कृषि क्रांतियां (Agricultural Revolutions)
स्वतंत्रता के बाद, भारतीय कृषि को आत्मनिर्भर बनाने और उत्पादन बढ़ाने के लिए समय-समय पर विभिन्न क्रांतियों की शुरुआत की गई। इन क्रांतियों ने विशिष्ट फसलों या क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके भारतीय कृषि के परिदृश्य को बदल दिया।
हरित क्रांति (Green Revolution)
समय और अवधारणा: 1966-67 में शुरू हुई इस क्रांति का उद्देश्य उच्च उपज वाले किस्म (High Yielding Variety – HYV) के बीजों, रासायनिक उर्वरकों और सिंचाई के उपयोग से खाद्यान्न उत्पादन, विशेष रूप से गेहूं और चावल, में नाटकीय वृद्धि करना था।
- जनक: भारत में इसके जनक एम.एस. स्वामीनाथन और विश्व में नॉर्मन बोरलॉग माने जाते हैं।
- प्रभाव: भारत खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर बना।
- चुनौतियाँ: क्षेत्रीय असमानता (पंजाब, हरियाणा को अधिक लाभ), पर्यावरणीय क्षरण, और छोटे किसानों तक लाभ न पहुंचना।
श्वेत क्रांति (White Revolution / Operation Flood)
लक्ष्य: 1970 में शुरू हुई इस क्रांति का उद्देश्य भारत को दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाना और ग्रामीण आय में वृद्धि करना था।
- जनक: इसके जनक डॉ. वर्गीज कुरियन माने जाते हैं।
- मॉडल: इसने ‘अमूल’ जैसे सहकारी मॉडल को बढ़ावा दिया।
- प्रभाव: भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना।
नीली क्रांति (Blue Revolution)
लक्ष्य: इसका उद्देश्य मत्स्य पालन (fisheries) और जलीय कृषि (aquaculture) का विकास करके मछली उत्पादन को बढ़ाना था।
- प्रभाव: भारत मछली उत्पादन में दुनिया के अग्रणी देशों में से एक बन गया, जिससे पोषण सुरक्षा और निर्यात आय में वृद्धि हुई।
अन्य प्रमुख क्रांतियां
- पीली क्रांति (Yellow Revolution): खाद्य तेलों और तिलहन (सरसों, सूरजमुखी) के उत्पादन को बढ़ावा देना।
- स्वर्ण क्रांति (Golden Revolution): बागवानी (फल, शहद, सब्जियां) के उत्पादन से संबंधित।
- रजत क्रांति (Silver Revolution): अंडा और पोल्ट्री उत्पादन में वृद्धि।
- गोल क्रांति (Round Revolution): आलू के उत्पादन को बढ़ाना।
- लाल क्रांति (Red Revolution): मांस और टमाटर उत्पादन से संबंधित।
- गुलाबी क्रांति (Pink Revolution): प्याज, झींगा और फार्मास्यूटिकल्स से संबंधित।
- स्वर्ण रेशा क्रांति (Golden Fiber Revolution): जूट उत्पादन को बढ़ावा देना।