परिभाषा (Definition)
बेसल मानक एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचा है जो बैंकों के लिए जोखिम प्रबंधन (Risk Management) और पूंजी पर्याप्तता (Capital Adequacy) सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश प्रदान करता है।
- यह मानक बेसल कमेटी ऑन बैंकिंग सुपरविजन (BCBS) द्वारा तैयार किए गए हैं।
- उद्देश्य:
- बैंकों की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना।
- वित्तीय संकट (Financial Crises) से बचाव करना।
- अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग प्रणाली को मजबूत बनाना।
परिचय (Introduction)
- बेसल समिति का गठन:
- 1974 में स्विट्जरलैंड के बेसल शहर में, बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट्स (BIS) के तहत इस समिति का गठन हुआ।
- प्रमुख उद्देश्य:
- वैश्विक बैंकिंग मानकों को एकीकृत करना।
- बैंकों के लिए जोखिम प्रबंधन, पूंजी पर्याप्तता, और संचालन जोखिम पर दिशानिर्देश तैयार करना।
- भारत में क्रियान्वयन:
- भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा सभी वाणिज्यिक बैंकों और वित्तीय संस्थानों के लिए बेसल मानकों को लागू किया गया।
बेसल मानकों के संस्करण (Versions of Basel Norms)
1. बेसल I (Basel I)
- शुरुआत: 1988।
- मुख्य बिंदु:
- बैंकों को पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio – CAR) बनाए रखना आवश्यक है।
- न्यूनतम पूंजी पर्याप्तता अनुपात: 8%।
- भारत में लागू:
- 1998 से, भारतीय बैंकों को 8% के बजाय 9% CAR बनाए रखने की आवश्यकता थी।
2. बेसल II (Basel II)
- शुरुआत: 2004।
- मुख्य बिंदु:
- पूंजी पर्याप्तता के साथ-साथ जोखिम प्रबंधन पर ध्यान।
- तीन स्तंभ:
- न्यूनतम पूंजी आवश्यकताएँ (Minimum Capital Requirements)।
- पर्यवेक्षी समीक्षा प्रक्रिया (Supervisory Review Process)।
- बाजार अनुशासन (Market Discipline)।
- भारत में लागू:
- 2009 से चरणबद्ध तरीके से।
3. बेसल III (Basel III)
- शुरुआत: 2010।
- मुख्य बिंदु:
- वैश्विक वित्तीय संकट (2008) के बाद वित्तीय प्रणाली की स्थिरता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया।
- बैंकों के लिए न्यूनतम पूंजी, तरलता अनुपात (Liquidity Ratio), और लीवरेज अनुपात (Leverage Ratio) को मजबूत करना।
- न्यूनतम CAR: 10.5%।
- बफ़र पूंजी (Capital Buffer): अतिरिक्त पूंजी जो बैंकों को संकट के समय उपयोग करनी होती है।
- भारत में लागू:
- 2013 से चरणबद्ध तरीके से।
- पूरा कार्यान्वयन लक्ष्य: 31 मार्च 2023।
भारत में स्थिति (Current Status in India)
- पूंजी पर्याप्तता अनुपात (Capital Adequacy Ratio – CAR):
- भारत में RBI ने न्यूनतम CAR 9% निर्धारित किया है, जो बेसल मानकों (8%) से अधिक है।
- बेसल III का क्रियान्वयन:
- 2013 से भारतीय बैंकों ने इसे लागू करना शुरू किया।
- अधिकांश सार्वजनिक और निजी बैंकों ने 10.5% से अधिक CAR बनाए रखा है।
- एसबीआई (SBI) का CAR (2023): 13.88%।
- एचडीएफसी बैंक का CAR (2023): 19.3%।
- तरलता कवरेज अनुपात (Liquidity Coverage Ratio – LCR):
- भारतीय बैंकों को कम से कम 100% LCR बनाए रखना आवश्यक है।
- चुनौतियाँ (Challenges):
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अपनी पूंजी बढ़ाने के लिए सरकारी पुनर्पूंजीकरण की आवश्यकता।
- एनपीए (Non-Performing Assets) का उच्च स्तर।
- डिजिटलीकरण और साइबर जोखिम।
बेसल III के लाभ (Benefits of Basel III)
- वित्तीय स्थिरता:
- बैंकों की पूंजी और तरलता मजबूत होने से वित्तीय प्रणाली स्थिर रहती है।
- जोखिम प्रबंधन में सुधार:
- बैंकों के संचालन और जोखिम लेने की क्षमता में सुधार हुआ।
- संकट से बचाव:
- अतिरिक्त पूंजी और तरलता संकट के समय बैंक की रक्षा करती है।
भारत में सुधार और कदम (Reforms and Steps in India)
- पुनर्पूंजीकरण (Recapitalisation):
- 2017-2019 के बीच सरकार ने ₹2.11 लाख करोड़ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पुनर्पूंजीकरण के रूप में प्रदान किए।
- बैंकों का विलय (Bank Mergers):
- कमजोर बैंकों को मजबूत बैंकों के साथ मिलाकर उनकी पूंजी स्थिति में सुधार किया गया।
- डिजिटल बैंकिंग:
- भारतीय बैंकों ने डिजिटल सेवाओं और साइबर सुरक्षा में निवेश किया।
- एनपीए प्रबंधन:
- आईबीसी (Insolvency and Bankruptcy Code) के माध्यम से खराब ऋणों में कमी लाई गई।
- 2023 तक, बैंकों का सकल एनपीए 5% से कम हो गया।
सारांश
बेसल मानकों ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली को अधिक स्थिर और मजबूत बनाया है। हालांकि चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जैसे पूंजी जुटाना और एनपीए प्रबंधन, लेकिन इन मानकों ने वित्तीय स्थिरता और संकट से बचाव में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बेसल III के तहत, भारत ने वैश्विक बैंकिंग मानकों के साथ खुद को सुसंगत बना लिया है, जो इसे एक सशक्त और लचीला वित्तीय प्रणाली बनाने की दिशा में आगे बढ़ाता है।