हैदराबाद, जूनागढ़ और कश्मीर मुद्दा (UPSC/PCS केंद्रित नोट्स)
हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर भारतीय स्वतंत्रता के समय तीन प्रमुख रियासतें थीं, जिन्होंने भारत संघ में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इन रियासतों के एकीकरण ने स्वतंत्र भारत के सामने एक बड़ी चुनौती पेश की, जिसे सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन के दृढ़ संकल्प और कूटनीति से हल किया गया।
1. पृष्ठभूमि और चुनौती (Background and Challenge)
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने रियासतों पर ब्रिटिश संप्रभुता को समाप्त कर दिया, जिससे उनके भविष्य को लेकर अनिश्चितता पैदा हो गई।
- भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947: इस अधिनियम ने रियासतों पर ब्रिटिश ताज की संप्रभुता (Paramountcy) को समाप्त कर दिया। रियासतों को भारत या पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया।
- भारत की अखंडता के लिए खतरा: यदि ये बड़ी रियासतें स्वतंत्र रहतीं, तो यह भारत की राजनीतिक और भौगोलिक अखंडता के लिए एक गंभीर खतरा होता।
- जनता की आकांक्षाएँ: अधिकांश रियासतों की जनता भारत संघ में शामिल होना चाहती थी, लेकिन उनके शासक अक्सर स्वतंत्र रहने या अपने विशेषाधिकारों को बनाए रखने की इच्छा रखते थे।
- सरदार पटेल की भूमिका: सरदार वल्लभभाई पटेल (रियासती विभाग के प्रमुख) और वी.पी. मेनन (सचिव) ने रियासतों के एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाई। उन्होंने कूटनीति, अनुनय और आवश्यकता पड़ने पर बल का प्रयोग किया।
2. जूनागढ़ रियासत का एकीकरण (Integration of Junagarh Princely State)
जूनागढ़ का मामला जनमत संग्रह के माध्यम से हल किया गया।
- स्थान: गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में स्थित एक रियासत।
- स्थिति: इसका शासक मुस्लिम (नवाब मुहम्मद महाबत खानजी III) था, जबकि अधिकांश आबादी हिंदू थी। यह भारत से घिरा हुआ था और पाकिस्तान से कोई सीधी भौगोलिक सीमा नहीं थी।
- शासक का निर्णय: नवाब ने 15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान में शामिल होने की घोषणा की।
- भारत की प्रतिक्रिया: भारत सरकार ने इस निर्णय का कड़ा विरोध किया, क्योंकि यह भौगोलिक निरंतरता और जनता की इच्छा के विरुद्ध था।
- जनता का विद्रोह: जूनागढ़ की जनता ने नवाब के फैसले के खिलाफ विद्रोह कर दिया और ‘आरजी हुकूमत’ (आरजी सरकार) का गठन किया।
- सैन्य हस्तक्षेप और जनमत संग्रह: स्थिति बिगड़ने पर, भारत सरकार ने नवंबर 1947 में जूनागढ़ में सेना भेजी। नवाब पाकिस्तान भाग गया। बाद में, 20 फरवरी, 1948 को जनमत संग्रह (Plebiscite) कराया गया, जिसमें अधिकांश जनता ने भारत में शामिल होने के पक्ष में मतदान किया।
- परिणाम: जूनागढ़ को फरवरी 1948 में भारत में मिला लिया गया।
3. हैदराबाद रियासत का एकीकरण (Integration of Hyderabad Princely State)
हैदराबाद का मामला सैन्य कार्रवाई के माध्यम से हल किया गया।
- स्थान: भारत की सबसे बड़ी और सबसे धनी रियासतों में से एक, जो दक्कन पठार के केंद्र में स्थित थी।
- स्थिति: इसका शासक मुस्लिम (निजाम उस्मान अली खान) था, जबकि अधिकांश आबादी हिंदू थी। यह चारों ओर से भारतीय क्षेत्र से घिरा हुआ था।
