राजा राममोहन राय (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
राजा राममोहन राय, जिन्हें ‘भारतीय पुनर्जागरण का जनक’ और ‘भारतीय राष्ट्रवाद का पैगंबर’ कहा जाता है, 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में जन्मे एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक और धार्मिक विचारक थे। उन्होंने ब्रह्म समाज की स्थापना की और सती प्रथा के उन्मूलन, एकेश्वरवाद के प्रचार और आधुनिक शिक्षा के समर्थन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
1. पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन (Background and Early Life)
राजा राममोहन राय का जन्म एक रूढ़िवादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने विभिन्न भाषाओं और धर्मों का गहन अध्ययन किया, जिससे उनके विचार विकसित हुए।
- जन्म और परिवार: राममोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के हुगली जिले के राधानगर में हुआ था। उनका परिवार रूढ़िवादी था, लेकिन वे स्वयं उदार विचारों वाले थे।
- बहुभाषी ज्ञान: उन्होंने अरबी, फारसी, संस्कृत, अंग्रेजी, ग्रीक, लैटिन और हिब्रू सहित कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। इस ज्ञान ने उन्हें विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों को समझने में मदद की।
- ईस्ट इंडिया कंपनी में सेवा: उन्होंने 1803 से 1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए विभिन्न पदों पर काम किया, जिससे उन्हें पश्चिमी विचारों और प्रशासन को समझने का अवसर मिला।
- मूर्ति पूजा पर संदेह: उन्होंने बचपन से ही मूर्ति पूजा और कर्मकांडों पर संदेह व्यक्त किया, जिससे उनके परिवार के साथ मतभेद हुए।
- ‘तुहफत-उल-मुवाहिद्दीन’ (एकेश्वरवादियों को उपहार): 1803 में, उन्होंने फारसी में यह पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने एकेश्वरवाद का प्रचार किया और मूर्ति पूजा का विरोध किया।
2. प्रमुख सिद्धांत और दर्शन (Key Principles and Philosophy)
राजा राममोहन राय का दर्शन तर्कवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता पर आधारित था।
- एकेश्वरवाद: उन्होंने एक निराकार ईश्वर में विश्वास किया और सभी प्रकार की मूर्ति पूजा, कर्मकांडों और बलि प्रथा का विरोध किया।
- तर्कवाद और विवेक: उन्होंने धार्मिक सत्य की खोज में तर्क और विवेक पर जोर दिया। उनका मानना था कि धार्मिक सिद्धांतों को तर्क की कसौटी पर परखा जाना चाहिए।
- मानवतावाद और सार्वभौमिकता: उन्होंने सभी मनुष्यों की समानता और सार्वभौमिक भाईचारे को बढ़ावा दिया। उनका मानना था कि सभी धर्मों का मूल सार एक ही है।
- सामाजिक न्याय: उन्होंने समाज में व्याप्त अन्याय और असमानता, विशेषकर महिलाओं के प्रति भेदभाव, का कड़ा विरोध किया।
- आधुनिक शिक्षा: उन्होंने पश्चिमी विज्ञान और आधुनिक शिक्षा के प्रसार का समर्थन किया, क्योंकि उनका मानना था कि यह भारत को प्रगति के पथ पर ले जाएगा।
3. ब्रह्म समाज की स्थापना (Establishment of Brahmo Samaj)
राजा राममोहन राय ने अपने धार्मिक और सामाजिक सुधारों को संस्थागत रूप देने के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की।
- ब्रह्म सभा: 1828 में, उन्होंने ब्रह्म सभा की स्थापना की, जिसे बाद में ब्रह्म समाज के नाम से जाना गया।
- उद्देश्य: इसका उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना था जो एकेश्वरवाद, तर्कवाद और वेदों व उपनिषदों के शुद्ध सिद्धांतों पर आधारित हो। यह मूर्ति पूजा और कर्मकांडों से मुक्त था।
- प्रार्थना और ध्यान: ब्रह्म समाज में प्रार्थना और ध्यान पर जोर दिया जाता था, न कि बाहरी अनुष्ठानों पर।
