विमुद्रीकरण (Demonetisation)
परिभाषा (Definition):
विमुद्रीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें सरकार द्वारा किसी विशेष मुद्रा को कानूनी रूप से अमान्य घोषित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य अक्सर काले धन को समाप्त करना, नकली मुद्रा पर रोक लगाना और डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देना होता है।
भारत में विमुद्रीकरण के प्रमुख अवसर (Instances of Demonetisation in India)
पहला विमुद्रीकरण (1946):
- कब (When): 12 जनवरी 1946।
- क्यों (Why):
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एकत्रित काले धन को समाप्त करना।
- आर्थिक असमानता को कम करना।
- विवरण (Details): ₹1,000 और ₹10,000 के नोट बंद कर दिए गए।
दूसरा विमुद्रीकरण (1978):
- कब (When): 16 जनवरी 1978।
- क्यों (Why):
- भ्रष्टाचार और काले धन के प्रसार को नियंत्रित करना।
- अवैध गतिविधियों में उपयोग की जा रही उच्च मूल्य की मुद्रा को खत्म करना।
- विवरण (Details): ₹1,000, ₹5,000 और ₹10,000 के नोट अमान्य कर दिए गए।
तीसरा विमुद्रीकरण (2016):
- कब (When): 8 नवंबर 2016।
- क्यों (Why):
- काले धन, नकली मुद्रा, और आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकना।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देना।
- विवरण (Details): ₹500 और ₹1,000 के नोट बंद किए गए और नए ₹500 और ₹2,000 के नोट जारी किए गए।
अवमूल्यन (Devaluation)
परिभाषा (Definition):
अवमूल्यन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सरकार द्वारा मुद्रा के मूल्य को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा या सोने के मुकाबले जानबूझकर कम कर दिया जाता है। इसका उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देना और व्यापार घाटे को कम करना होता है।
भारत में अवमूल्यन के प्रमुख अवसर (Instances of Devaluation in India)
पहला अवमूल्यन (1966):
- कब (When): 6 जून 1966।
- क्यों (Why):
- भारत को गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा था।
- विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त हो रहे थे।
- निर्यात बढ़ाने और आयात को नियंत्रित करने के लिए।
- विवरण (Details): भारतीय रुपये का मूल्य अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 57% कम किया गया (₹1 = $0.21 से ₹1 = $0.13)।
दूसरा अवमूल्यन (1991):
- कब (When): 1 और 3 जुलाई 1991।
- क्यों (Why):
- भारत गंभीर भुगतान संतुलन संकट (Balance of Payments Crisis) का सामना कर रहा था।
- IMF (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) से ऋण प्राप्त करने की शर्त।
- विदेशी निवेश को आकर्षित करना।
- विवरण (Details): रुपये का मूल्य अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 18-19% कम किया गया।
विमुद्रीकरण और अवमूल्यन में अंतर (Difference between Demonetisation and Devaluation)
पैरामीटर | विमुद्रीकरण (Demonetisation) | अवमूल्यन (Devaluation) |
---|---|---|
परिभाषा | किसी विशेष मुद्रा को कानूनी रूप से अमान्य घोषित करना। | मुद्रा के मूल्य को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा या सोने के मुकाबले कम करना। |
उद्देश्य | काले धन को समाप्त करना, नकली मुद्रा पर रोक लगाना। | निर्यात बढ़ाना और व्यापार घाटा कम करना। |
प्रभावित क्षेत्र | घरेलू अर्थव्यवस्था और लेन-देन। | अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विदेशी मुद्रा। |
उदाहरण | 2016 में ₹500 और ₹1,000 के नोट बंद करना। | 1991 में रुपये का अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अवमूल्यन। |
लाभ | नकदी रहित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा। | निर्यात में वृद्धि और विदेशी मुद्रा भंडार में सुधार। |
समस्या | तत्काल नकदी संकट, अस्थायी आर्थिक मंदी। | आयात महंगा हो जाता है, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। |
भारत में विमुद्रीकरण और अवमूल्यन के प्रभाव
- विमुद्रीकरण के प्रभाव:
- डिजिटल लेन-देन में वृद्धि: 2016 के बाद UPI और डिजिटल वॉलेट का उपयोग तेजी से बढ़ा।
- अल्पकालिक नकदी संकट: नकदी की कमी से व्यापार और रोजगार प्रभावित हुए।
- अवमूल्यन के प्रभाव:
- निर्यात में वृद्धि: 1991 के बाद भारतीय निर्यात में तेजी आई।
- आयात महंगा: पेट्रोलियम उत्पादों और अन्य आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ी।
- विदेशी निवेश में वृद्धि: विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत हुआ।
विमुद्रीकरण और अवमूल्यन दोनों अलग-अलग आर्थिक प्रक्रियाएँ हैं जो विशिष्ट उद्देश्यों के लिए की जाती हैं। विमुद्रीकरण का मुख्य ध्यान घरेलू नकदी और काले धन पर होता है, जबकि अवमूल्यन अंतरराष्ट्रीय व्यापार और विदेशी मुद्रा को प्रभावित करता है। इन दोनों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है।