विमुद्रीकरण और अवमूल्यन
विमुद्रीकरण और अवमूल्यन दो अलग-अलग आर्थिक नीतियां हैं जिनका उपयोग सरकारें विशिष्ट आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए करती हैं। विमुद्रीकरण का संबंध देश की आंतरिक मुद्रा प्रणाली से है, जबकि अवमूल्यन का संबंध देश की मुद्रा के बाहरी मूल्य से है।
विमुद्रीकरण (Demonetisation)
परिभाषा: विमुद्रीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें सरकार किसी विशेष मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को कानूनी तौर पर अमान्य (illegal tender) घोषित कर देती है। इसके बाद, उन नोटों का उपयोग लेन-देन के लिए नहीं किया जा सकता है।
भारत में विमुद्रीकरण के प्रमुख अवसर
- 1946: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जमा किए गए काले धन पर अंकुश लगाने के लिए ₹500, ₹1,000 और ₹10,000 के नोटों को बंद कर दिया गया।
- 1978: जनता पार्टी सरकार ने अवैध लेन-देन को रोकने के लिए ₹1,000, ₹5,000 और ₹10,000 के नोटों को फिर से बंद कर दिया।
- 2016: 8 नवंबर 2016 को, सरकार ने काले धन, नकली मुद्रा और आतंकवाद के वित्तपोषण पर रोक लगाने के उद्देश्य से महात्मा गांधी श्रृंखला के ₹500 और ₹1,000 के नोटों को अमान्य कर दिया।
अवमूल्यन (Devaluation)
परिभाषा: अवमूल्यन वह प्रक्रिया है जिसमें सरकार द्वारा स्थिर विनिमय दर प्रणाली (Fixed Exchange Rate System) के तहत अपनी मुद्रा के बाहरी मूल्य को किसी अन्य विदेशी मुद्रा या सोने के मुकाबले जानबूझकर कम कर दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य देश के निर्यात को सस्ता और आयात को महंगा बनाकर व्यापार घाटे को कम करना होता है।
भारत में अवमूल्यन के प्रमुख अवसर
- 1949: स्वतंत्रता के बाद पहला अवमूल्यन।
- 1966: गंभीर आर्थिक संकट और भुगतान संतुलन की समस्या के कारण भारतीय रुपये का लगभग 36.5% अवमूल्यन किया गया।
- 1991: गंभीर भुगतान संतुलन संकट के बीच, भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की शर्तों के तहत दो चरणों में रुपये का लगभग 18-19% अवमूल्यन किया।
विमुद्रीकरण और अवमूल्यन में अंतर
आधार | विमुद्रीकरण (Demonetisation) | अवमूल्यन (Devaluation) |
---|---|---|
अर्थ | किसी करेंसी नोट को कानूनी मुद्रा के रूप में समाप्त करना। | मुद्रा के बाहरी मूल्य को जानबूझकर कम करना। |
उद्देश्य | काला धन, नकली मुद्रा और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना। | निर्यात बढ़ाना और व्यापार घाटा कम करना। |
प्रभाव का क्षेत्र | मुख्य रूप से देश की आंतरिक अर्थव्यवस्था। | मुख्य रूप से देश का विदेशी व्यापार और विदेशी मुद्रा भंडार। |
परिणाम | डिजिटल भुगतान में वृद्धि, अल्पकालिक नकदी संकट। | निर्यात में वृद्धि, आयात का महंगा होना। |