- सामाजिक सुधारों का मंच: यह समाज सुधारों, विशेषकर सती प्रथा के उन्मूलन और महिला शिक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मंच बन गया।
4. प्रमुख योगदान और कार्य (Major Contributions and Works)
राजा राममोहन राय ने विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिए, जिससे उन्हें ‘आधुनिक भारत का जनक’ कहा जाता है।
- सती प्रथा का उन्मूलन: उन्होंने सती प्रथा के खिलाफ एक मजबूत अभियान चलाया। उनके अथक प्रयासों के कारण लॉर्ड विलियम बेंटिंक ने 1829 में सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।
- शिक्षा सुधार: उन्होंने पश्चिमी और वैज्ञानिक शिक्षा के प्रसार का समर्थन किया। उन्होंने 1817 में हिंदू कॉलेज की स्थापना में डेविड हेयर और अलेक्जेंडर डफ की मदद की। उन्होंने वेदांत कॉलेज (1825) की भी स्थापना की।
- प्रेस की स्वतंत्रता: उन्होंने प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया और ‘संवाद कौमुदी’ (बंगाली साप्ताहिक, 1821) और ‘मिरात-उल-अखबार’ (फारसी साप्ताहिक, 1822) जैसे समाचार पत्रों का प्रकाशन किया।
- जाति व्यवस्था का विरोध: उन्होंने जाति व्यवस्था, अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव का विरोध किया।
- महिला अधिकार: उन्होंने विधवा पुनर्विवाह और महिला शिक्षा का समर्थन किया, और महिलाओं के संपत्ति के अधिकारों की वकालत की।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंध: उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय शांति और सहयोग का समर्थन किया। उन्हें मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ने ‘राजा’ की उपाधि दी थी और उन्हें अपनी पेंशन बढ़ाने के लिए इंग्लैंड भेजा था।
5. प्रभाव और महत्व (Impact and Significance)
राजा राममोहन राय का भारतीय समाज और विश्व पर गहरा और स्थायी प्रभाव पड़ा।
- भारतीय पुनर्जागरण का जनक: उन्हें भारत में आधुनिक विचारों और सुधारों का अग्रदूत माना जाता है।
- सामाजिक-धार्मिक सुधार: उन्होंने हिंदू धर्म को अंधविश्वासों और कर्मकांडों से मुक्त करने का प्रयास किया और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
- आधुनिक शिक्षा का प्रसार: उनके प्रयासों से भारत में पश्चिमी और वैज्ञानिक शिक्षा का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- राष्ट्रवाद का विकास: उन्होंने भारतीयों में आत्म-सम्मान और राष्ट्रीय चेतना की भावना जगाई, जिससे भविष्य के राष्ट्रवादी आंदोलनों को बल मिला।
- प्रेस की भूमिका: उन्होंने भारतीय पत्रकारिता की नींव रखी और सार्वजनिक राय बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- पूर्व और पश्चिम का मिलन: उन्होंने पूर्वी आध्यात्मिकता और पश्चिमी तर्कवाद के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास किया।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
राजा राममोहन राय एक दूरदर्शी सुधारक थे जिन्होंने 19वीं सदी के भारत में एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी भूमिका निभाई। ‘भारतीय पुनर्जागरण के जनक’ के रूप में, उन्होंने समाज में व्याप्त अंधविश्वासों और कुरीतियों को चुनौती दी, विशेषकर सती प्रथा के उन्मूलन में उनका योगदान अतुलनीय है। ब्रह्म समाज की स्थापना के माध्यम से, उन्होंने एकेश्वरवाद, तर्कवाद और सामाजिक समानता के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया। शिक्षा, प्रेस और महिला अधिकारों के क्षेत्र में उनके अथक प्रयासों ने भारत को आधुनिकता की ओर अग्रसर किया और भारतीयों में आत्म-विश्वास और राष्ट्रीय चेतना की भावना जगाई। उनका प्रभाव आज भी भारतीय समाज और उसके प्रगतिशील विचारों में देखा जा सकता है, जो उन्हें भारत के सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय बनाता है।