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संथाल विद्रोह (Santhal Rebellion)

संथाल विद्रोह, जिसे संथाल हूल के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और उनके सहयोगियों (जमींदारों, साहूकारों और पुलिस) के खिलाफ संथाल जनजाति द्वारा किया गया एक प्रमुख आदिवासी विद्रोह था। यह 1857 के विद्रोह से ठीक पहले हुआ था और इसने ब्रिटिश प्रशासन के खिलाफ आदिवासियों के गहरे असंतोष को उजागर किया।

1. पृष्ठभूमि और क्षेत्र (Background and Region)

संथाल लोग मुख्य रूप से राजमहल पहाड़ियों (वर्तमान झारखंड) के आसपास के क्षेत्रों में रहते थे, जिसे दामन-ए-कोह (Damin-i-Koh) के नाम से जाना जाता था।

  • दामन-ए-कोह: यह क्षेत्र संथालों द्वारा साफ किया गया था और उनकी पारंपरिक भूमि थी।
  • स्थायी बंदोबस्त का प्रभाव: 1793 के स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) ने जमींदारी व्यवस्था को बढ़ावा दिया, जिससे संथालों की भूमि पर बाहरी लोगों (दिक्कू – Dikus) का अतिक्रमण बढ़ गया।
  • आर्थिक शोषण: संथालों को साहूकारों द्वारा अत्यधिक ब्याज दरों पर ऋण दिया जाता था, और वे ऋण के जाल में फंस जाते थे, जिससे उनकी जमीनें छीन ली जाती थीं।
  • न्याय प्रणाली का अभाव: ब्रिटिश न्याय प्रणाली संथालों के लिए जटिल और महंगी थी, और वे अक्सर बाहरी लोगों के खिलाफ न्याय प्राप्त करने में असमर्थ थे।
  • पुलिस और राजस्व अधिकारियों का उत्पीड़न: पुलिस और राजस्व अधिकारी भी संथालों का उत्पीड़न करते थे, जिससे उनका असंतोष बढ़ता गया।

2. विद्रोह के कारण (Causes of the Revolt)

कई कारकों ने संथालों को विद्रोह करने के लिए मजबूर किया।

  • भूमि का नुकसान (Loss of Land):
    • जमींदारों और साहूकारों द्वारा संथालों की पैतृक भूमि पर अवैध कब्जा।
    • ब्रिटिश राजस्व नीतियों के कारण भूमिहीनता में वृद्धि।
  • साहूकारों का शोषण (Exploitation by Moneylenders):
    • अत्यधिक ब्याज दरें (कभी-कभी 50% से 500% तक)।
    • ऋण चुकाने में असमर्थता पर भूमि और पशुधन की जब्ती।
    • बंधुआ मजदूरी (बेगार) में धकेला जाना।
  • पुलिस और राजस्व अधिकारियों का उत्पीड़न (Oppression by Police and Revenue Officials):
    • पुलिस द्वारा संथालों के साथ दुर्व्यवहार और भ्रष्टाचार।
    • राजस्व अधिकारियों द्वारा अवैध वसूली और जबरन श्रम।
  • रेलवे निर्माण का प्रभाव (Impact of Railway Construction):
    • रेलवे निर्माण के लिए संथालों की भूमि का अधिग्रहण और उन्हें कम मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर करना।
  • न्याय प्रणाली में विश्वास की कमी (Lack of Faith in Justice System):
    • संथालों को लगा कि ब्रिटिश न्याय प्रणाली बाहरी लोगों (दिक्कू) का पक्ष लेती है और उन्हें न्याय नहीं मिलेगा।

3. विद्रोह की शुरुआत और घटनाएँ (Beginning and Events of the Revolt)

