हरित क्रांति (Green Revolution)
- समय और अवधारणा: 1960 के दशक के उत्तरार्ध में उच्च उत्पादन क्षमता वाली फसलों (HYV Seeds), रसायनिक उर्वरकों और सिंचाई सुविधाओं के प्रयोग से खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की पहल।
- मुख्य फसलें: गेहूं, चावल
- केंद्रित क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी मैदानी क्षेत्र
- प्रभाव:
- गेहूं और चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि, खाद्यान्न आत्मनिर्भरता।
- उदाहरण: 1960 के दशक से पूर्व भारत खाद्य आयात पर निर्भर था, हरित क्रांति के बाद उत्पादन में वृद्धि, 2020 तक गेहूं उत्पादन 100 मिलियन टन+।
- आधुनिक तकनीक, उर्वरक, सिंचाई और पेस्टीसाइड के प्रयोग से उत्पादकता बढ़ी।
- चुनौतियाँ:
- जल-भूमि दोहन, मोनोक्रॉपिंग (एक ही फसल चक्र), पर्यावरणीय प्रभाव,
- छोटे और सीमांत किसानों को कम लाभ।
- उपाय:
- फसल चक्र में विविधता लाना, जैविक कृषि, मृदा स्वास्थ्य सुधार।
श्वेत क्रांति (White Revolution / Operation Flood)
- लक्ष्य: दुग्ध उत्पादन में वृद्धि करके दूध की आपूर्ति में आत्मनिर्भरता व ग्रामीण आय में वृद्धि।
- कार्यान्वयन: राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) द्वारा सहकारी दुग्ध समितियों का गठन।
- प्रभाव:
- भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना।
- 2020 में दूध उत्पादन लगभग 198.4 मिलियन टन।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत, महिला सशक्तिकरण, पोषण सुरक्षा में मदद।
- चुनौतियाँ:
- पशु चारे, नस्ल सुधार, टीकाकरण व पशु स्वास्थ्य पर ध्यान।
- उपाय:
- नस्ल सुधार कार्यक्रम, पशु चारा प्रबंधन, शीत श्रृंखला (cold chain) विकसित करना।
नीली क्रांति (Blue Revolution)
- लक्ष्य: मत्स्य पालन (fisheries) और जलीय कृषि (aquaculture) का विकास ताकि मछली उत्पादन बढ़ाकर पोषण व आर्थिक लाभ मिले।
- प्रभाव:
- भारत विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण मछली उत्पादक देश।
- 2021-22 में मछली उत्पादन 16 मिलियन टन+ (अनुमानित), निर्यात बढ़ने से विदेशी मुद्रा आय।
- केंद्रित क्षेत्र: तटीय राज्य (केरल, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात) और अंतर्देशीय जलीय निकाय।
- चुनौतियाँ:
- जलीय प्रदूषण, अवैज्ञानिक मछली पकड़ विधियां, जलवायु परिवर्तन।
- उपाय:
- वैज्ञानिक जलीय कृषि, बेहतर बीज व चारा, मत्स्यपालन के लिए प्रसंस्करण व भंडारण अवसंरचना (infrastructure)।
पीली क्रांति (Yellow Revolution)
- लक्ष्य: तिलहन (oilseeds) उत्पादन में वृद्धि, खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता।
- प्रभाव:
- सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन उत्पादन बढ़ा।
- भारत अभी भी खाद्य तेलों का बड़ा आयातक, परंतु लगातार प्रयास से स्वदेशी उत्पादन वृद्धि पर ज़ोर।
- चुनौतियाँ:
- कम उत्पादकता, आयात निर्भरता, मौसम अनिश्चितता।
- उपाय:
- बेहतर तिलहन किस्में, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) व फसल बीमा से प्रोत्साहन, तिलहन प्रसंस्करण इकाइयों का विकास।
स्वर्ण क्रांति (Golden Revolution)
- लक्ष्य: बागवानी (horticulture) – फल, सब्जियाँ, फूल, मसाले, चाय, कॉफ़ी आदि के उत्पादन को बढ़ावा देना।
- प्रभाव:
- फलों व सब्जियों का उत्पादन बढ़ा, पोषण सुरक्षा, निर्यात आय में वृद्धि।
- 2019-20 में भारत का बागवानी उत्पादन 320 मिलियन टन+ (प्रति वर्ष)।
- चुनौतियाँ:
- भंडारण सुविधाओं की कमी, प्रसंस्करण एवं वैल्यू एडिशन का अभाव, मूल्य अस्थिरता।
- उपाय:
- कोल्ड स्टोरेज, वैल्यू एडिशन, बेहतर किस्मों की खेती, मार्केट लिंकेज।
भूरी क्रांति (Brown Revolution)
- लक्ष्य: कोको, चॉकलेट उत्पादन और अन्य गैर-पारंपरिक कृषि उत्पादों का प्रसार।
- प्रभाव:
- विशेष फसलों व उत्पादों के उत्पादन से किसानों की आय में विविधता।
- चुनौतियाँ:
- कम प्रसार, मार्केट जागरूकता की कमी।
- उपाय:
- प्रशिक्षण, प्रसंस्करण, मार्केट लिंकेज।
गोल्डन फाइबर क्रांति (Golden Fiber Revolution)
- लक्ष्य: जूट (Jute) उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ाना।
- प्रभाव:
- जूट आधारित वस्तुओं में वृद्धि, पर्यावरण अनुकूल रेशे (Eco-friendly fiber)।
- चुनौतियाँ:
- सिंथेटिक फाइबर से प्रतिस्पर्धा, जूट प्रसंस्करण उद्योग की सीमाएँ।
- उपाय:
- आधुनिक जूट प्रसंस्करण तकनीक, निर्यात प्रोत्साहन।
रक्त क्रांति (Red Revolution)
- लक्ष्य: मांस (meat) और टमाटर उत्पादन बढ़ाना।
- प्रभाव:
- मांस उत्पादन में वृद्धि से प्रोटीन आहार की उपलब्धता, टमाटर की प्रोसेसिंग (sauces, ketchup) से वैल्यू एडिशन।
- चुनौतियाँ:
- भंडारण व प्रसंस्करण सुविधाओं की कमी, पशुधन स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे।
- उपाय:
- प्रसंस्करण इकाइयों का विकास, पशु टीकाकरण, विपणन सुविधाओं का विस्तार।
आकर्षण (विशेष बल) देने वाले तथ्य:
- हरित क्रांति से खाद्यान्न आत्मनिर्भरता, श्वेत क्रांति से विश्व में दूध उत्पादन में अग्रणी स्थान, नीली क्रांति से मत्स्य उत्पादन में वृद्धि, और पीली क्रांति से तिलहन उत्पादन बढ़ाने के प्रयास — सभी क्रांतियों ने भारतीय कृषि को बहुआयामी बनाया।
- बागवानी, जूट, मांस व टमाटर उत्पादन, कोको-चॉकलेट उत्पादन जैसी विशिष्ट क्रांतियों ने कृषि को विविधता दी और किसानों को नए अवसर दिए।
- इन क्रांतियों का संयुक्त प्रभाव भारत को कृषि उत्पादन में विविध, आत्मनिर्भर, निर्यात समर्थ और पोषण सुरक्षा युक्त बनाने की दिशा में अग्रसर करता है।