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बेसल मानक (Basel Norms): बैंकिंग जोखिम प्रबंधन

बेसल मानक (Basel Norms)

परिभाषा: बेसल मानक अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग विनियमों का एक समूह है जो बैंकों के लिए जोखिम प्रबंधन, पूंजी पर्याप्तता और तरलता पर दिशानिर्देश निर्धारित करता है। इनका नाम स्विट्जरलैंड के बेसल शहर के नाम पर रखा गया है, जहाँ बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) का मुख्यालय है, और यहीं पर बेसल कमेटी ऑन बैंकिंग सुपरविजन (BCBS) इन मानकों को तैयार करती है।

उद्देश्य: वैश्विक वित्तीय प्रणाली को मजबूत करना और बैंकों को वित्तीय संकटों का सामना करने में अधिक सक्षम बनाना।

बेसल मानकों के संस्करण

बेसल I (1988)

इसे 1988 में पेश किया गया था और यह मुख्य रूप से क्रेडिट जोखिम (Credit Risk) पर केंद्रित था।

  • मुख्य बिंदु: इसने बैंकों के लिए अपनी जोखिम-भारित संपत्ति (Risk-Weighted Assets) का 8% का न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio – CAR) बनाए रखना अनिवार्य कर दिया।
  • भारत में: RBI ने भारतीय बैंकों के लिए 9% का उच्च CAR निर्धारित किया।

बेसल II (2004)

इसे 2004 में पेश किया गया और यह बेसल I की तुलना में अधिक परिष्कृत था।

  • मुख्य बिंदु: इसने तीन स्तंभों की अवधारणा पेश की:
    1. न्यूनतम पूंजी आवश्यकताएं: इसमें क्रेडिट जोखिम के साथ-साथ परिचालन जोखिम (Operational Risk) और बाजार जोखिम (Market Risk) को भी शामिल किया गया।
    2. पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रिया: बैंकों के जोखिम प्रबंधन और पूंजी पर्याप्तता का मूल्यांकन करने के लिए नियामकों को अधिक भूमिका दी गई।
    3. बाजार अनुशासन: बैंकों के लिए अपनी जोखिम प्रोफाइल और पूंजी की स्थिति का खुलासा करना अनिवार्य किया गया ताकि बाजार में पारदर्शिता बढ़े।

बेसल III (2010)

2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के जवाब में, 2010 में बेसल III मानकों को पेश किया गया। इसका उद्देश्य बैंकों को वित्तीय झटकों के प्रति और अधिक लचीला बनाना था।

  • मुख्य बिंदु:
    • उच्च और बेहतर गुणवत्ता वाली पूंजी: न्यूनतम CAR को बढ़ाया गया और पूंजी की गुणवत्ता पर जोर दिया गया।
    • पूंजी संरक्षण बफर (Capital Conservation Buffer): बैंकों को सामान्य समय में एक अतिरिक्त बफर बनाने के लिए कहा गया, जिसका उपयोग वे संकट के समय कर सकते हैं।
    • तरलता अनुपात (Liquidity Ratios): पहली बार, दो नए तरलता मानक पेश किए गए: तरलता कवरेज अनुपात (LCR) और शुद्ध स्थिर धन अनुपात (NSFR)।
    • लीवरेज अनुपात (Leverage Ratio): बैंकों द्वारा अत्यधिक उधार लेने पर रोक लगाने के लिए एक गैर-जोखिम-आधारित लीवरेज अनुपात पेश किया गया।

भारत में स्थिति

  • CAR की आवश्यकता: RBI ने भारतीय बैंकों के लिए न्यूनतम CAR 9% निर्धारित किया है, जो अंतरराष्ट्रीय मानक (8%) से अधिक है।
  • बेसल III का कार्यान्वयन: भारत ने बेसल III मानकों को चरणबद्ध तरीके से लागू किया है। अधिकांश भारतीय बैंक निर्धारित पूंजी और तरलता अनुपातों का पालन करते हैं।
  • चुनौतियाँ: सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए पूंजी जुटाना और उच्च NPA स्तरों का प्रबंधन करना प्रमुख चुनौतियां रही हैं। सरकार ने पुनर्पूंजीकरण (Recapitalisation) और बैंकों के विलय जैसे कदमों से इन चुनौतियों का समाधान करने का प्रयास किया है।

अभ्यास प्रश्न (MCQs)

1. बेसल मानक किस शहर के नाम पर रखे गए हैं, जहाँ बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) का मुख्यालय है?
  • (a) जिनेवा
  • (b) बेसल, स्विट्जरलैंड
  • (c) न्यूयॉर्क
  • (d) लंदन
2. बेसल III मानकों को किस प्रमुख घटना के जवाब में पेश किया गया था?
  • (a) 1997 का एशियाई वित्तीय संकट
  • (b) 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट
  • (c) डॉट-कॉम बबल
  • (d) यूरोपीय ऋण संकट
3. ‘तरलता कवरेज अनुपात (LCR)’ और ‘शुद्ध स्थिर धन अनुपात (NSFR)’ की अवधारणा किस बेसल मानक के तहत पेश की गई थी?
  • (a) बेसल I
  • (b) बेसल II
  • (c) बेसल III
  • (d) ये बेसल मानकों का हिस्सा नहीं हैं।
4. बेसल II के तीन स्तंभों में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल नहीं है?
  • (a) न्यूनतम पूंजी आवश्यकताएं
  • (b) पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रिया
  • (c) मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण
  • (d) बाजार अनुशासन
5. भारत में RBI द्वारा निर्धारित न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) क्या है?
  • (a) 8%
  • (b) 9%
  • (c) 10.5%
  • (d) 11.5%

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1: बेसल III मानकों के प्रमुख घटकों पर चर्चा करें। भारतीय बैंकिंग प्रणाली को अधिक लचीला बनाने में इन मानकों के कार्यान्वयन से जुड़ी चुनौतियों और लाभों का विश्लेषण करें। (250 शब्द)
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