परिचय: भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियां
एक ओर जहाँ भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर यह कई गंभीर और जटिल चुनौतियों का सामना भी कर रही है। ये चुनौतियां इसके विकास की राह में बाधा उत्पन्न करती हैं और एक बड़े वर्ग को विकास के लाभों से वंचित रखती हैं। इन चुनौतियों का समाधान करना सतत और समावेशी विकास के लिए अनिवार्य है।
1. बेरोजगारी (Unemployment)
भारत के लिए बेरोजगारी, विशेषकर युवा बेरोजगारी, एक बड़ी चिंता का विषय है। अर्थव्यवस्था पर्याप्त संख्या में गुणवत्तापूर्ण रोजगार पैदा करने के लिए संघर्ष कर रही है। भारत में बेरोजगारी दर, विशेष रूप से शहरी और शिक्षित युवाओं में, 7-8% के उच्च स्तर पर बनी हुई है। कृषि क्षेत्र में प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment) व्यापक है, जहाँ आवश्यकता से अधिक लोग काम पर लगे हैं।
विस्तृत विश्लेषण (मुख्य परीक्षा हेतु)
- प्रमुख कारण:
- रोजगार-विहीन संवृद्धि (Jobless Growth): सेवा और पूंजी-गहन क्षेत्रों में वृद्धि तो हो रही है, लेकिन वे अधिक रोजगार पैदा नहीं कर रहे हैं।
- कौशल की कमी (Skill Mismatch): शिक्षा प्रणाली और औद्योगिक जरूरतों के बीच एक बड़ा अंतर है।
- कम महिला श्रम बल भागीदारी: सामाजिक और संरचनात्मक कारणों से भारत में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) बहुत कम है।
- प्रभाव: यह न केवल आर्थिक विकास को बाधित करता है बल्कि सामाजिक अशांति, गरीबी और जनसांख्यिकीय लाभांश के व्यर्थ होने का कारण भी बनता है।
- सरकारी प्रयास: मनरेगा (MGNREGA), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना, और स्टार्ट-अप इंडिया जैसी पहलें।
2. गरीबी और आय की असमानता (Poverty and Income Inequality)
तेज आर्थिक विकास के बावजूद, विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों तक समान रूप से नहीं पहुंचा है। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारत की लगभग 11% आबादी बहुआयामी गरीबी में जी रही थी। वहीं, विश्व असमानता रिपोर्ट के अनुसार, भारत के शीर्ष 1% लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 22% से अधिक हिस्सा है।
विस्तृत विश्लेषण (मुख्य परीक्षा हेतु)
- प्रमुख कारण:
- असमान संपत्ति वितरण: भूमि और पूंजी जैसे संसाधनों का असमान वितरण।
- रोजगार की गुणवत्ता: अधिकांश रोजगार असंगठित क्षेत्र में हैं जहाँ वेतन कम और सामाजिक सुरक्षा का अभाव है।
- शिक्षा और स्वास्थ्य तक असमान पहुंच: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में असमानता अवसरों की असमानता को जन्म देती है।
- प्रभाव: यह सामाजिक ताने-बाने को कमजोर करता है, अपराध को बढ़ावा देता है और समग्र मांग को कम करके आर्थिक विकास को धीमा कर सकता है।
- सरकारी प्रयास: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN), आयुष्मान भारत, और विभिन्न सामाजिक पेंशन योजनाएं।
3. मुद्रास्फीति (Inflation)
बढ़ती कीमतें, विशेष रूप से खाद्य और ईंधन की, निम्न और मध्यम आय वाले परिवारों की क्रय शक्ति को कम करती हैं। हाल के वर्षों में, उपभोक्ता मुद्रास्फीति अक्सर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के 4-6% के सहज स्तर से ऊपर रही है, जो आम आदमी के बजट को सीधे प्रभावित करता है।
विस्तृत विश्लेषण (मुख्य परीक्षा हेतु)
- प्रमुख कारण:
- आपूर्ति-पक्ष की बाधाएं: अनियमित मानसून, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और भंडारण सुविधाओं की कमी।
- वैश्विक कारक: कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में वृद्धि और भू-राजनीतिक तनाव।
- मांग-पक्ष का दबाव: कभी-कभी अर्थव्यवस्था में अतिरिक्त तरलता के कारण भी मांग बढ़ जाती है।
- प्रभाव: यह गरीबों को सबसे अधिक प्रभावित करता है, बचत को हतोत्साहित करता है और निवेश निर्णयों में अनिश्चितता पैदा करता है।
- सरकारी प्रयास: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा मौद्रिक नीति (रेपो दर समायोजन) का उपयोग, और सरकार द्वारा आपूर्ति बढ़ाने के उपाय (जैसे बफर स्टॉक जारी करना, आयात शुल्क कम करना)।
4. बुनियादी ढांचे की कमी (Infrastructure Gap)
हालांकि हाल के वर्षों में प्रगति हुई है, फिर भी गुणवत्तापूर्ण बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है। भारत में लॉजिस्टिक्स लागत जीडीपी का लगभग 13-14% है, जो वैश्विक औसत (लगभग 8%) से बहुत अधिक है। यह उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करता है।
विस्तृत विश्लेषण (मुख्य परीक्षा हेतु)
- प्रमुख कारण:
- वित्तपोषण की कमी: बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है।
- भूमि अधिग्रहण में देरी: भूमि अधिग्रहण की जटिल प्रक्रिया कई परियोजनाओं में देरी का कारण बनती है।
- नियामक और पर्यावरणीय बाधाएं: विभिन्न स्वीकृतियों में लगने वाला समय।
- प्रभाव: उच्च लॉजिस्टिक्स लागत उद्योगों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कम करती है और क्षेत्रीय असमानता को बढ़ाती है।
- सरकारी प्रयास: राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP), पीएम गति शक्ति योजना, भारतमाला और सागरमाला परियोजनाएं।
5. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
सरकार का व्यय जब उसकी आय से अधिक हो जाता है, तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। भारत का राजकोषीय घाटा अक्सर जीडीपी के 5% से अधिक रहा है, जिसे पूरा करने के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है, जिससे सार्वजनिक ऋण बढ़ता है।
विस्तृत विश्लेषण (मुख्य परीक्षा हेतु)
- प्रमुख कारण:
- कम कर-जीडीपी अनुपात: भारत का कर-जीडीपी अनुपात कई अन्य देशों की तुलना में कम है।
- उच्च सब्सिडी बिल: खाद्य, उर्वरक और ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी पर भारी खर्च।
- ब्याज भुगतान: पिछले ऋणों पर ब्याज का भुगतान सरकार के व्यय का एक बड़ा हिस्सा है।
- प्रभाव: उच्च घाटा सार्वजनिक ऋण को बढ़ाता है, निजी निवेश को बाहर कर सकता है (Crowding Out Effect), और मुद्रास्फीति को बढ़ावा दे सकता है।
- सरकारी प्रयास: राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (FRBM) अधिनियम, वस्तु एवं सेवा कर (GST) का कार्यान्वयन, और सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना।
अभ्यास प्रश्न (MCQs)
कारण R: भारत में अभी भी परिवहन और भंडारण के लिए एकीकृत और कुशल बुनियादी ढांचे का अभाव है।