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खेड़ा सत्याग्रह (Kheda Satyagraha)

खेड़ा सत्याग्रह, जो 1918 में गुजरात के खेड़ा जिले में महात्मा गांधी द्वारा आयोजित किया गया था, ब्रिटिश राज के दौरान एक महत्वपूर्ण सत्याग्रह आंदोलन था। यह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक बड़ा विद्रोह था, और यह अहमदाबाद मिल हड़ताल के ठीक बाद शुरू हुआ था।

1. पृष्ठभूमि और कारण (Background and Causes)

खेड़ा जिला अपनी उपजाऊ भूमि के लिए जाना जाता था, लेकिन 1918 में यहाँ के किसान गंभीर संकट में थे।

  • फसल की विफलता: 1918 में, खेड़ा में भीषण सूखे के कारण फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई थी। नियमानुसार, यदि फसल उत्पादन सामान्य से एक-चौथाई (25%) से कम हो, तो किसानों को भू-राजस्व में छूट मिलनी चाहिए थी।
  • प्लेग और हैजा का प्रकोप: फसल की विफलता के साथ-साथ, 1918 में गुजरात में भयंकर प्लेग फैल गया था, जिससे किसानों की स्थिति और भी दयनीय हो गई थी।
  • ब्रिटिश सरकार की कठोरता: इन कठिनाइयों के बावजूद, ब्रिटिश प्रशासन ने किसानों पर भू-राजस्व में 23% की वृद्धि का आदेश जारी किया और उसे वसूलने पर अड़ा रहा।
  • किसानों की मांग: किसानों ने सरकार से लगान माफ करने या स्थगित करने की मांग की, लेकिन सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया।

2. नेतृत्व और प्रमुख नेता (Leadership and Key Leaders)

महात्मा गांधी ने खेड़ा के किसानों के समर्थन में सत्याग्रह का नेतृत्व किया, जिसमें कई अन्य प्रमुख नेता भी शामिल हुए।

  • महात्मा गांधी: चंपारण सत्याग्रह और अहमदाबाद मिल हड़ताल की सफलता के बाद, गांधीजी को खेड़ा के किसानों की दुर्दशा के बारे में पता चला और उन्होंने उनके आंदोलन का नेतृत्व करने का फैसला किया।
  • सरदार वल्लभभाई पटेल: यह आंदोलन सरदार वल्लभभाई पटेल के राजनीतिक जीवन की शुरुआत का एक महत्वपूर्ण क्षण था। उन्होंने गांधीजी के साथ मिलकर किसानों को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • अन्य प्रमुख नेता: मोहनलाल कामेश्वर पंड्या (जिन्हें ‘प्याज चोर’ कहा गया), शंकरलाल पारीख, और इंदुलाल याज्ञिक जैसे स्थानीय नेताओं ने भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।

3. विद्रोह के चरण और घटनाएँ (Phases and Events of the Revolt)

खेड़ा सत्याग्रह गांधीजी के अहिंसक प्रतिरोध के सिद्धांतों पर आधारित था।

  • सत्याग्रह की घोषणा: 22 मार्च, 1918 को नडियाद में एक बैठक में, गांधीजी ने किसानों से लगान का भुगतान न करने की प्रतिज्ञा लेने का आग्रह किया।
  • अहिंसक असहयोग: किसानों ने शांतिपूर्ण तरीके से सरकार के आदेशों का पालन करने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी भूमि पर काम करना जारी रखा लेकिन लगान नहीं चुकाया।
  • सरकार की दमनकारी नीतियां: ब्रिटिश सरकार ने किसानों की संपत्ति जब्त करना, उनकी भूमि नीलाम करना और उन्हें गिरफ्तार करना शुरू कर दिया।
  • ‘प्याज चोर’ की घटना: जब सरकार ने किसानों के जब्त किए गए खेतों से फसल काटने की कोशिश की, तो मोहनलाल पंड्या के नेतृत्व में किसानों ने उन फसलों को काट लिया। इस घटना के बाद मोहनलाल पंड्या को ‘प्याज चोर’ के नाम से जाना जाने लगा, हालांकि गांधीजी ने उन्हें यह उपाधि सम्मान के रूप में दी थी।
  • किसानों का दृढ़ संकल्प: दमन के बावजूद, किसानों ने अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़ता बनाए रखी और एकजुट रहे।

4. विद्रोह का दमन और परिणाम (Suppression and Outcomes of the Revolt)

खेड़ा सत्याग्रह अंततः किसानों की जीत के साथ समाप्त हुआ।

  • सरकार का समझौता: किसानों के दृढ़ संकल्प और गांधीजी के नेतृत्व के कारण, ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा। सरकार ने गुप्त रूप से अधिकारियों को निर्देश दिया कि केवल वही लगान वसूल किया जाए जो किसान चुकाने में सक्षम हों, और गरीब किसानों से लगान की वसूली बंद कर दी जाए।
  • जब्त संपत्ति की वापसी: सरकार ने यह भी घोषणा की कि अगले वर्ष के लिए लगान की दरें कम कर दी जाएंगी और जब्त की गई सभी संपत्तियां वापस कर दी जाएंगी।
  • गांधीजी की रणनीति की सफलता: यह सत्याग्रह गांधीजी की अहिंसक असहयोग की रणनीति की एक और बड़ी सफलता थी, जिसने दिखाया कि संगठित और शांतिपूर्ण प्रतिरोध से सरकार को झुकाया जा सकता है।

5. विद्रोह का महत्व (Significance of the Revolt)

खेड़ा सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कई मायनों में महत्वपूर्ण था।

  • गांधीजी का राष्ट्रीय नेता के रूप में उदय: चंपारण और अहमदाबाद के बाद खेड़ा सत्याग्रह ने गांधीजी को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में स्थापित किया और बड़े पैमाने पर लोगों को संगठित करने की उनकी क्षमता को प्रदर्शित किया।
  • अहिंसक प्रतिरोध का सशक्तिकरण: इसने सत्याग्रह और अहिंसक असहयोग की शक्ति को और मजबूत किया, जो भविष्य के आंदोलनों के लिए एक मॉडल बन गया।
  • किसानों में आत्मविश्वास: इस आंदोलन ने किसानों में अपने अधिकारों के लिए लड़ने और अन्यायपूर्ण नीतियों का विरोध करने का आत्मविश्वास पैदा किया।
  • सरदार पटेल का उदय: यह आंदोलन सरदार वल्लभभाई पटेल के राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिन्होंने बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख भूमिका निभाई।
  • भविष्य के आंदोलनों के लिए आधार: खेड़ा सत्याग्रह ने असहयोग आंदोलन (1920) और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930) जैसे बड़े आंदोलनों के लिए आधार तैयार किया।

6. निष्कर्ष (Conclusion)

खेड़ा सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक मील का पत्थर था। इसने न केवल गुजरात के किसानों को तत्काल राहत दिलाई, बल्कि इसने महात्मा गांधी की नेतृत्व क्षमता और अहिंसक प्रतिरोध की प्रभावशीलता को भी सिद्ध किया। इस आंदोलन ने भारतीय जनता को एकजुट करने और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया, जिससे भविष्य के बड़े राष्ट्रीय आंदोलनों की नींव रखी गई। यह दर्शाता है कि कैसे आम लोग, सही नेतृत्व और दृढ़ संकल्प के साथ, अन्यायपूर्ण व्यवस्थाओं को चुनौती दे सकते हैं और सार्थक बदलाव ला सकते हैं।

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