परिचय:
भारत में औद्योगिक विकास के लिए दीर्घकालीन वित्त, पूँजी, और तकनीकी सहायता की आवश्यकता सदैव रही है। स्वतंत्रता के बाद से ही सरकार और निजी क्षेत्र ने मिलकर ऐसी संस्थाओं का निर्माण किया, जो उद्योगों को आवश्यक वित्तीय संसाधन प्रदान कर सकें। इन वित्तीय संस्थानों का उद्देश्य न केवल उद्योगों को पूँजी उपलब्ध कराना था, बल्कि औद्योगिक विकास की गति बढ़ाना, क्षेत्रीय असंतुलन घटाना, और नई उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करना भी था।
भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI – Industrial Development Bank of India)
- स्थापना:
- 1 जुलाई 1964 को भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सहायक इकाई के रूप में।
- बाद में 1976 में इसे केंद्र सरकार के नियंत्रण में लाया गया।
- उद्देश्य:
- मध्यम व दीर्घकालीन ऋणों की व्यवस्था करना।
- औद्योगिक परियोजनाओं के लिए वित्तीय सहायता, विशेषकर बुनियादी, मध्यम और बड़े उद्योगों के लिए।
- नवउद्योगों, आयात प्रतिस्थापन, निर्यात संवर्धन, क्षेत्रीय असंतुलन कम करने के लिए वित्त उपलब्ध कराना।
- कार्य व भूमिका:
- प्रत्यक्ष ऋण, पुनर्वित्त (refinance) और गारंटी सुविधाएँ।
- निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की औद्योगिक इकाइयों को वित्त प्रदान करना।
- बुनियादी ढाँचा विकास के लिए पूँजी निवेश को बढ़ावा।
- परिवर्तन:
- आर्थिक उदारीकरण के बाद IDBI ने वाणिज्यिक बैंकिंग में भी कदम रखा।
- वर्तमान में IDBI बैंक एक पूर्ण वाणिज्यिक बैंक के रूप में कार्यरत है, फिर भी औद्योगिक वित्त में इसकी ऐतिहासिक भूमिका उल्लेखनीय है।
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI – Small Industries Development Bank of India)
- स्थापना:
- 2 अप्रैल 1990 को भारतीय लघु उद्योगों के संवर्धन एवं विकास के उद्देश्य से।
- पूर्व में इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया (IDBI) की सहायक इकाई के रूप में शुरू हुआ।
- उद्देश्य:
- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) को वित्तीय सहायता और संवर्धन।
- रोजगार सृजन, ग्रामीण औद्योगीकरण और उद्यमशीलता विकास।
- कार्य व भूमिका:
- पुनर्वित्त (Refinance) सुविधा: व्यापारिक बैंकों, सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के माध्यम से MSMEs को ऋण उपलब्ध।
- प्रत्यक्ष वित्त: नवप्रवर्तन (Innovation), स्टार्टअप, क्लस्टर विकास, तकनीक उन्नयन की परियोजनाओं में निवेश।
- नीति निर्माण में सहयोग: MSME विकास के लिए सरकार की नीतियों के कार्यान्वयन में सहायता।
- महत्त्व:
- MSME सेक्टर भारत के GDP में महत्वपूर्ण योगदान (लगभग 30% से अधिक), निर्यात में बड़ा हिस्सा, व्यापक रोजगार सृजन।
- SIDBI की सहायता से छोटे उद्योगों की वित्तीय आवश्यकताएँ पूरी होकर अर्थव्यवस्था को गति मिलती है।
मुद्रा बैंक (MUDRA Bank – Micro Units Development and Refinance Agency)
- शुरुआत:
- 8 अप्रैल 2015, प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के तहत।
- असंगठित और सूक्ष्म उद्यमियों को बिना गारंटी छोटे ऋण उपलब्ध कराना।
- उद्देश्य:
- सूक्ष्म उद्यमों (माइक्रो एंटरप्राइजेज), गैर-कॉर्पोरेट लघु व्यवसाय क्षेत्र को ऋण सुविधा।
- वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion), छोटे व्यापारियों, महिला उद्यमियों, पिछड़े वर्गों तक ऋण पहुँच।
- कार्य व भूमिका:
- तीन श्रेणी के ऋण: शिशु (50,000 तक), किशोर (50,000 से 5 लाख तक), तरुण (5 लाख से 10 लाख तक)।
- बैंक, NBFC, MFI के माध्यम से मुद्रा ऋण का वितरण।
- छोटे दुकानदारों, हस्तशिल्पियों, सब्जी विक्रेताओं, छोटे विनिर्माण इकाइयों को आसान ऋण।
- महत्त्व:
- जमीनी स्तर पर उद्यमशीलता विकास, रोजगार सृजन।
- आर्थिक संरचना में लघु उद्यमों की हिस्सेदारी बढ़ाकर आय और जीवनस्तर में सुधार।
आईसीआईसीआई (ICICI – Industrial Credit and Investment Corporation of India)
- स्थापना:
- 1955 में विश्व बैंक, सरकार और भारतीय उद्योगपतियों के संयुक्त प्रयास से।
- प्रारंभिक उद्देश्यों में निजी क्षेत्र के औद्योगिक विकास को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- उद्देश्य:
- दीर्घकालीन परियोजना वित्त, तकनीकी सहायता, आधुनिक तकनीक अपनाने के लिए पूँजी उपलब्ध कराना।
- नवाचार, उद्यमशीलता, निर्यात संवर्धन को समर्थन।
- कार्य व भूमिका:
- प्रारंभ में एक विकास वित्त संस्थान के रूप में कार्य, बाद में वाणिज्यिक बैंक में परिवर्तन।
- निजी क्षेत्र के उद्योगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान, प्रत्यक्ष ऋण और इक्विटी निवेश द्वारा कंपनियों का सहयोग।
- महत्त्व:
- आर्थिक उदारीकरण के बाद ICICI बैंक बना और आज भारत के अग्रणी निजी बैंकों में से एक।
- औद्योगिक विकास से लेकर खुदरा बैंकिंग तक अपनी भूमिका का विस्तार।
इन संस्थानों द्वारा अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- विकास एवं आधुनिकीकरण:
- IDBI, ICICI जैसे संस्थानों ने भारी उद्योगों, बुनियादी ढांचे, ऑटोमोबाइल, स्टील, सीमेंट, टेक्सटाइल इत्यादि में निवेश बढ़ाया।
- SIDBI, मुद्रा ने एमएसएमई और सूक्ष्म व्यवसायों को वित्तीय आधार दिया, जिससे अर्थव्यवस्था के निचले स्तर पर भी विकास हुआ।
- रोजगार एवं उद्यमशीलता:
- छोटे उद्योगों को वित्त मिलने से नवउद्यमी आगे आए, क्षेत्रीय असंतुलन कम हुआ, महिलाओं और पिछड़े वर्गों को अवसर मिले।
- आयात प्रतिस्थापन व निर्यात संवर्धन:
- उद्योगों की वित्तीय जरूरतों को पूरा कर नई तकनीक, बेहतर गुणवत्ता, उत्पादकता बढ़ने से निर्यात में वृद्धि, विदेशी मुद्रा अर्जन और आयात पर निर्भरता कम हुई।
- वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion):
- मुद्रा जैसे संस्थानों ने उन लोगों तक पहुँच बनाई जिन्हें पहले बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं।
- इससे पूँजी की पहुँच व्यापक और समतामूलक (inclusive) बनी।
मुख्य सार:
IDBI, SIDBI, मुद्रा बैंक, ICICI जैसी संस्थाएँ भारतीय उद्योगों को आवश्यक वित्त, तकनीकी मार्गदर्शन, व संरचनात्मक सहायता प्रदान करती आई हैं। इनकी भूमिका बड़े उद्योगों से लेकर सूक्ष्म एवं लघु इकाइयों तक फैली है। ये संस्थान अर्थव्यवस्था के विभिन्न स्तरों पर निवेश, उत्पादन, रोजगार, नवाचार तथा वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करते हुए भारत की आर्थिक विकास यात्रा में महत्वपूर्ण भागीदार रहे हैं।