मुद्रास्फीति का मापन (Measurement of Inflation)
मुद्रास्फीति को मापने के लिए विभिन्न मूल्य सूचकांकों का उपयोग किया जाता है। ये सूचकांक एक निश्चित अवधि (जिसे आधार वर्ष कहते हैं) की तुलना में वर्तमान कीमतों में हुए औसत परिवर्तन को दर्शाते हैं।
1. प्रमुख सूचकांक (Major Indices)
थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index – WPI)
यह सूचकांक थोक बाजार में वस्तुओं की कीमतों में परिवर्तन को मापता है। इसमें केवल वस्तुएं शामिल होती हैं, सेवाएं नहीं। भारत में इसका आधार वर्ष 2011-12 है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index – CPI)
यह सूचकांक खुदरा बाजार में उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में औसत परिवर्तन को मापता है। भारत में इसका आधार वर्ष 2012 है। RBI अपनी मौद्रिक नीति के लिए इसी को मुख्य आधार मानता है।
जीडीपी डिफ्लेटर (GDP Deflator)
यह अर्थव्यवस्था में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में परिवर्तन को मापता है। यह मुद्रास्फीति का सबसे व्यापक मापक है।
फॉर्मूला: GDP Deflator = (नॉमिनल GDP / वास्तविक GDP) × 100
फिलिप्स वक्र (Phillips Curve)
परिभाषा: फिलिप्स वक्र एक आर्थिक सिद्धांत है जो मुद्रास्फीति और बेरोजगारी के बीच एक व्युत्क्रम (उल्टे) संबंध को दर्शाता है। इसके अनुसार, जब मुद्रास्फीति बढ़ती है, तो बेरोजगारी घटती है, और जब मुद्रास्फीति घटती है, तो बेरोजगारी बढ़ती है।
मुख्य विशेषताएँ
- अल्पकालिक संबंध: यह संबंध मुख्य रूप से अल्पकाल में ही काम करता है।
- दीर्घकालिक संबंध: दीर्घकाल में, अधिकांश अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह संबंध टूट जाता है और बेरोजगारी अपनी ‘प्राकृतिक दर’ पर वापस आ जाती है।
फिलिप्स वक्र की सीमाएँ
- स्टैगफ्लेशन (Stagflation): 1970 के दशक में, कई देशों ने उच्च मुद्रास्फीति और उच्च बेरोजगारी दोनों का अनुभव किया, जिसे स्टैगफ्लेशन कहा गया। इस स्थिति ने फिलिप्स वक्र के सिद्धांत को चुनौती दी।
- प्राकृतिक दर परिकल्पना: मिल्टन फ्रीडमैन जैसे अर्थशास्त्रियों ने तर्क दिया कि दीर्घकाल में बेरोजगारी एक प्राकृतिक दर पर स्थिर हो जाती है, चाहे मुद्रास्फीति की दर कुछ भी हो।
भारत में फिलिप्स वक्र का संदर्भ
भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था में, फिलिप्स वक्र का संबंध हमेशा स्पष्ट नहीं होता है। यहाँ बेरोजगारी के कई संरचनात्मक कारण हैं जो केवल मुद्रास्फीति से प्रभावित नहीं होते। फिर भी, नीति निर्माता मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के बीच संतुलन बनाने का प्रयास करते हैं।