- शासक का निर्णय: निजाम स्वतंत्र रहना चाहता था और उसने भारत या पाकिस्तान में शामिल होने से इनकार कर दिया। उसने भारत के साथ एक ‘स्टैंडस्टिल समझौता’ (Standstill Agreement) किया, लेकिन साथ ही पाकिस्तान से हथियार भी खरीद रहा था।
- रजाकारों का आतंक: निजाम के निजी मिलिशिया, जिसे ‘रजाकार’ कहा जाता था, ने मुस्लिम नेता कासिम रिजवी के नेतृत्व में हैदराबाद की हिंदू आबादी पर अत्याचार और आतंक फैलाना शुरू कर दिया।
- भारत की प्रतिक्रिया: बढ़ती हिंसा और निजाम के स्वतंत्र रहने के इरादे को देखते हुए, भारत सरकार ने सैन्य हस्तक्षेप का फैसला किया।
- ‘ऑपरेशन पोलो’ (सितंबर 1948): भारत सरकार ने 13 से 18 सितंबर, 1948 तक ‘ऑपरेशन पोलो’ नामक एक सैन्य कार्रवाई की, जिसमें भारतीय सेना हैदराबाद में प्रवेश कर गई।
- परिणाम: निजाम ने आत्मसमर्पण कर दिया और हैदराबाद को 18 सितंबर, 1948 को भारत में मिला लिया गया।
4. जम्मू-कश्मीर रियासत का एकीकरण (Integration of Jammu & Kashmir Princely State)
जम्मू-कश्मीर का मामला विभाजन और संघर्ष का एक जटिल मुद्दा बन गया।
- स्थान: भारत के उत्तर में स्थित एक बड़ी रियासत।
- स्थिति: यह एक मुस्लिम बहुल रियासत थी, जिसका शासक हिंदू (महाराजा हरि सिंह) था। इसकी सीमाएँ भारत और पाकिस्तान दोनों से लगती थीं।
- शासक का निर्णय: महाराजा हरि सिंह शुरू में स्वतंत्र रहना चाहते थे और उन्होंने भारत या पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला नहीं किया।
- पाकिस्तान का आक्रमण: अक्टूबर 1947 में, पाकिस्तान ने जनजातीय आक्रमणकारियों को कश्मीर में भेजा, जिन्होंने रियासत पर हमला किया और बड़े पैमाने पर लूटपाट और हिंसा की।
- विलय पत्र पर हस्ताक्षर: आक्रमणकारियों के श्रीनगर के करीब पहुँचने पर, महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी। भारत सरकार ने मदद के बदले में महाराजा से 26 अक्टूबर, 1947 को ‘विलय पत्र’ (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर करने को कहा।
- भारत का हस्तक्षेप: महाराजा द्वारा विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद, भारतीय सेना ने हस्तक्षेप किया और आक्रमणकारियों को खदेड़ना शुरू किया।
- संयुक्त राष्ट्र में मामला: भारत ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाया, जिससे युद्ध विराम हुआ और कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर – PoK)।
- परिणाम: जम्मू-कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग बन गया, लेकिन इसका एक हिस्सा अभी भी पाकिस्तान के नियंत्रण में है, जिससे यह भारत और पाकिस्तान के बीच एक दीर्घकालिक विवाद का मुद्दा बना हुआ है।
5. निष्कर्ष (Conclusion)
हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर का एकीकरण स्वतंत्र भारत के सामने एक बड़ी चुनौती थी, जिसे सरदार वल्लभभाई पटेल और वी.पी. मेनन ने अपनी दूरदर्शिता, कूटनीति और दृढ़ संकल्प से सफलतापूर्वक हल किया। जूनागढ़ को जनमत संग्रह के माध्यम से, हैदराबाद को सैन्य कार्रवाई (‘ऑपरेशन पोलो’) के माध्यम से, और जम्मू-कश्मीर को विलय पत्र पर हस्ताक्षर के बाद सैन्य हस्तक्षेप के माध्यम से भारत में मिलाया गया। इन रियासतों का सफल एकीकरण भारत की भौगोलिक और राजनीतिक अखंडता को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण था, जिससे एक मजबूत और एकजुट राष्ट्र का निर्माण हुआ। यद्यपि जम्मू-कश्मीर का मुद्दा आज भी एक विवाद का विषय है, इन एकीकरणों ने स्वतंत्र भारत की नींव को मजबूत किया।