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किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य (Doubling Farmers’ Income by 2022)

परिचय व अवधारणा

  • उद्देश्य: वर्ष 2016 में भारत सरकार द्वारा घोषित महत्वपूर्ण लक्ष्य – 2022 तक किसानों की आय को दोगुनी (Double) करना।
  • पृष्ठभूमि: कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधारों की आवश्यकता, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देना, कृषि से होने वाली आमदनी में वृद्धि करके किसानों के जीवन-स्तर को ऊपर उठाना।

प्रमुख रणनीतियाँ एवं घटक

  1. उत्पादकता वृद्धि (Productivity Increase):
    • उच्च गुणवत्ता वाले बीज, बेहतर उर्वरक प्रबंधन, सूक्ष्म सिंचाई (drip, sprinkler), न्यूनतम कीटनाशक उपयोग, मृदा स्वास्थ्य सुधार।
    • उन्नत कृषि तकनीक (precision farming), कृषि यंत्रीकरण (farm mechanization) से श्रम लागत में कमी एवं समय की बचत।
    • डेटा उदाहरण: वर्षा आधारित क्षेत्रों में सूक्ष्म सिंचाई के उपयोग से उत्पादकता में 15-20% तक वृद्धि होने की संभावना (सरकारी आकलन)।
  2. कृषि विविधीकरण (Crop Diversification):
    • सिर्फ अनाज फसलों से हटकर बागवानी (horticulture), पशुपालन (animal husbandry), मत्स्य पालन (fisheries), रेशम उत्पादन (sericulture), मधुमक्खी पालन (apiculture) इत्यादि को अपनाने पर जोर।
    • बागवानी उत्पादों, डेयरी और मछली उत्पादन से आय में वृद्धि की अपार संभावनाएँ, क्योंकि बाजार में इनकी मांग अपेक्षाकृत अधिक मूल्य पर उपलब्ध रहती है।
  3. मूल्य संवर्धन एवं प्रसंस्करण (Value Addition & Processing):
    • कृषि प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना, भंडारण (storage), कोल्ड स्टोरेज, ग्रेडिंग-सॉर्टिंग, पैकेजिंग के माध्यम से फसलों के बेहतर दाम।
    • कृषि निर्यात प्रोत्साहन, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (Food Processing Industries) को बढ़ावा देने से किसान को फसल का बेहतर मूल्य मिलता है।
    • आँकड़े: भारत के फलों और सब्जियों के कुल उत्पादन का बड़ा हिस्सा प्रसंस्करण के अभाव में बेकार जाता था, प्रसंस्करण बढ़ने से अपव्यय में कमी और किसान को अधिक मूल्य।
  4. बाज़ार पहुँच एवं विपणन सुधार (Market Access & Marketing Reforms):
    • ई-नाम (e-NAM) जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से पारदर्शी मूल्य खोज, राष्ट्रीय बाज़ार तक सीधी पहुँच।
    • कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग, किसान उत्पादक संगठन (FPOs) के माध्यम से सामूहिक विपणन, बिचौलियों की भूमिका में कमी।
    • बेहतर भंडारण व परिवहन अवसंरचना (infrastructure) ताकि उत्पाद शीघ्र एवं सुरक्षित मंडियों तक पहुँच सके।
  5. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) एवं संस्थागत सुधार:
    • MSP में समय-समय पर वृद्धि, अधिक फसलों को MSP के दायरे में लाना।
    • नैफेड, FCI जैसी संस्थाओं की क्रय क्षमता बढ़ाना व दाल, तिलहन जैसे फसलों की सरकारी खरीद से किसानों को मूल्य सुरक्षा।
  6. कम इनपुट लागत (Reducing Input Cost):
    • नीम लेपित यूरिया, मृदा स्वास्थ्य कार्ड से उर्वरकों का संतुलित उपयोग, इनपुट लागत में कमी।
    • सोलर पंप (कुसुम योजना) से ऊर्जा लागत कम, प्राकृतिक खेती एवं जैविक खेती के माध्यम से रसायनों पर निर्भरता कम।
  7. ऋण सुविधाएँ एवं बीमा सुरक्षा (Credit & Insurance):
    • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) के माध्यम से सस्ती ऋण सुविधा, आपातकालीन फंड की उपलब्धता।
    • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) से फसल नुकसान पर मुआवज़ा, जोखिम कम होने से मनोवैज्ञानिक सुरक्षा व दीर्घकालीन निवेश में वृद्धि।
  8. डिजिटल एवं सूचना प्रौद्योगिकी (ICT in Agriculture):
    • मौसम पूर्वानुमान, बाजार की कीमतों की रीयल-टाइम सूचना, मोबाइल ऐप, कृषि हेल्पलाइन से बेहतर निर्णय क्षमता।
    • ड्रोन, रिमोट सेंसिंग, GIS आधारित मृदा एवं जल संसाधन प्रबंधन से सटीक खेती।
  9. कृषि पुनरुद्धार में उद्यमशीलता (Entrepreneurship in Agriculture):
    • स्टार्टअप इंडिया, एग्री-स्टार्टअप को बढ़ावा, नवाचार (innovation) तथा मूल्य संवर्धन के लिए वित्तीय सहायता।
    • छोटे किसानों को बड़े बाजारों से जोड़ना, ई-कॉमर्स प्लैटफॉर्म तक पहुँच, वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भागीदारी।

