सरकारी घाटा (Government Deficits)
परिभाषा: सरकारी घाटा उस स्थिति को दर्शाता है जब किसी वित्तीय वर्ष में सरकार का कुल व्यय उसकी कुल आय से अधिक हो जाता है। यह सरकार की वित्तीय स्थिति का एक महत्वपूर्ण संकेतक है और यह दर्शाता है कि सरकार अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कितनी उधारी पर निर्भर है।
1. राजस्व घाटा (Revenue Deficit)
परिभाषा: यह सरकार के राजस्व व्यय और राजस्व प्राप्तियों के बीच का अंतर है।
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां
महत्व: एक उच्च राजस्व घाटा यह दर्शाता है कि सरकार अपनी दिन-प्रतिदिन की जरूरतों (जैसे वेतन, सब्सिडी, पेंशन) को पूरा करने के लिए भी उधार ले रही है, जो एक अस्वस्थ वित्तीय स्थिति का संकेत है। यह सरकार की ‘बचत में कमी’ (dissaving) को दर्शाता है।
2. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)
परिभाषा: यह सरकार के कुल व्यय और उधार को छोड़कर कुल प्राप्तियों के बीच का अंतर है। यह एक वित्तीय वर्ष में सरकार की कुल उधारी आवश्यकताओं को दर्शाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – (राजस्व प्राप्तियां + गैर-ऋण पूंजीगत प्राप्तियां)
महत्व: यह अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का सबसे महत्वपूर्ण संकेतक है। एक उच्च राजकोषीय घाटा ऋण के जाल, मुद्रास्फीति और निजी निवेश में कमी (Crowding Out Effect) का कारण बन सकता है।
3. प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)
परिभाषा: यह चालू वर्ष के राजकोषीय घाटे और पिछले उधारों पर ब्याज भुगतान के बीच का अंतर है।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान
महत्व: यह दर्शाता है कि सरकार को ब्याज भुगतान को छोड़कर अपने खर्चों को पूरा करने के लिए कितनी उधारी की आवश्यकता है। एक शून्य प्राथमिक घाटा इंगित करता है कि सरकार को केवल पिछले ऋणों पर ब्याज का भुगतान करने के लिए उधार लेना पड़ रहा है।
FRBM अधिनियम (Fiscal Responsibility and Budget Management Act, 2003)
यह भारत सरकार द्वारा राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करने और घाटे को कम करने के लिए बनाया गया एक कानून है। इसका मुख्य उद्देश्य राजकोषीय घाटे और राजस्व घाटे को समय के साथ कम करना था। समय-समय पर इसके लक्ष्यों की समीक्षा के लिए एन.के. सिंह समिति जैसी समितियां गठित की गई हैं।