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कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (Contract Farming)

  • परिभाषा (Definition):
    • किसान व क्रेता (खरीददार) के बीच एक लिखित या मौखिक समझौता, जिसमें किसान पूर्व-निर्धारित मूल्य, मात्रा, गुणवत्ता मानकों, व समय-सीमा के अनुरूप फसल का उत्पादन करता है और क्रेता उस फसल को तय शर्तों पर खरीदने का वायदा करता है।
    • इसमें बीज, उर्वरक (fertilizers), तकनीकी सलाह, व कभी-कभी वित्तीय सहायता भी क्रेता द्वारा किसान को उपलब्ध कराई जा सकती है।
  • लक्ष्य (Objectives):
    • किसानों को सुनिश्चित बाज़ार (assured market) प्रदान करना
    • कृषि उपज की गुणवत्ता, मात्रा और समयबद्ध आपूर्ति सुनिश्चित करना
    • मूल्य अस्थिरता (price volatility) और मार्केटिंग जोखिमों में कमी लाना
  • प्रमुख विशेषताएँ (Key Features):
    • पूर्व-निर्धारित मूल्य (Pre-determined Price): किसान को फसल बोने से पहले ही मूल्य की जानकारी होती है, जिससे जोखिम घटता है।
    • इनपुट सपोर्ट (Input Support): बीज, खाद, तकनीकी मार्गदर्शन, सिंचाई सलाह, और प्रशिक्षण क्रेता द्वारा दिया जा सकता है, जिससे उत्पादकता बढ़ने की संभावना रहती है।
    • गुणवत्ता मानक (Quality Standards): क्रेता द्वारा उत्पाद के लिए गुणवत्ता मानक तय किए जाते हैं (जैसे नमी %, दाने का आकार, रंग इत्यादि), किसान उसी के अनुरूप उत्पादन करता है।
    • कानूनी समझौता (Legal Agreement): अनुबंध (contract) में सभी शर्तें लिखित रूप में हो सकती हैं, जो भविष्य में विवाद होने पर निपटान में मदद करती हैं।
  • उदाहरण व फसलें (Examples & Crops):
    • उदाहरण: सब्ज़ियों का उत्पादन बड़े रिटेल चेन (retail chains) के लिए, चिप्स निर्माताओं के लिए अनुबंध के तहत आलू उत्पादन, शुगर मिल (sugar mill) के लिए गन्ना आपूर्ति।
    • तिलहन, फल, सब्ज़ियाँ, कपास, मसाले और औद्योगिक फसलें कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में आम हैं।
  • भारत में प्रचलन (Current Status in India):
    • कई रिटेल कंपनियाँ (जैसे Reliance Fresh, ITC e-Choupal) और फ़ूड प्रोसेसिंग (food processing) कंपनियाँ किसानों से अनुबंध करके ताज़ी व गुणवत्तापूर्ण उपज लेती हैं।
    • विभिन्न राज्यों में सब्ज़ियों, फलों और औद्योगिक फसलों के लिए अनुबंध खेती प्रचलित है।
    • 2020 के बाद सरकार द्वारा कृषि कानूनों में बदलावों के दौरान अनुबंध खेती पर चर्चा बढ़ी, हालांकि नीतिगत परिवर्तन विवादित रहे।
  • किसानों को लाभ (Benefits to Farmers):
    • सुनिश्चित बाज़ार: फसल तैयार होने पर बिक्री की चिंता कम।
    • मूल्य स्थिरता (Price Stability): मूल्य पहले से तय होने से अचानक मूल्य गिरावट का जोखिम कम।
    • तकनीकी सहायता (Technical Support): बेहतर इनपुट व खेती के आधुनिक तरीकों की जानकारी से उत्पादन क्षमता बढ़ती है।
    • आय में वृद्धि (Income Growth): सुनिश्चित बाज़ार और बेहतर गुणवत्ता से लंबी अवधि में आय स्थिरता संभव।
  • क्रेता को लाभ (Benefits to Buyers/Companies):
    • निरंतर आपूर्ति (Continuous Supply): तय मानकों की फसल समय पर मिलती है, जिससे आपूर्ति श्रृंखला (supply chain) सुचारू रहती है।
    • गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control): फसल उगाने के चरण से ही गुणवत्ता मानकों को लागू किया जा सकता है।
    • लॉजिस्टिक्स आसान (Easier Logistics): निर्धारित किसानों से सीधा माल खरीदने से बिचौलियों (intermediaries) पर निर्भरता घटती है।
  • चुनौतियाँ (Challenges):
    • कानूनी सुरक्षा (Legal Safeguards): छोटे किसानों के अधिकारों की सुरक्षा, विवाद निपटान की स्पष्ट व्यवस्था का अभाव।
    • विषमता (Inequality): बड़े किसान आसानी से कॉन्ट्रैक्ट कर लेते हैं, छोटे व सीमांत (marginal) किसानों को अनुबंध मिलने में दिक्कत।
    • कीमत निर्धारण (Price Determination): यदि कीमत बहुत कम तय हुई तो किसानों की शिकायत, यदि बहुत अधिक तय हुई तो क्रेता अनिच्छुक।
    • कोल्ड स्टोरेज व इंफ्रास्ट्रक्चर (Infrastructure): उच्च गुणवत्ता बनाए रखने के लिए कोल्ड चेन व भंडारण की कमी।
  • कानूनी व नीतिगत पहल (Legal & Policy Initiatives):
    • कुछ राज्यों में अनुबंध खेती के लिए अलग से नियम व कानून बने हुए हैं।
    • केंद्र व राज्य सरकारें समय-समय पर अनुबंध खेती के लिए मॉडल एक्ट या दिशानिर्देश जारी करती रही हैं।
    • डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से पारदर्शी अनुबंध, बेहतर मूल्य खोज (price discovery) और विवाद निपटान तंत्र विकसित करने के प्रयास।
  • सुधार व समाधान (Improvements & Solutions):
    • कानूनी सुरक्षा बढ़ाना: विवाद समाधान के लिए त्वरित न्यायाधिकरण (tribunals) या फास्ट ट्रैक कोर्ट का प्रावधान।
    • छोटे किसानों का समावेशन (Inclusion): किसान उत्पादक संगठन (FPOs) के माध्यम से छोटे किसानों को अनुबंध में सामूहिक रूप से शामिल करना, ताकि सौदेबाजी की ताकत (bargaining power) बढ़े।
    • उन्नत कृषि तकनीक (Advanced Agri-Tech): ड्रिप सिंचाई, बेहतर बीज, जैविक इनपुट, मृदा परीक्षण (soil testing) जैसे उपाय गुणवत्ता और उपज बढ़ाने में सहायता करेंगे।
    • पारदर्शी मूल्य निर्धारण (Transparent Pricing): ई-नाम (e-NAM) प्लेटफॉर्म या डिजिटल मार्केटप्लेस का उपयोग, जिससे किसान व खरीदार दोनों को सही जानकारी मिले।
  • डेटा व आँकड़े (Data & Figures):
    • भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का सटीक डेटा सीमित है, पर अनेक संगठित खाद्य कंपनियाँ, डेयरी (dairy), मसाला (spices) और सब्ज़ी उत्पादन इकाइयों ने पिछले एक दशक में 25-30% तक कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से कच्चे माल की सोर्सिंग बढ़ाई है।
    • राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों में सब्ज़ी, फल, डेयरी व मसाला फसलों की अनुबंध खेती बढ़ती प्रवृत्ति पर है।

मुख्य सार:

  • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग किसानों और खरीदारों को पूर्व-निर्धारित शर्तों पर लाभ देती है।
  • यह मूल्य स्थिरता, तकनीकी सहायता, व बाजार की सुनिश्चितता प्रदान करती है।
  • कानूनी और संरचनात्मक सुधारों तथा छोटे किसानों के समावेशन से अनुबंध खेती एक सुदृढ़ और लाभकारी मॉडल के रूप में उभर सकती है।
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