एनपीए (Non-Performing Assets – NPAs)
परिभाषा: गैर-निष्पादित आस्ति (NPA) बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा दिए गए उन ऋणों या अग्रिमों को संदर्भित करती है जिनसे आय (ब्याज या मूलधन के रूप में) प्राप्त होना बंद हो गया है। RBI के मानदंडों के अनुसार, यदि किसी ऋण पर ब्याज या मूलधन का भुगतान 90 दिनों से अधिक समय तक नहीं किया जाता है, तो उसे NPA के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। NPA बैंकों के वित्तीय स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
एनपीए का वर्गीकरण
विशेष उल्लेख खाते (Special Mention Accounts – SMA)
यह NPA बनने से पहले की चेतावनी अवस्था है। जब किसी खाते में भुगतान में देरी होती है, तो उसे SMA के रूप में वर्गीकृत किया जाता है:
- SMA-0: 1-30 दिनों की देरी।
- SMA-1: 31-60 दिनों की देरी।
- SMA-2: 61-90 दिनों की देरी। (90 दिन के बाद यह NPA बन जाता है)
1. अवमानक परिसंपत्तियाँ (Substandard Assets)
वे संपत्तियां जो 12 महीने या उससे कम की अवधि के लिए NPA बनी रहती हैं।
2. संदिग्ध परिसंपत्तियाँ (Doubtful Assets)
यदि कोई संपत्ति 12 महीने से अधिक की अवधि के लिए अवमानक श्रेणी में रहती है, तो उसे संदिग्ध संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
3. हानि परिसंपत्तियाँ (Loss Assets)
जब किसी संपत्ति को बैंक, ऑडिटर या RBI द्वारा असंग्रहणीय (uncollectible) मान लिया जाता है, तो उसे हानि संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
एनपीए के कारण
- आंतरिक कारण (बैंकों से संबंधित):
- दोषपूर्ण ऋण मूल्यांकन और उचित परिश्रम (due diligence) का अभाव।
- ऋण की अपर्याप्त निगरानी।
- जानबूझकर चूक करने वालों (Willful Defaulters) को ऋण देना और उनसे सांठगांठ।
- बाहरी कारण (अर्थव्यवस्था और उधारकर्ता से संबंधित):
- आर्थिक मंदी या चक्रीय मंदी, जिससे कंपनियों का मुनाफा घटता है।
- सरकारी नीतियों में अचानक बदलाव, जिससे परियोजनाएं अव्यवहार्य हो जाती हैं।
- कानूनी और नियामक बाधाएं, जैसे भूमि अधिग्रहण में देरी।
- उधारकर्ता द्वारा धन का अन्यत्र उपयोग (diversion of funds)।
एनपीए का प्रभाव
- बैंकों पर: बैंकों की लाभप्रदता कम हो जाती है क्योंकि उन्हें NPA के लिए प्रावधान (provisioning) करना पड़ता है। उनकी ऋण देने की क्षमता घट जाती है, जिससे तरलता संकट पैदा होता है।
- अर्थव्यवस्था पर: अर्थव्यवस्था में निवेश और ऋण प्रवाह कम हो जाता है। इसे ‘ट्विन बैलेंस शीट प्रॉब्लम’ (Twin Balance Sheet Problem) कहा जाता है, जहाँ एक ओर कंपनियों की बैलेंस शीट कर्ज में डूबी होती है और दूसरी ओर बैंकों की बैलेंस शीट NPA से खराब होती है, जिससे विकास चक्र रुक जाता है।
एनपीए को कम करने के उपाय
1. दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC)
यह NPA समाधान के लिए एक समयबद्ध (time-bound) प्रक्रिया प्रदान करता है। यह लेनदारों को दिवालिया कंपनियों से अपने बकाया की वसूली के लिए एक मजबूत कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
2. SARFAESI अधिनियम, 2002
वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और प्रतिभूति हित का प्रवर्तन (SARFAESI) अधिनियम बैंकों को अदालत के हस्तक्षेप के बिना डिफॉल्टरों की संपत्तियों को जब्त करने और बेचने की अनुमति देता है।
3. संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियां (ARCs)
ARCs बैंकों से NPA खरीदती हैं और फिर उनसे बकाया वसूलने का काम करती हैं। हाल ही में, सरकार ने नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (NARCL) या ‘बैड बैंक’ की स्थापना को मंजूरी दी है।
4. 4R रणनीति (4R Strategy)
सरकार और RBI ने NPA की समस्या से निपटने के लिए 4R रणनीति अपनाई है: पहचान (Recognise), समाधान (Resolve), पुनर्पूंजीकरण (Recapitalise), और सुधार (Reform)।