Gyan Pragya
No Result
View All Result
Loading...
  • Hindi
  • Quiz
  • History
  • Geography
  • Polity
  • Economics
  • General Science
  • Environment
  • Static Gk
  • Current Affairs
  • Uttarakhand
Gyan Pragya
No Result
View All Result

प्रार्थना समाज (Prarthana Samaj)

प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 में बंबई में आत्माराम पांडुरंग द्वारा की गई थी, जिसमें केशव चंद्र सेन ने प्रेरणा दी थी। यह पश्चिमी भारत में एक महत्वपूर्ण सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन था, जिसका उद्देश्य हिंदू धर्म में सुधार लाना और एकेश्वरवाद तथा सामाजिक समानता को बढ़ावा देना था। यह ब्रह्म समाज के विचारों से प्रभावित था लेकिन इसका दृष्टिकोण अधिक उदार था।

1. पृष्ठभूमि और स्थापना (Background and Establishment)

19वीं सदी के मध्य में महाराष्ट्र में सामाजिक और धार्मिक सुधारों की आवश्यकता महसूस की गई, जिससे प्रार्थना समाज का उदय हुआ।

  • ब्रह्म समाज का प्रभाव: प्रार्थना समाज ब्रह्म समाज के विचारों, विशेषकर केशव चंद्र सेन के विचारों से काफी प्रभावित था, जिन्होंने 1864 में मद्रास और 1867 में बंबई का दौरा किया था।
  • स्थापना: 1867 में, आत्माराम पांडुरंग ने बंबई में प्रार्थना समाज की स्थापना की।
  • प्रमुख सहयोगी: इस आंदोलन को महादेव गोविंद रानाडे (M.G. Ranade), आर.जी. भंडारकर (R.G. Bhandarkar), और एन.जी. चंद्रावरकर (N.G. Chandavarkar) जैसे प्रमुख बुद्धिजीवियों का समर्थन मिला, जिन्होंने इसे महाराष्ट्र में एक शक्तिशाली सुधारवादी शक्ति बनाया।
  • उद्देश्य: इसका मुख्य उद्देश्य मूर्ति पूजा का विरोध, एकेश्वरवाद का प्रचार, जाति व्यवस्था का खंडन और सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह का उन्मूलन करना था।

2. प्रमुख सिद्धांत और आदर्श (Key Principles and Ideals)

प्रार्थना समाज ने धार्मिक और सामाजिक सुधारों के लिए कुछ मूलभूत सिद्धांतों को अपनाया।

  • एकेश्वरवाद: ब्रह्म समाज की तरह, प्रार्थना समाज ने एक ईश्वर में विश्वास पर जोर दिया और मूर्ति पूजा, कर्मकांड और पुरोहितवाद का विरोध किया।
  • सामाजिक समानता: इसने जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव का कड़ा विरोध किया और सभी मनुष्यों की समानता पर बल दिया।
  • सामाजिक सुधार: इसने बाल विवाह और बहुविवाह का विरोध किया, जबकि विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा का सक्रिय रूप से समर्थन किया।
  • नैतिकता और तर्कवाद: प्रार्थना समाज ने धार्मिक सत्य की खोज में नैतिकता, तर्क और विवेक पर जोर दिया।
  • प्रार्थना और भक्ति: इसने ईश्वर की पूजा के लिए प्रार्थना और भक्ति को महत्वपूर्ण माना, लेकिन कर्मकांडों और बाहरी अनुष्ठानों से दूर रहा।
  • सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता: यह सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता और सम्मान का प्रचार करता था।

3. प्रमुख नेता और उनका योगदान (Key Leaders and Their Contributions)

प्रार्थना समाज को कई प्रभावशाली नेताओं ने आगे बढ़ाया, जिन्होंने इसके सिद्धांतों को लोकप्रिय बनाया।

