्राहिम लोदी की अलोकप्रिय नीतियाँ: अफगान सरदारों के साथ उसका कठोर व्यवहार, जिससे उन्होंने उसके खिलाफ विद्रोह किया।
    • आंतरिक संघर्ष: लोदी साम्राज्य के भीतर अफगान सरदारों के बीच गुटबाजी और संघर्ष।
    • पानीपत का प्रथम युद्ध (1526 ईस्वी):
      • बाबर के आक्रमण ने लोदी वंश का अंत कर दिया।
      • इब्राहिम लोदी की हार ने दिल्ली सल्तनत को समाप्त कर दिया और भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

सैय्यद और लोदी वंश दिल्ली सल्तनत के अंतिम चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं। सैय्यद वंश ने तैमूर के आक्रमण के बाद की अराजकता में सल्तनत को किसी तरह जीवित रखा, लेकिन वह कमजोर और सीमित रहा। लोदी वंश, विशेषकर सिकंदर लोदी के नेतृत्व में, ने सल्तनत को कुछ हद तक पुनर्जीवित किया और अफगान शक्ति को मजबूत किया। हालांकि, इब्राहिम लोदी की अयोग्यता और बाबर के आक्रमण ने अंततः दिल्ली सल्तनत का अंत कर दिया, जिससे भारत में एक नए और शक्तिशाली मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।

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