बंगाल का विभाजन (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
बंगाल का विभाजन ब्रिटिश भारत के वायसराय लॉर्ड कर्जन द्वारा 20 जुलाई, 1905 को घोषित किया गया था और 16 अक्टूबर, 1905 को प्रभावी हुआ। यह एक महत्वपूर्ण घटना थी जिसने भारतीय राष्ट्रवाद को तीव्र किया और स्वदेशी आंदोलन को जन्म दिया। हालाँकि ब्रिटिश सरकार ने इसे प्रशासनिक सुविधा का तर्क दिया, लेकिन इसके पीछे का वास्तविक उद्देश्य ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत बंगाल में बढ़ती राष्ट्रवादी गतिविधियों को कमजोर करना था।
1. पृष्ठभूमि और कारण (Background and Causes)
19वीं सदी के अंत तक बंगाल ब्रिटिश भारत का सबसे बड़ा और सबसे अधिक आबादी वाला प्रांत था, जो राजनीतिक और बौद्धिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था।
- बंगाल की विशालता: 1905 तक, बंगाल प्रेसीडेंसी में बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम के कुछ हिस्से शामिल थे, जिसकी आबादी लगभग 78 मिलियन थी। ब्रिटिश सरकार ने प्रशासनिक अक्षमता को विभाजन का मुख्य कारण बताया।
- प्रशासनिक तर्क: लॉर्ड कर्जन ने तर्क दिया कि इतने बड़े प्रांत का प्रशासन करना मुश्किल था और विभाजन से प्रशासन में सुधार होगा।
- वास्तविक उद्देश्य – राष्ट्रवाद को कमजोर करना: ब्रिटिश सरकार का वास्तविक उद्देश्य बंगाल में बढ़ती राष्ट्रवादी गतिविधियों को कमजोर करना था। बंगाल भारतीय राष्ट्रवाद का गढ़ था और विभाजन इसे धार्मिक आधार पर विभाजित कर राष्ट्रवादी एकता को तोड़ना चाहता था।
- ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति: विभाजन का उद्देश्य बंगाल को हिंदू-बहुल पश्चिमी बंगाल और मुस्लिम-बहुल पूर्वी बंगाल में विभाजित करके सांप्रदायिक विभाजन को गहरा करना था।
- मुस्लिम लीग का गठन: विभाजन ने मुस्लिम समुदाय के कुछ वर्गों को ब्रिटिश सरकार के प्रति अधिक झुकाव रखने के लिए प्रेरित किया, जिसके परिणामस्वरूप 1906 में मुस्लिम लीग का गठन हुआ।
2. विभाजन की घोषणा और क्रियान्वयन (Announcement and Implementation of Partition)
लॉर्ड कर्जन ने विभाजन की योजना को अंतिम रूप दिया और इसे प्रभावी किया, जिससे पूरे देश में व्यापक विरोध हुआ।
- घोषणा: 20 जुलाई, 1905 को लॉर्ड कर्जन ने बंगाल के विभाजन की घोषणा की।
- प्रभावी तिथि: यह विभाजन 16 अक्टूबर, 1905 को प्रभावी हुआ।
- विभाजन का स्वरूप:
- पूर्वी बंगाल और असम: इसमें ढाका, चटगांव, राजशाही डिवीजन और असम शामिल थे। इसकी राजधानी ढाका थी और यह मुस्लिम बहुल क्षेत्र था।
- पश्चिमी बंगाल: इसमें वर्तमान पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा शामिल थे। इसकी राजधानी कलकत्ता थी और यह हिंदू बहुल क्षेत्र था।
3. विभाजन के खिलाफ प्रतिक्रिया और स्वदेशी आंदोलन (Reaction against Partition and Swadeshi Movement)
बंगाल के विभाजन ने पूरे भारत में तीव्र प्रतिक्रिया को जन्म दिया, जिससे एक शक्तिशाली जन आंदोलन शुरू हुआ।
- तीव्र विरोध: विभाजन की घोषणा ने पूरे बंगाल और भारत में व्यापक विरोध को जन्म दिया। इसे ‘बंगाल के अपमान’ के रूप में देखा गया।
- शोक दिवस: 16 अक्टूबर, 1905 (विभाजन प्रभावी होने का दिन) को शोक दिवस के रूप में मनाया गया। लोगों ने उपवास रखा, जुलूस निकाले और गंगा में स्नान किया।
- ‘राखी बंधन’ उत्सव: हिंदू और मुसलमानों ने अपनी एकता प्रदर्शित करने के लिए एक दूसरे को ‘राखी’ बांधी।
- स्वदेशी आंदोलन का उदय: विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करना और स्वदेशी (भारतीय निर्मित) वस्तुओं को बढ़ावा देना था।