चुनौतियाँ

  • जलवायु परिवर्तन से अनिश्चित मौसम, सूखा, बाढ़ आदि का असर।
  • छोटी जोत (landholding) वाले किसानों के लिए निवेश की कमी।
  • बाजार तक पहुँच की समस्या और स्थानीय ढाँचागत कमियाँ (roads, cold storage)।
  • कृषि शिक्षा एवं जागरूकता की कमी, आधुनिक तकनीकों का धीमा प्रसार।

उपलब्धि एवं प्रगति (Achievements & Progress)

  • कुछ क्षेत्रों में उत्पादकता, आय, कृषि निर्यात में वृद्धि दर्ज।
  • डेयरी, बागवानी, मछलीपालन व बांस उत्पादन में सकारात्मक रुझान।
  • ई-नाम, कुसुम, PM-KISAN, PMFBY जैसी योजनाओं से किसानों की आर्थिक स्थिरता में आंशिक सुधार।

डेटा व आँकड़े (Data & Figures)

  • केंद्र सरकार की रिपोर्टों और समितियों के अनुसार, कुछ फसलों व क्षेत्रों में किसानों की वास्तविक आय में वृद्धि के संकेत।
  • हालांकि विभिन्न विश्लेषणों से पता चलता है कि 2022 तक आय दोगुनी करने का लक्ष्य पूर्ण रूप से हासिल करना चुनौतीपूर्ण रहा, किंतु प्रयासों से कृषि विकास की दिशा में ठोस नींव तैयार हुई।

आगे की राह (Way Forward)

  • जैविक, प्राकृतिक, कम इनपुट कृषि को बढ़ावा, फसल विविधीकरण।
  • निर्यात उन्मुख उत्पादन, वैश्विक मानकों के अनुरूप प्रसंस्करण और पैकेजिंग।
  • डिजिटल प्लेटफार्मों का अधिकतम उपयोग, डेटा विश्लेषण द्वारा सटीक नीतिगत निर्णय।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP), उद्योग-कृषि जोड़कर वैल्यू चेन विकसित करना।
  • स्थायी कृषि (Sustainable Agriculture) की दिशा में निरंतर प्रयास।

मुख्य सार:
किसानों की आय दोगुनी करने की पहल ने कृषि क्षेत्र में बहुआयामी सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया। उत्पादन से लेकर विपणन, प्रसंस्करण, इनपुट प्रबंधन, वित्तीय सहायता और टेक्नोलॉजी के उपयोग तक व्यापक कदम उठाए गए। यद्यपि लक्ष्य की पूर्ण प्राप्ति चुनौतिपूर्ण रही, पर इन प्रयासों से भविष्य में कृषि को अधिक स्थिर, उत्पादक, लाभकारी एवं टिकाऊ बनाने की दिशा में ठोस नींव रखी गई है।

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