यूरोपीय शक्तियों का आगमन: पुर्तगाली (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
भारत में यूरोपीय शक्तियों के आगमन की शुरुआत पुर्तगालियों के साथ हुई। 15वीं शताब्दी के अंत में, नए समुद्री मार्गों की खोज ने यूरोपीय देशों को भारत जैसे समृद्ध पूर्वी देशों तक पहुँचने का अवसर दिया, जिससे व्यापार और उपनिवेशवाद का एक नया युग शुरू हुआ।
1. भारत आने के कारण (Reasons for Coming to India)
पुर्तगालियों के भारत आने के पीछे कई आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक कारण थे।
- मसालों का व्यापार: यूरोपीय बाजारों में मसालों (काली मिर्च, लौंग, दालचीनी आदि) की भारी मांग थी। अरब व्यापारियों का मसालों के व्यापार पर एकाधिकार था, जिससे पुर्तगाली मुक्त व्यापार मार्ग खोजना चाहते थे।
- नए समुद्री मार्ग की खोज: 1453 में तुर्कों द्वारा कुस्तुनतुनिया (कॉन्स्टेंटिनोपल) पर कब्जा करने के बाद, पारंपरिक भूमध्यसागरीय व्यापार मार्ग अवरुद्ध हो गया था, जिससे एक नए समुद्री मार्ग की आवश्यकता महसूस हुई।
- धार्मिक उद्देश्य: ईसाई धर्म का प्रचार करना और इस्लाम की बढ़ती शक्ति का मुकाबला करना भी एक महत्वपूर्ण उद्देश्य था।
- धन और शक्ति: भारत की अपार धन-संपत्ति और व्यापारिक अवसरों ने पुर्तगालियों को आकर्षित किया, जिससे वे अपनी आर्थिक और राजनीतिक शक्ति बढ़ाना चाहते थे।
- राजकुमार हेनरी ‘द नेविगेटर’ का प्रोत्साहन: पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी ने समुद्री खोजों को बहुत बढ़ावा दिया, जिससे पुर्तगाली नाविकों को प्रेरणा मिली।
2. प्रमुख पुर्तगाली यात्री (Key Portuguese Voyagers)
- बार्थोलोम्यू डियाज़ (1487 ईस्वी):
- वह पहला पुर्तगाली नाविक था जिसने अफ्रीका के दक्षिणी सिरे ‘केप ऑफ गुड होप’ (उत्तम आशा अंतरीप) की खोज की।
- हालांकि, वह भारत तक नहीं पहुँच सका।
- वास्को डी गामा (1498 ईस्वी):
- वह पहला यूरोपीय नाविक था जिसने केप ऑफ गुड होप से होते हुए भारत के लिए एक सीधा समुद्री मार्ग खोजा।
- 17 मई 1498 ईस्वी को वह भारत के पश्चिमी तट पर स्थित कालीकट (केरल) पहुँचा।
- कालीकट के हिंदू शासक ‘ज़ामोरिन’ (ज़ामोरी) ने उसका स्वागत किया।
- वास्को डी गामा ने भारत से मसाले खरीदकर यूरोपीय बाजारों में भारी मुनाफा कमाया, जिससे पुर्तगालियों को भारत में व्यापार करने के लिए प्रोत्साहन मिला।
- पेड्रो अल्वारेस कैब्राल (1500 ईस्वी):
- वास्को डी गामा के बाद भारत आने वाला दूसरा पुर्तगाली अभियान दल का नेता।
- उसने कालीकट में एक व्यापारिक फैक्ट्री स्थापित की, लेकिन स्थानीय व्यापारियों और ज़ामोरिन के साथ संघर्ष हुआ।
3. पुर्तगाली गवर्नर (Portuguese Governors)
पुर्तगालियों ने भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए गवर्नरों की नियुक्ति की।
- फ्रांसिस्को डी अल्मेडा (1505-1509 ईस्वी):
- भारत में पहला पुर्तगाली गवर्नर।
- उसने ‘ब्लू वाटर पॉलिसी’ (नीले पानी की नीति) शुरू की, जिसका उद्देश्य हिंद महासागर पर पुर्तगाली नियंत्रण स्थापित करना था।
- उसने व्यापारिक एकाधिकार और समुद्री शक्ति पर जोर दिया।
- अल्फांसो डी अल्बुकर्क (1509-1515 ईस्वी):
- भारत में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- 1510 ईस्वी में बीजापुर के शासक यूसुफ आदिल शाह से गोवा पर कब्जा कर लिया, जो भारत में पुर्तगाली सत्ता का महत्वपूर्ण केंद्र बना।