  • आत्माराम पांडुरंग (1823-1890):
    • प्रार्थना समाज के संस्थापक।
    • उन्होंने समाज के प्रारंभिक सिद्धांतों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • महादेव गोविंद रानाडे (1842-1901):
    • प्रार्थना समाज के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक, जो 1870 में इससे जुड़े।
    • उन्होंने समाज के विचारों को फैलाने और इसे एक व्यापक आंदोलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • उन्होंने दक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की और विधवा पुनर्विवाह संघ के संस्थापक थे।
    • उन्हें ‘पश्चिमी भारत के सुकरात’ के रूप में जाना जाता है।
  • आर.जी. भंडारकर (1837-1925):
    • एक प्रसिद्ध प्राच्यविद् और समाज सुधारक, जो प्रार्थना समाज के सक्रिय सदस्य थे।
    • उन्होंने समाज के धार्मिक और सामाजिक सुधारों के लिए बौद्धिक आधार प्रदान किया।
  • एन.जी. चंद्रावरकर (1855-1923):
    • रानाडे के बाद प्रार्थना समाज के प्रमुख नेता बने।
    • उन्होंने समाज के सिद्धांतों का प्रचार जारी रखा और सामाजिक सुधारों के लिए काम किया।

4. प्रभाव और महत्व (Impact and Significance)

प्रार्थना समाज ने महाराष्ट्र और पश्चिमी भारत में सामाजिक और धार्मिक सुधारों पर गहरा प्रभाव डाला।

  • सामाजिक सुधारों का प्रसार: इसने जाति व्यवस्था, बाल विवाह और अस्पृश्यता जैसी बुराइयों के खिलाफ सक्रिय रूप से काम किया।
  • महिला सशक्तिकरण: इसने महिला शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया, जिससे समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ।
  • शैक्षिक योगदान: इसने शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया और कई स्कूलों और संस्थानों की स्थापना में सहायता की।
  • धार्मिक शुद्धिकरण: इसने हिंदू धर्म को अंधविश्वासों और कर्मकांडों से मुक्त करने का प्रयास किया और इसे अधिक तर्कसंगत और नैतिक बनाया।
  • मानवतावादी दृष्टिकोण: इसने मानव गरिमा और सार्वभौमिक भाईचारे पर जोर दिया।
  • अन्य आंदोलनों के लिए प्रेरणा: इसने महाराष्ट्र में अन्य सामाजिक और शैक्षिक आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा स्रोत के रूप में कार्य किया।

5. निष्कर्ष (Conclusion)

प्रार्थना समाज 19वीं सदी के महाराष्ट्र में एक महत्वपूर्ण सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन था, जिसने ब्रह्म समाज के सिद्धांतों को पश्चिमी भारत में फैलाया। आत्माराम पांडुरंग द्वारा स्थापित और एम.जी. रानाडे जैसे नेताओं द्वारा पोषित, इसने एकेश्वरवाद, सामाजिक समानता और तर्कवाद पर जोर दिया। प्रार्थना समाज ने मूर्ति पूजा और जाति व्यवस्था जैसी कुरीतियों का विरोध किया, जबकि महिला शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा दिया। यद्यपि इसका प्रभाव मुख्य रूप से महाराष्ट्र तक सीमित था, इसने भारतीय समाज में सुधार और आधुनिकीकरण के लिए एक मजबूत नींव रखी। यह भारत के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बना रहेगा।

Previous Post

आर्य समाज (Arya Samaj)

Next Post

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)

Next Post

स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda)

दयानंद सरस्वती (Swami Dayanand Saraswati)

राजा राममोहन राय (Raja Rammohan Roy)

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

  • Contact us
  • Disclaimer
  • Terms of Service
  • Privacy Policy
: whatsapp us on +918057391081 E-mail: setupragya@gmail.com
No Result
View All Result
  • Quiz
  • Static Gk
  • Polity
  • Hindi
  • Geography
  • Economics
  • General Science
  • Uttarakhand
  • History
  • Environment
  • Computer
  • Contact us

© 2024 GyanPragya - ArchnaChaudhary.