सांस्कृतिक विकास: क्षेत्रीय साहित्य और कला (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
मध्यकालीन भारत में, मुगल साम्राज्य के केंद्रीय प्रशासन के साथ-साथ, विभिन्न क्षेत्रीय राज्यों का भी उदय हुआ। इन राज्यों ने अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान को बढ़ावा दिया, जिसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय भाषाओं, साहित्य और कला शैलियों का अभूतपूर्व विकास हुआ। यह अवधि भारतीय संस्कृति की विविधता और समृद्धि का प्रतीक है।
1. क्षेत्रीय साहित्य का विकास (Development of Regional Literature)
भक्ति आंदोलन के प्रभाव और क्षेत्रीय शासकों के संरक्षण के कारण स्थानीय भाषाओं में साहित्य का व्यापक विकास हुआ।
1.1. हिंदी साहित्य (Hindi Literature)
- भक्ति काल (14वीं-17वीं शताब्दी): हिंदी साहित्य का ‘स्वर्ण युग’ माना जाता है।
- सूरदास: ब्रजभाषा में कृष्ण भक्ति पर आधारित ‘सूरसागर’, ‘सूर सारावली’ और ‘साहित्य लहरी’ की रचना की।
- तुलसीदास: अवधी भाषा में राम भक्ति पर आधारित ‘रामचरितमानस’ की रचना की।
- कबीरदास: सधुक्कड़ी भाषा में निर्गुण भक्ति और सामाजिक सुधार पर आधारित ‘बीजक’ (साखी, सबद, रमैनी) की रचना की।
- मीराबाई: राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा में कृष्ण भक्ति के भजन (पदावली) रचे।
- रसखान: ब्रजभाषा में कृष्ण लीला पर आधारित रचनाएँ।
- रीति काल (17वीं-19वीं शताब्दी): श्रृंगार रस और काव्यशास्त्र पर जोर।
- केशवदास, बिहारी, भूषण प्रमुख कवि।
1.2. बंगाली साहित्य (Bengali Literature)
- चैतन्य महाप्रभु के भक्ति आंदोलन ने बंगाली साहित्य को समृद्ध किया।
- कृत्तिवास ओझा: ‘कृत्तिवासी रामायण’ (बंगाली रामायण) के रचयिता।
- चंडीदास: कृष्ण भक्ति पर आधारित गीत।
- बंगाली मंगलकाव्य: विभिन्न देवी-देवताओं की महिमा का वर्णन।
1.3. मराठी साहित्य (Marathi Literature)
- वारकरी संप्रदाय के संतों ने मराठी साहित्य को समृद्ध किया।
- ज्ञानेश्वर: ‘ज्ञानेश्वरी’ (भगवद गीता पर टीका) के रचयिता।
- नामदेव, एकनाथ, तुकाराम: अभंगों (भजनों) के लिए प्रसिद्ध।
1.4. पंजाबी साहित्य (Punjabi Literature)
- गुरु नानक देव और अन्य सिख गुरुओं के उपदेशों ने पंजाबी साहित्य को जन्म दिया।
- ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ, जिसमें विभिन्न संतों के छंद शामिल हैं।
- बाबा फरीद: सूफी संत, जिनके छंद गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल हैं।
1.5. गुजराती साहित्य (Gujarati Literature)
- नरसी मेहता: कृष्ण भक्ति के प्रसिद्ध गुजराती कवि।
- प्रेमानंद: ‘अख्यान’ (कथात्मक कविताएँ) के लिए प्रसिद्ध।
1.6. असमिया साहित्य (Assamese Literature)
- शंकरदेव: असम के महान संत और सुधारक, जिन्होंने ‘एकशरण धर्म’ का प्रचार किया और ‘बरगीत’ (भक्ति गीत) और ‘अंकिया नाट’ (एकांकी नाटक) की रचना की।
1.7. उड़िया साहित्य (Oriya Literature)
- सरला दास: उड़िया रामायण (‘विलंका रामायण’) और महाभारत के रचयिता।
- पंचसखा: बलराम दास, जगन्नाथ दास, अच्युतानंद दास, यशोवंत दास और अनंत दास।
1.8. कन्नड़ साहित्य (Kannada Literature)
- पुरंदरदास: कर्नाटक संगीत के जनक माने जाते हैं, जिन्होंने ‘दासवानी’ (भक्ति गीत) रचे।
- कनकदास: एक अन्य प्रमुख दासवानी कवि।
1.9. तमिल साहित्य (Tamil Literature)
- कंबन: 12वीं शताब्दी के कवि, जिन्होंने तमिल में ‘कंब रामायणम’ की रचना की।
- तिरुवल्लुवर: ‘तिरुक्कुरल’ के रचयिता (हालांकि यह प्राचीन काल का है, भक्ति आंदोलन के दौरान इसका महत्व बढ़ा)।
2. क्षेत्रीय कला का विकास (Development of Regional Art)
