भारत में जनगणना का इतिहास
परिचय: भारत में जनगणना का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है जो 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से शुरू होता है। यह हर 10 साल में आयोजित होने वाला सबसे बड़ा प्रशासनिक और सांख्यिकीय अभ्यास है, जो देश की जनसांख्यिकीय, सामाजिक और आर्थिक तस्वीर प्रदान करता है। यह नीति-निर्माण और शासन का एक अनिवार्य उपकरण है।
महत्वपूर्ण समयरेखा
1872: पहली गैर-समकालिक जनगणना
भारत में पहली जनगणना का प्रयास 1872 में ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड मेयो के अधीन किया गया था। हालांकि, यह पूरे देश में एक साथ नहीं की गई थी और इसमें कई क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया था, इसलिए इसे गैर-समकालिक माना जाता है।
1881: पहली समकालिक जनगणना
भारत में पहली पूर्ण और व्यवस्थित (समकालिक) जनगणना 1881 में लॉर्ड रिपन के कार्यकाल में हुई। इसके बाद से, हर 10 साल में नियमित रूप से जनगणना आयोजित की जाती रही है।
1921: महान विभाजक वर्ष (Year of the Great Divide)
1921 से पहले, भारत की जनसंख्या वृद्धि दर अनियमित थी। लेकिन 1921 के बाद, मृत्यु दर में कमी के कारण जनसंख्या में लगातार वृद्धि देखी गई। इसलिए, 1921 को भारतीय जनसांख्यिकीय इतिहास में ‘महान विभाजक वर्ष’ कहा जाता है।
1951: स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना
स्वतंत्रता के बाद, 1951 में पहली जनगणना आयोजित की गई। इसने देश के विभाजन के बाद की जनसांख्यिकी को समझने और पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास योजना के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान किया।
2011: 15वीं जनगणना
यह स्वतंत्रता के बाद 7वीं जनगणना थी। इसका नारा था ‘हमारी जनगणना, हमारा भविष्य’। इस जनगणना ने भारत की जनसंख्या को 121 करोड़ से अधिक दर्ज किया। पहली बार, इसमें सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) को भी शामिल किया गया था।
2021: प्रस्तावित डिजिटल जनगणना
2021 में होने वाली 16वीं जनगणना COVID-19 महामारी के कारण स्थगित कर दी गई है। यह भारत की पहली डिजिटल जनगणना होगी, जिसमें डेटा संग्रह के लिए मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग किया जाएगा, जिससे डेटा प्रसंस्करण में तेजी आने की उम्मीद है।
जनगणना का महत्व
- नीति निर्माण: सरकार जनगणना के आंकड़ों का उपयोग राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) जैसी कल्याणकारी योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान करने के लिए करती है।
- संसाधनों का आवंटन: वित्त आयोग केंद्र और राज्यों के बीच कर राजस्व के बंटवारे के लिए जनसंख्या के आंकड़ों का उपयोग करता है।
- परिसीमन: लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निर्धारण जनगणना के आंकड़ों के आधार पर किया जाता है ताकि ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ का सिद्धांत सुनिश्चित हो सके।
- अनुसंधान: शोधकर्ता और शिक्षाविद सामाजिक-आर्थिक प्रवृत्तियों, शहरीकरण, प्रवासन पैटर्न और प्रजनन दर का विश्लेषण करने के लिए जनगणना डेटा का उपयोग करते हैं।