- बहिष्कार आंदोलन: स्वदेशी आंदोलन के साथ-साथ बहिष्कार आंदोलन भी चला, जिसमें ब्रिटिश वस्तुओं, संस्थानों, अदालतों और स्कूलों का बहिष्कार किया गया।
- प्रमुख नेता: सुरेंद्रनाथ बनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल (लाल-बाल-पाल) और अरविंद घोष जैसे नेताओं ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- जन भागीदारी: स्वदेशी आंदोलन में छात्रों, महिलाओं और बुद्धिजीवियों सहित समाज के सभी वर्गों ने सक्रिय रूप से भाग लिया।
4. विभाजन का महत्व और परिणाम (Significance and Consequences of Partition)
बंगाल के विभाजन के दूरगामी परिणाम हुए, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद की दिशा बदल दी।
- राष्ट्रवाद का तीव्र विकास: विभाजन ने भारतीय राष्ट्रवाद को एक नई ऊर्जा दी और इसे एक जन आंदोलन में बदल दिया।
- उग्रवादी राष्ट्रवाद का उदय: उदारवादी तरीकों की विफलता के कारण गरम दल (उग्रवादी राष्ट्रवाद) का उदय हुआ, जो अधिक मुखर और प्रत्यक्ष कार्रवाई में विश्वास रखते थे।
- सांप्रदायिकता का बढ़ना: विभाजन ने हिंदू और मुसलमानों के बीच सांप्रदायिक विभाजन को गहरा किया, जिससे भविष्य में भारत के विभाजन की नींव पड़ी।
- मुस्लिम लीग का गठन: विभाजन के तुरंत बाद 1906 में मुस्लिम लीग का गठन हुआ, जिसने मुसलमानों के हितों की वकालत की।
- स्वदेशी उद्योगों को बढ़ावा: स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय उद्योगों और हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया, जिससे आर्थिक राष्ट्रवाद को बल मिला।
- राष्ट्रीय शिक्षा का विकास: बहिष्कार आंदोलन के परिणामस्वरूप कई राष्ट्रीय स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना हुई।
5. विभाजन का रद्द होना (Annulment of Partition)
जनता के तीव्र विरोध और राजनीतिक दबाव के कारण ब्रिटिश सरकार को अंततः विभाजन को रद्द करना पड़ा।
- रद्द होने की घोषणा: 1911 में, दिल्ली दरबार में किंग जॉर्ज पंचम ने बंगाल के विभाजन को रद्द करने की घोषणा की।
- राजधानी का स्थानांतरण: इसी समय, भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने की भी घोषणा की गई।
- पुनर्गठन: बंगाल को फिर से एकजुट किया गया, लेकिन बिहार और उड़ीसा को अलग प्रांतों के रूप में बनाया गया, और असम को एक अलग प्रांत के रूप में रखा गया।
- महत्व: विभाजन का रद्द होना भारतीय राष्ट्रवादियों की एक बड़ी जीत थी और इसने ब्रिटिश सरकार को यह दिखाने में मदद की कि जन आंदोलन सफल हो सकते हैं।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
बंगाल का विभाजन ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय राष्ट्रवाद को कमजोर करने के लिए उठाया गया एक विवादास्पद कदम था, लेकिन इसने अनजाने में भारत के स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा और ऊर्जा दी। लॉर्ड कर्जन द्वारा घोषित इस विभाजन ने स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन को जन्म दिया, जिसने भारतीय जनता को एकजुट किया और उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। यद्यपि विभाजन को 1911 में रद्द कर दिया गया, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम हुए, जैसे उग्रवादी राष्ट्रवाद का उदय और सांप्रदायिक विभाजन का गहरा होना। बंगाल का विभाजन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना बनी हुई है, जो ब्रिटिश ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति और भारतीय जनता के दृढ़ प्रतिरोध को दर्शाती है।