विद्रोह की शुरुआत 1855 में हुई और यह तेजी से फैल गया।

  • नेतृत्व (Leadership):
    • विद्रोह का नेतृत्व सिद्धू और कान्हू नामक दो भाइयों ने किया, जिनके साथ उनके भाई चांद और भैरव भी थे।
    • उन्होंने दावा किया कि उन्हें एक दिव्य संदेश मिला है जो उन्हें ब्रिटिश और दिक्कू के खिलाफ लड़ने का निर्देश देता है।
  • विद्रोह का आह्वान (Call for Revolt):
    • 30 जून 1855 को, भागलपुर जिले के भोगनाडीह गाँव में लगभग 10,000 संथालों की सभा हुई।
    • इस सभा में सिद्धू और कान्हू ने खुद को ‘ठाकुर’ (भगवान) का दूत घोषित किया और बाहरी लोगों के खिलाफ विद्रोह का आह्वान किया।
  • विद्रोह का प्रसार (Spread of the Revolt):
    • संथालों ने साहूकारों, जमींदारों, पुलिस स्टेशनों और रेलवे निर्माण स्थलों पर हमला किया।
    • उन्होंने ‘दिक्कू’ (बाहरी लोगों) को अपने क्षेत्र से बाहर निकालने और अपने स्वयं के शासन की स्थापना करने का लक्ष्य रखा।
    • विद्रोहियों ने पारंपरिक हथियार जैसे तीर-कमान, कुल्हाड़ी और तलवारें इस्तेमाल कीं।
  • ब्रिटिश प्रतिक्रिया (British Response):
    • शुरुआत में ब्रिटिश प्रशासन ने विद्रोह को कम करके आंका।
    • हालांकि, जब विद्रोह हिंसक हो गया और बड़े पैमाने पर फैल गया, तो ब्रिटिश ने इसे दबाने के लिए बड़ी सैन्य टुकड़ियों को भेजा।
    • मार्शल लॉ (Martial Law) लागू किया गया।

4. विद्रोह का दमन (Suppression of the Revolt)

ब्रिटिश ने कठोरता से विद्रोह का दमन किया।

  • हिंसक दमन:
    • ब्रिटिश सेना ने संथालों के खिलाफ अत्यधिक बल का प्रयोग किया।
    • हजारों संथाल मारे गए, और उनके गाँव जला दिए गए।
  • नेताओं की गिरफ्तारी:
    • सिद्धू और कान्हू को फरवरी 1856 में गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में फाँसी दे दी गई।
    • अन्य नेताओं को भी गिरफ्तार कर दंडित किया गया।
  • विद्रोह का अंत:
    • 1856 के अंत तक, विद्रोह को पूरी तरह से दबा दिया गया था।

5. विद्रोह के परिणाम और प्रभाव (Outcomes and Impact of the Revolt)

यद्यपि विद्रोह को दबा दिया गया, इसके दूरगामी परिणाम हुए।

  • संथाल परगना का निर्माण (Creation of Santhal Parganas):
    • ब्रिटिश सरकार ने संथालों की शिकायतों को स्वीकार किया और संथाल परगना (Santhal Parganas) नामक एक नया जिला बनाया।
    • इस क्षेत्र में संथालों के लिए विशेष कानून लागू किए गए, जिससे बाहरी लोगों द्वारा भूमि हस्तांतरण को प्रतिबंधित किया गया।
  • भूमि कानूनों में सुधार (Reforms in Land Laws):
    • संथालों की भूमि को गैर-संथालों को हस्तांतरित करने से रोकने के लिए कानून बनाए गए।
    • यह आदिवासियों की भूमि की सुरक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
  • आदिवासी पहचान का सुदृढीकरण (Strengthening of Tribal Identity):
    • विद्रोह ने संथालों के बीच अपनी सामूहिक पहचान और एकजुटता को मजबूत किया।
  • भविष्य के आंदोलनों के लिए प्रेरणा (Inspiration for Future Movements):
    • संथाल विद्रोह ने भविष्य के आदिवासी और किसान आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा का काम किया।
    • इसने ब्रिटिश को यह एहसास कराया कि आदिवासियों के अधिकारों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
  • ब्रिटिश नीति में बदलाव (Shift in British Policy):
    • ब्रिटिश ने आदिवासियों के प्रति अपनी नीति में कुछ बदलाव किए, जिसमें उनके पारंपरिक कानूनों और रीति-रिवाजों का सम्मान करने का प्रयास शामिल था, हालांकि यह सीमित था।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

संथाल विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत में हुए सबसे महत्वपूर्ण आदिवासी विद्रोहों में से एक था। यद्यपि इसे क्रूरता से दबा दिया गया, इसने ब्रिटिश को आदिवासियों के अधिकारों और उनकी समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील होने के लिए मजबूर किया, जिसके परिणामस्वरूप संथाल परगना जैसे विशेष क्षेत्रों का निर्माण हुआ। यह विद्रोह भारतीय इतिहास में आदिवासी प्रतिरोध और न्याय की लड़ाई का एक महत्वपूर्ण प्रतीक बना हुआ है।

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