कृषि के प्रकार (Types of Agriculture)
भारत की विविध जलवायु, मिट्टी और स्थलाकृति विभिन्न प्रकार की कृषि पद्धतियों और फसल पैटर्न का समर्थन करती है। इन्हें मुख्य रूप से फसल के मौसम, उद्देश्य और कृषि पद्धतियों के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।
फसल मौसम के आधार पर वर्गीकरण
1. रबी फसलें (Rabi Crops)
- बुवाई का समय: अक्टूबर-दिसंबर (सर्दियों की शुरुआत)।
- कटाई का समय: अप्रैल-जून (गर्मियों की शुरुआत)।
- आवश्यक मौसम: बुवाई के समय ठंडा और शुष्क मौसम, और पकने के समय गर्म मौसम।
- उदाहरण: गेहूं, जौ, चना, सरसों, मटर, मसूर।
2. ख़रीफ़ फसलें (Kharif Crops)
- बुवाई का समय: जून-जुलाई (मानसून की शुरुआत)।
- कटाई का समय: सितंबर-अक्टूबर।
- आवश्यक मौसम: गर्म और आर्द्र मौसम, अच्छी वर्षा की आवश्यकता।
- उदाहरण: धान (चावल), मक्का, ज्वार, बाजरा, कपास, मूंगफली, सोयाबीन।
3. ज़ैद फसलें (Zaid Crops)
- बुवाई का समय: रबी और खरीफ के बीच की छोटी अवधि (मार्च से जून)।
- विशेषता: ये मुख्य रूप से सिंचित भूमि पर उगाई जाने वाली अल्पकालिक फसलें हैं।
- उदाहरण: तरबूज, खरबूजा, ककड़ी, खीरा और मौसमी सब्जियां।
उपयोग के आधार पर वर्गीकरण
1. खाद्य फसलें (Food Crops)
वे फसलें जो मुख्य रूप से मानव उपभोग के लिए उगाई जाती हैं। उदाहरण: गेहूं, चावल, मक्का, बाजरा, दालें।
2. व्यावसायिक/नकदी फसलें (Commercial/Cash Crops)
वे फसलें जो सीधे उपभोग के बजाय बेचने और लाभ कमाने के उद्देश्य से उगाई जाती हैं। ये अक्सर उद्योगों के लिए कच्चे माल के रूप में काम करती हैं। उदाहरण: कपास, गन्ना, जूट, तंबाकू, चाय, कॉफी, तिलहन।
कृषि पद्धतियों के आधार पर वर्गीकरण
1. निर्वाह कृषि (Subsistence Farming)
इस प्रकार की कृषि में, किसान मुख्य रूप से अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए फसलें उगाता है। इसमें बहुत कम या कोई अधिशेष (surplus) नहीं होता जिसे बाजार में बेचा जा सके। यह भारत में छोटे और सीमांत किसानों के बीच आम है।
2. गहन या सघन कृषि (Intensive Farming)
इसमें भूमि के एक छोटे टुकड़े से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने के लिए अधिक मात्रा में पूंजी, श्रम, उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। यह उन क्षेत्रों में प्रचलित है जहाँ जनसंख्या घनत्व अधिक है और भूमि सीमित है, जैसे पश्चिम बंगाल और केरल।
3. विस्तृत या विरल खेती (Extensive Farming)
इसमें बड़े खेतों पर मशीनों की मदद से खेती की जाती है, और प्रति हेक्टेयर श्रम और पूंजी का उपयोग कम होता है। यह उन क्षेत्रों में आम है जहाँ भूमि प्रचुर मात्रा में है और जनसंख्या कम है, जैसे कि पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्से।
4. समानांतर कृषि (Parallel Cropping / Intercropping)
इसमें एक ही खेत में एक ही समय में दो या दो से अधिक फसलें उगाई जाती हैं। इसका उद्देश्य भूमि और संसाधनों का अधिकतम उपयोग करना और जोखिम को कम करना है। उदाहरण: गेहूं के साथ सरसों या आलू के साथ गन्ना उगाना।
5. शुष्क भूमि कृषि (Dryland Farming)
यह कम वर्षा वाले (आमतौर पर 75 सेमी से कम) और सीमित सिंचाई सुविधाओं वाले क्षेत्रों में की जाने वाली कृषि है। इसमें सूखा-प्रतिरोधी फसलें जैसे बाजरा, ज्वार, रागी और दलहन उगाई जाती हैं।
6. झूम खेती (Shifting Cultivation)
यह एक आदिम कृषि प्रणाली है जिसमें किसान अस्थायी रूप से भूमि के एक टुकड़े पर जंगल को साफ करके खेती करते हैं, और जब भूमि की उर्वरता कम हो जाती है तो उसे छोड़कर दूसरे टुकड़े पर चले जाते हैं। इसे ‘स्लैश-एंड-बर्न’ कृषि भी कहा जाता है और यह मुख्य रूप से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रचलित है।