मौद्रिक नीति (Monetary Policy)
परिभाषा: मौद्रिक नीति वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी देश का केंद्रीय बैंक (भारत में, भारतीय रिजर्व बैंक – RBI) अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। इसका मुख्य उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना है।
मौद्रिक नीति के उद्देश्य
- मूल्य स्थिरता (Price Stability): मुद्रास्फीति को एक निर्धारित लक्ष्य के भीतर रखना।
- आर्थिक विकास (Economic Growth): निवेश और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अनुकूल वातावरण बनाना।
- पूर्ण रोजगार (Full Employment): रोजगार के अवसरों को अधिकतम करना।
- विनिमय दर स्थिरता (Exchange Rate Stability): विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करना।
मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC)
भारत में नीतिगत ब्याज दरों पर निर्णय लेने के लिए 2016 में मौद्रिक नीति समिति का गठन किया गया था। इसका गठन उर्जित पटेल समिति की सिफारिशों पर आधारित था।
- संरचना: इसमें कुल 6 सदस्य होते हैं: 3 RBI से (गवर्नर सहित) और 3 केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त स्वतंत्र विशेषज्ञ।
- अध्यक्ष: RBI गवर्नर MPC के पदेन अध्यक्ष होते हैं।
- कार्य: MPC का मुख्य कार्य भारत में मुद्रास्फीति को 4% (+/- 2%) के लक्ष्य के भीतर रखना है। यह हर दो महीने में बैठक करती है।
मौद्रिक नीति के उपकरण (Instruments of Monetary Policy)
मात्रात्मक उपकरण (Quantitative Instruments)
ये उपकरण अर्थव्यवस्था में धन की कुल मात्रा को प्रभावित करते हैं।
- रेपो रेट (Repo Rate): वह ब्याज दर जिस पर RBI वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। रेपो रेट बढ़ने से ऋण महंगा होता है और मुद्रा आपूर्ति घटती है।
- रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate): वह ब्याज दर जो RBI वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेने पर उन्हें देता है।
- नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio – CRR): बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत RBI के पास नकदी के रूप में रखना अनिवार्य होता है। CRR बढ़ने से बैंकों की उधार देने की क्षमता कम हो जाती है।
- सांविधिक तरलता अनुपात (Statutory Liquidity Ratio – SLR): बैंकों को अपनी कुल जमा राशि का एक निश्चित प्रतिशत तरल संपत्ति (जैसे सोना, सरकारी प्रतिभूतियां) के रूप में अपने पास रखना होता है।
- खुले बाजार की क्रियाएं (Open Market Operations – OMO): RBI द्वारा बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-बिक्री। प्रतिभूतियों को बेचने से बाजार से तरलता कम होती है और खरीदने से बढ़ती है।
गुणात्मक उपकरण (Qualitative Instruments)
ये उपकरण अर्थव्यवस्था के विशिष्ट क्षेत्रों में ऋण के प्रवाह को निर्देशित करते हैं।
- मार्जिन आवश्यकता (Margin Requirement): ऋण के लिए संपार्श्विक (collateral) के मूल्य और दिए गए ऋण की राशि के बीच का अंतर।
- ऋण की राशनिंग (Credit Rationing): विभिन्न क्षेत्रों के लिए ऋण की अधिकतम सीमा तय करना।
- नैतिक दबाव (Moral Suasion): RBI द्वारा वाणिज्यिक बैंकों को अपनी नीतियों का पालन करने के लिए सलाह और अनुनय का उपयोग करना।
मौद्रिक नीति के प्रकार (Types of Monetary Policy Stance)
विस्तारवादी / उदार मौद्रिक नीति (Expansionary / Accommodative Stance)
इसे ‘सस्ती मुद्रा नीति’ (Cheap Money Policy) भी कहते हैं। यह तब अपनाई जाती है जब अर्थव्यवस्था में मंदी हो। इसका उद्देश्य ब्याज दरों को कम करके और धन की आपूर्ति को बढ़ाकर आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है।
संकुचनकारी / सख्त मौद्रिक नीति (Contractionary / Hawkish Stance)
इसे ‘महंगी मुद्रा नीति’ (Dear Money Policy) भी कहते हैं। यह तब अपनाई जाती है जब अर्थव्यवस्था में उच्च मुद्रास्फीति हो। इसका उद्देश्य ब्याज दरों को बढ़ाकर और धन की आपूर्ति को कम करके मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना है।