मुगल शैली के समानांतर, विभिन्न क्षेत्रीय शैलियों ने चित्रकला, स्थापत्य और संगीत में अपनी पहचान बनाई।
2.1. चित्रकला (Painting)
- राजपूत चित्रकला (Rajput Painting):
- राजस्थान के विभिन्न राज्यों (मेवाड़, मारवाड़, किशनगढ़, बूंदी, कोटा, जयपुर) में विकसित।
- विषय वस्तु: रामायण, महाभारत, कृष्ण लीला, दरबारी दृश्य, शिकार के दृश्य, लोक कथाएँ।
- विशेषताएँ: चमकीले रंग, भावनात्मक अभिव्यक्ति, रेखाओं की स्पष्टता।
- किशनगढ़ शैली: ‘बनी-ठनी’ चित्रकला के लिए प्रसिद्ध।
- पहाड़ी चित्रकला (Pahari Painting):
- हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राज्यों (बसोहली, कांगड़ा, गुलेर, चंबा) में विकसित।
- विषय वस्तु: कृष्ण लीला (विशेषकर भागवत पुराण और गीत गोविंद), प्रेम कहानियाँ, दरबारी दृश्य।
- विशेषताएँ: कोमल रंग, सूक्ष्म विवरण, प्राकृतिक सौंदर्य का चित्रण।
- कांगड़ा शैली: अपनी कोमलता और रंगों के सामंजस्य के लिए प्रसिद्ध।
- दक्कनी चित्रकला (Deccani Painting):
- दक्कन सल्तनतों (बीजापुर, गोलकुंडा, अहमदनगर) में विकसित।
- विशेषताएँ: फारसी, मुगल और स्थानीय शैलियों का मिश्रण। चमकीले रंग, लम्बी आकृतियाँ, समृद्ध वस्त्र।
- उदाहरण: ‘चांद बीबी पोलो खेलते हुए’।
- बंगाल स्कूल ऑफ आर्ट (Bengal School of Art): (आधुनिक काल में पुनरुत्थान, लेकिन क्षेत्रीय कला परंपराओं से जुड़ा)
2.2. क्षेत्रीय स्थापत्य (Regional Architecture)
- मुगल स्थापत्य के प्रभाव के बावजूद, क्षेत्रीय राज्यों ने अपनी विशिष्ट शैलियों का विकास किया।
- राजपूत स्थापत्य:
- विशेषताएँ: किले, महल, बावड़ियाँ, मंदिर। मजबूत और भव्य संरचनाएँ।
- उदाहरण: चित्तौड़गढ़ किला, आमेर किला, उदयपुर के महल, जयपुर का हवा महल।
- बंगाल स्थापत्य:
- विशेषताएँ: टेराकोटा का व्यापक उपयोग, झुकी हुई छतें (बांग्ला छत), दो या चार गुंबद वाले मंदिर।
- उदाहरण: विष्णुपुर के टेराकोटा मंदिर।
- दक्कनी स्थापत्य:
- विशेषताएँ: फारसी और स्थानीय शैलियों का मिश्रण। विशाल गुंबद, मेहराब, मीनारें।
- उदाहरण: गोलकुंडा किला, बीजापुर का गोल गुम्बज, चारमीनार (हैदराबाद)।
- पंजाब और सिख स्थापत्य:
- विशेषताएँ: गुंबद, मेहराब, छतरियां, भित्ति चित्र।
- उदाहरण: अमृतसर का स्वर्ण मंदिर।
2.3. संगीत और नृत्य (Music and Dance)
- शास्त्रीय संगीत:
- हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत: मुगल दरबारों में विकसित हुआ, लेकिन क्षेत्रीय शासकों ने भी इसे संरक्षण दिया।
- कर्नाटक शास्त्रीय संगीत: दक्षिण भारत में स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ। पुरंदरदास, त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितर, श्यामा शास्त्री जैसे ‘त्रिमूर्ति’ ने इसे समृद्ध किया।
- क्षेत्रीय लोक संगीत और नृत्य:
- विभिन्न क्षेत्रों में अपनी विशिष्ट लोक संगीत और नृत्य शैलियाँ विकसित हुईं, जो स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को दर्शाती थीं।
- उदाहरण: कथक (उत्तर भारत, मुगल दरबारों में विकसित), भरतनाट्यम (तमिलनाडु), कथकली (केरल), ओडिसी (ओडिशा)।
3. निष्कर्ष (Conclusion)
मध्यकालीन भारत में क्षेत्रीय साहित्य और कला का विकास भारतीय संस्कृति की विविधता और जीवंतता का प्रमाण है। भक्ति और सूफी आंदोलनों के साथ-साथ क्षेत्रीय शासकों के संरक्षण ने स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा दिया, जिससे अमर साहित्यिक कृतियों का सृजन हुआ। इसी प्रकार, चित्रकला, स्थापत्य और संगीत में भी विशिष्ट क्षेत्रीय शैलियों का उदय हुआ, जिन्होंने भारतीय कलात्मक विरासत को और समृद्ध किया।