औद्योगिक नीतियां (Industrial Policies)
परिचय: भारत की औद्योगिक नीतियां देश के आर्थिक विकास को दिशा देने के लिए सरकार द्वारा बनाए गए रणनीतिक प्रयासों का दस्तावेज हैं। स्वतंत्रता के बाद से, इन नीतियों ने समाजवादी झुकाव से लेकर बाजार-उन्मुख उदारीकरण तक एक महत्वपूर्ण परिवर्तन देखा है, जो देश की बदलती आर्थिक प्राथमिकताओं को दर्शाता है।
औद्योगिक नीति संकल्प, 1956
पृष्ठभूमि: इसे ‘भारतीय अर्थव्यवस्था का मैग्ना कार्टा’ भी कहा जाता है। यह नीति दूसरी पंचवर्षीय योजना (महालनोबिस मॉडल) के अनुरूप थी, जिसका उद्देश्य भारत में एक समाजवादी ধাঁचे के समाज की स्थापना करना था।
मुख्य बिंदु
- उद्योगों का तीन श्रेणियों में वर्गीकरण:
- अनुसूची ‘A’: 17 प्रमुख उद्योग (जैसे- इस्पात, कोयला, परमाणु ऊर्जा) जो पूरी तरह से सरकार के स्वामित्व में थे।
- अनुसूची ‘B’: 12 उद्योग जिनमें राज्य और निजी क्षेत्र दोनों भाग ले सकते थे, लेकिन नेतृत्व राज्य का होता।
- अनुसूची ‘C’: शेष सभी उद्योग निजी क्षेत्र के लिए खुले थे, लेकिन उन्हें लाइसेंसिंग प्रणाली के तहत काम करना था।
- लाइसेंस राज की स्थापना: निजी क्षेत्र को कोई भी नया उद्योग स्थापित करने या अपनी क्षमता का विस्तार करने के लिए सरकार से लाइसेंस लेना अनिवार्य था।
औद्योगिक नीति, 1977
पृष्ठभूमि: जनता पार्टी सरकार द्वारा पेश की गई इस नीति का मुख्य ध्यान गांधीवादी सिद्धांतों पर था, जिसमें लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन और विकेंद्रीकरण पर जोर दिया गया।
औद्योगिक नीति, 1980
पृष्ठभूमि: कांग्रेस सरकार की वापसी के बाद, इस नीति का उद्देश्य 1977 की नीति के कुछ प्रतिबंधों को हटाकर औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देना और आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना था। इसने लाइसेंसिंग प्रणाली में कुछ ढील दी लेकिन मूल ढांचा 1956 की नीति का ही बना रहा।
नई औद्योगिक नीति, 1991
पृष्ठभूमि: 1991 के गंभीर भुगतान संतुलन संकट के जवाब में, इस नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था में एक युगांतरकारी परिवर्तन किया। इसने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) के एक नए युग की शुरुआत की।
मुख्य बिंदु
- लाइसेंस राज की समाप्ति: 18 उद्योगों को छोड़कर अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई।
- सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में कमी: सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित उद्योगों की संख्या घटाकर केवल रणनीतिक महत्व वाले क्षेत्रों तक सीमित कर दी गई और विनिवेश (disinvestment) की प्रक्रिया शुरू की गई।
- विदेशी निवेश को प्रोत्साहन: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए दरवाजे खोले गए और विदेशी प्रौद्योगिकी समझौतों को स्वचालित मंजूरी दी गई।