परिचय:
अवसंरचना (Infrastructure) किसी अर्थव्यवस्था की आधारशिला होती है। इसमें परिवहन (transport), ऊर्जा (energy), दूरसंचार (telecommunication), आवास (housing), औद्योगिक पार्क, आर्थिक गलियारे (economic corridors), तथा विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) जैसे घटक शामिल हैं। प्रभावी अवसंरचना विकास से न केवल औद्योगिक उत्पादन और व्यापार में वृद्धि होती है, बल्कि रोजगार के अवसर, जीवनस्तर में सुधार, तथा समावेशी एवं सतत विकास को भी प्रोत्साहन मिलता है।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ – Special Economic Zones)
- उद्देश्य:
- निर्यात संवर्धन (export promotion), विदेशी निवेश आकर्षित करना, आर्थिक गतिविधियों में तेजी, विश्वस्तरीय ढाँचा एवं रियायतों द्वारा विनिर्माण व सेवा क्षेत्र का विकास।
- सरल नियामकीय वातावरण (regulatory environment), टैक्स में छूट, विश्वस्तरीय अवसंरचना।
- प्रावधान:
- SEZ अधिनियम, 2005 के तहत स्थापित।
- आयकर, सीमा शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क जैसे करों में छूट।
- श्रम, पर्यावरण आदि के लिए सरल अनुपालन (compliance)।
- डेटा एवं आँकड़े:
- 2020 तक भारत में 230+ कार्यशील SEZ और कई अन्य प्रस्तावित।
- निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान: SEZ से 2019-20 में निर्यात मूल्य शेकड़ों अरब रुपये में।
- आईटी/आईटीईएस, फार्मा, रत्न-आभूषण, ऑटोमोबाइल कंपोनेंट जैसे क्षेत्रों में तेजी।
- प्रभाव:
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) बढ़ाने, रोजगार सृजन, निर्यात बढ़ाने, तथा तकनीकी उन्नयन में सहायता।
- परंतु कुछ SEZ अपेक्षाओं से कम सफल, भूमि अधिग्रहण व सामाजिक-पर्यावरणीय प्रभावों पर आलोचना।
औद्योगिक कॉरिडोर (Industrial Corridors)
- उद्देश्य:
- देश भर में औद्योगिक आधारभूत संरचनाओं का नेटवर्क तैयार करना।
- लॉजिस्टिक लागत में कमी, क्षेत्रीय संतुलित विकास, आपूर्ति श्रृंखलाओं (supply chains) का सुदृढ़ीकरण, निर्यात में वृद्धि।
- प्रमुख औद्योगिक कॉरिडोर:
- दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC):
- भारत सरकार और जापान सहयोग।
- DMIC के तहत कई औद्योगिक टाउनशिप, स्मार्ट सिटी, लॉजिस्टिक हब, तथा विनिर्माण क्षेत्र विकसित।
- चेन्नई-बेंगलुरू औद्योगिक गलियारा:
- दक्षिण भारत में उद्योगों को तटीय बंदरगाहों से जोड़ना।
- आईटी, ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र को बढ़ावा।
- डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (Dedicated Freight Corridor – DFC):
- माल ढुलाई के लिए विशेष रेल गलियारे, तेज परिवहन, समय व लागत में कटौती।
- दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (DMIC):
- डेटा एवं आँकड़े:
- DMIC परियोजना की कुल लागत अनुमानित 100 अरब डॉलर से अधिक।
- DFC पर मालगाड़ियाँ लगभग दुगनी-तिगुनी रफ्तार से चल सकेंगी, जिससे रसद (logistics) में सुधार।
- प्रभाव:
- औद्योगिक कॉरिडोर से निर्माण, ऊर्जा, परिवहन, स्टोरेज जैसी सेवाओं में व्यापक सुधार।
- निवेश बढ़ने, विनिर्माण बढ़ने से रोजगार एवं GDP में वृद्धि।
राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (NIIF – National Investment and Infrastructure Fund)
- शुरुआत:
- 2015 में स्थापित, भारत सरकार की दीर्घकालीन पूँजीगत निवेश (long-term capital) के लिए पहल।
- उद्देश्य:
- अवसंरचना परियोजनाओं, स्टार्टअप, नए उद्यमों, बुनियादी ढाँचा कंपनियों में इक्विटी आधारित निवेश।
- वैश्विक व घरेलू निवेशकों से पूँजी आकर्षित कर अवसंरचना विकास में प्रयोग।
- कार्यप्रणाली:
- सरकारी अंशदान के साथ-साथ संप्रभु संपदा कोष (Sovereign Wealth Funds), पेंशन फंड, बीमा कंपनियों, तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से निवेश आकर्षित करना।
- NIIF के तीन फंड: मास्टर फंड, फण्ड ऑफ फण्ड्स, स्ट्रैटेजिक फंड। विभिन्न क्षेत्रों जैसे ऊर्जा, परिवहन, लॉजिस्टिक, रिन्यूएबल ऊर्जा में निवेश।
- डेटा एवं आँकड़े:
- 2020-21 तक NIIF में अरबों डॉलर का पूँजीगत आधार, जिसके माध्यम से सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे, रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट्स में निवेश।
- अर्थव्यवस्था में दीर्घकालिक पूँजी उपलब्धता, निजी निवेश बढ़ाने में सहायक।
- प्रभाव:
- अवसंरचना विकास को स्थायी वित्तीय आधार, निवेश आकर्षण में आसानी।
- क्षेत्रीय संतुलन, लॉन्ग-टर्म रोजगार, प्रतिस्पर्धात्मकता में वृद्धि।
मुख्य सार:
- SEZ के माध्यम से निर्यात, विदेशी निवेश, तकनीकी उन्नयन और रोजगार बढ़ाने के प्रयास हुए, जिससे भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में जुड़ा।
- औद्योगिक कॉरिडोर परियोजनाएँ उत्पादन केंद्रों को बाज़ारों और बंदरगाहों से जोड़कर लॉजिस्टिक लागत कम करती हैं, उद्योगों को विश्व बाजार में प्रतिस्पर्धी बनाती हैं और आर्थिक गतिविधियों में तेजी लाती हैं।
- NIIF जैसे कोष लम्बी अवधि के निवेश और अवसंरचना विकास के लिए आवश्यक पूँजी की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं, जिससे सतत और संतुलित विकास का आधार तैयार होता है।
अवसंरचना विकास से व्यापार में सुगमता, निर्यात क्षमता में वृद्धि, निवेश आकर्षण और आर्थिक संतुलन में सहायता मिलती है, जो अंतत: समावेशी और स्थायी विकास को गति देती है।