- उसने भारत में पुर्तगाली बस्तियों में पुर्तगाली पुरुषों को भारतीय महिलाओं से विवाह करने के लिए प्रोत्साहित किया, ताकि स्थायी पुर्तगाली आबादी स्थापित हो सके।
- उसने मलक्का (1511) और होर्मुज (1515) पर भी कब्जा कर लिया, जिससे हिंद महासागर के व्यापार मार्गों पर पुर्तगालियों का नियंत्रण मजबूत हुआ।
- नीनो डी कुन्हा (1529-1538 ईस्वी):
- उसने पुर्तगाली राजधानी को कोचीन से गोवा स्थानांतरित किया (1530 ईस्वी)।
- उसने बहादुर शाह (गुजरात का शासक) से दीव और बेसिन पर कब्जा कर लिया।
4. पुर्तगाली बस्तियाँ और व्यापारिक केंद्र (Portuguese Settlements and Trading Posts)
पुर्तगालियों ने भारत के पश्चिमी तट पर कई महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र स्थापित किए।
- गोवा: पुर्तगाली सत्ता का मुख्य केंद्र और राजधानी।
- दीव और दमन: गुजरात तट पर महत्वपूर्ण व्यापारिक और सैन्य अड्डे।
- कोचीन: प्रारंभिक पुर्तगाली राजधानी।
- हुगली: बंगाल में एक व्यापारिक केंद्र, जिसे बाद में शाहजहाँ ने नष्ट कर दिया।
- अन्य: कालीकट, कन्नूर, चोल, बेसिन, सालसेट, सेंट थॉम (मद्रास के पास)।
5. पुर्तगाली प्रशासन और नीतियां (Portuguese Administration and Policies)
- कार्टाज़ प्रणाली (Cartaz System):
- पुर्तगालियों ने हिंद महासागर में व्यापार करने वाले जहाजों के लिए परमिट प्रणाली शुरू की।
- भारतीय और अरब जहाजों को पुर्तगालियों से ‘कार्टाज़’ (पास) लेना पड़ता था, अन्यथा उनके जहाजों को जब्त कर लिया जाता था।
- यह उनकी समुद्री सर्वोच्चता का प्रतीक था।
- धार्मिक असहिष्णुता:
- पुर्तगाली ईसाई धर्म के कट्टर समर्थक थे और उन्होंने भारत में धार्मिक असहिष्णुता की नीति अपनाई।
- उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने का प्रयास किया और गोवा में इनक्विजिशन की स्थापना की।
- गुलाम व्यापार: पुर्तगाली भारत में गुलाम व्यापार में भी शामिल थे।
6. पुर्तगालियों के पतन के कारण (Reasons for the Decline of the Portuguese)
17वीं शताब्दी तक पुर्तगाली शक्ति का तेजी से पतन होने लगा।
- कमजोर शासक: पुर्तगाल में कमजोर शासकों और स्पेन के साथ विलय (1580-1640) ने भारत में उनकी स्थिति को कमजोर किया।
- धार्मिक कट्टरता: उनकी धार्मिक असहिष्णुता ने स्थानीय शासकों और आबादी को उनके खिलाफ कर दिया।
- नई यूरोपीय शक्तियों का आगमन:
- डच और अंग्रेज जैसी अधिक शक्तिशाली और संगठित यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों का आगमन।
- इन कंपनियों के पास बेहतर नौसेना और वित्तीय संसाधन थे।
- खराब प्रशासन और भ्रष्टाचार: भारत में पुर्तगाली प्रशासन में भ्रष्टाचार और अक्षमता बढ़ गई थी।
- समुद्री लूटपाट: उनकी समुद्री लूटपाट की गतिविधियों ने उन्हें बदनाम किया और अन्य शक्तियों को उनके खिलाफ एकजुट होने का कारण दिया।
- ब्राजील की खोज: पुर्तगाल का ध्यान ब्राजील की ओर स्थानांतरित हो गया, जिससे भारत में उनकी रुचि कम हो गई।
7. निष्कर्ष (Conclusion)
पुर्तगाली भारत में आने वाली पहली यूरोपीय शक्ति थे और उन्होंने लगभग एक शताब्दी तक समुद्री व्यापार पर अपना एकाधिकार बनाए रखा। हालांकि, उनकी धार्मिक कट्टरता, कमजोर प्रशासन और डच तथा अंग्रेजों जैसी नई, अधिक शक्तिशाली व्यापारिक कंपनियों के आगमन के कारण उनकी शक्ति का पतन हो गया। वे केवल गोवा, दमन और दीव जैसे कुछ छोटे क्षेत्रों तक ही सीमित रह गए, जो 1961 तक भारत की स्वतंत्रता के बाद भी पुर्तगाली उपनिवेश बने रहे।