बैंकिंग सुधार भारतीय वित्तीय प्रणाली को मजबूत, पारदर्शी और समावेशी बनाने के उद्देश्य से किए गए परिवर्तन हैं। ये सुधार विभिन्न समितियों और योजनाओं के माध्यम से लागू किए गए। यहां प्रमुख बैंकिंग सुधार, उनकी सिफारिशें और कार्यान्वयन की जानकारी दी गई है।
लीड बैंक योजना (Lead Bank Scheme)
परिचय
- शुरुआत: लीड बैंक योजना 1969 में नारायण समिति की सिफारिशों पर शुरू की गई।
- उद्देश्य: ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में बैंकिंग नेटवर्क का विस्तार और प्राथमिकता क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देना।
मुख्य बिंदु
- जिम्मेदारी का आवंटन:
- हर जिले में एक बैंक को लीड बैंक के रूप में नामित किया गया।
- यह बैंक जिले की आर्थिक और बैंकिंग आवश्यकताओं का आकलन करता है।
- लक्ष्य:
- ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन।
- छोटे किसानों, कारीगरों, और छोटे उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- कार्य:
- क्षेत्रीय स्तर पर वार्षिक योजनाएँ तैयार करना।
- अन्य बैंकों के साथ समन्वय स्थापित करना।
उदाहरण
उत्तर प्रदेश के किसी जिले में पंजाब नेशनल बैंक को लीड बैंक बनाया गया, जिसने बैंकिंग शाखाओं का विस्तार किया और किसानों को ऋण उपलब्ध कराया।
महत्व
लीड बैंक योजना ने ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाओं को बढ़ाया और वित्तीय असमानता को कम किया।
नरसिंहमन समिति की सिफारिशें (Recommendations of Narasimham Committee)
पहली समिति (1991)
पृष्ठभूमि
- गठन: 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था को उदारीकरण (Liberalisation) और वैश्वीकरण (Globalisation) के अनुकूल बनाने के लिए नरसिंहमन समिति बनाई गई।
- अध्यक्ष: एम. नरसिंहम।
- उद्देश्य: भारतीय बैंकिंग प्रणाली को प्रतिस्पर्धी और कुशल बनाना।
मुख्य सिफारिशें
- ब्याज दरों का उदारीकरण (Interest Rate Deregulation):
- ब्याज दरें बाजार के अनुसार तय की जाएं।
- कर्ज सस्ता और बचत आकर्षक बनाने का सुझाव।
- न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio – CAR):
- बैंकों के लिए 8% पूंजी पर्याप्तता अनुपात लागू करना।
- इससे बैंकों की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित हुई।
- बैंकों का पुनर्गठन (Reorganisation of Banks):
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एकीकरण।
- छोटे बैंकों को क्षेत्रीय स्तर तक सीमित करना।
- एनपीए प्रबंधन (NPA Management):
- गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPAs) को कम करने के उपाय।
- स्वायत्तता (Autonomy):
- बैंकों को सरकारी हस्तक्षेप से स्वतंत्र बनाने की सिफारिश।
परिणाम
इन सिफारिशों ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सुधार लाया और इसे आर्थिक उदारीकरण के साथ संगत बनाया।
दूसरी समिति (1997)
पृष्ठभूमि
- गठन: 1997 में नरसिंहमन समिति II बनाई गई।
- उद्देश्य: पहली समिति की सिफारिशों की समीक्षा और आगे के सुधार।
मुख्य सिफारिशें
- एनपीए में सुधार (Improvement in NPAs):
- संपत्ति पुनर्गठन कंपनियाँ (Asset Reconstruction Companies) स्थापित करने का सुझाव।
- बैंकों का एकीकरण (Consolidation of Banks):
- मजबूत और बड़े बैंक बनाने के लिए बैंकों का विलय।
- क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा बढ़ाना।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग (Use of Technology):
- बैंकिंग सेवाओं में डिजिटल प्रणाली लागू करना।
- सख्त जोखिम प्रबंधन (Risk Management):
- बैंकों को जोखिम प्रबंधन में सुधार करना।
परिणाम
- एनपीए की निगरानी में सुधार।
- डिजिटल बैंकिंग प्रणाली की शुरुआत।
अन्य समितियाँ (Other Committees)
मालेगांव समिति (Malegam Committee – 2010)
उद्देश्य
- माइक्रोफाइनेंस संस्थानों (MFIs) के कामकाज में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व लाना।
सिफारिशें
- ब्याज दरों पर सीमा तय करना।
- MFIs को छोटे कर्जदारों के लिए कर्ज की सीमा लागू करना।
दामोदरन समिति (Damodaran Committee – 2010)
उद्देश्य
- बैंकिंग सेवाओं में ग्राहक सेवा में सुधार।
सिफारिशें
- ग्राहक शिकायतों के लिए एकल निवारण प्रणाली।
- बैंक शाखाओं में सुविधाजनक और पारदर्शी सेवाएँ।
- सेवा शुल्क को तर्कसंगत बनाना।
उषा थोराट समिति (Usha Thorat Committee – 2010)
उद्देश्य
- शहरी सहकारी बैंकों (Urban Cooperative Banks) की कार्यप्रणाली में सुधार।
सिफारिशें
- सहकारी बैंकों के लिए सख्त नियामक ढाँचा।
- बैंकिंग प्रणाली के साथ सहकारी बैंकों को जोड़ा जाए।
उर्जित पटेल समिति (Urjit Patel Committee – 2013)
उद्देश्य
- मुद्रास्फीति नियंत्रण और मौद्रिक नीति में सुधार।
सिफारिशें
- मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Inflation Targeting) प्रणाली लागू करना।
- लक्ष्य: मुद्रास्फीति को 4% ± 2% के भीतर रखना।
- मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) का गठन।
- ब्याज दरें तय करने में आरबीआई को स्वायत्तता देना।
विमल जालान समिति (Vimal Jalan Committee – 2019)
उद्देश्य
- आरबीआई के अधिशेष भंडार (Surplus Reserves) का प्रबंधन।
सिफारिशें
- सरकार को अधिशेष भंडार हस्तांतरित करने के नियम।
- वित्तीय स्थिरता के लिए अधिशेष का उपयोग।
नचिकेत मोर समिति (Nachiket Mor Committee – 2013)
उद्देश्य
- वित्तीय समावेशन (Financial Inclusion) बढ़ाना।
सिफारिशें
- प्रत्येक नागरिक को जन्म से मृत्यु तक बैंक खाता।
- ग्रामीण क्षेत्रों में पेमेंट बैंक की स्थापना।
- डिजिटलीकरण के माध्यम से वित्तीय सेवाओं को सुलभ बनाना।
महत्वपूर्ण तिथियाँ और आँकड़े (Key Dates and Figures)
- लीड बैंक योजना: 1969।
- नरसिंहमन समिति I: 1991।
- नरसिंहमन समिति II: 1997।
- उर्जित पटेल समिति: 2013।
- विमल जालान समिति: 2019।
- पेमेंट बैंक की शुरुआत: 2015 (नचिकेत मोर समिति की सिफारिश)।
बैंकिंग सुधारों ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली को अधिक स्थिर, पारदर्शी और समावेशी बनाया। डिजिटल बैंकिंग और वित्तीय समावेशन में सुधार, एनपीए प्रबंधन, और ग्राहक सेवा जैसे क्षेत्रों में यह सुधार महत्वपूर्ण रहे। ये सुधार भारत की आर्थिक विकास यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुए।