औद्योगिक विकास के चरण (Phases of Industrial Development)
परिचय: स्वतंत्रता के बाद भारत के औद्योगिक विकास की यात्रा को देश की आर्थिक नीतियों, राजनीतिक विचारधारा और वैश्विक परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न चरणों में विभाजित किया जा सकता है। यह यात्रा एक नियंत्रित, समाजवादी-उन्मुख अर्थव्यवस्था से एक उदार, बाजार-संचालित अर्थव्यवस्था की ओर एक क्रमिक परिवर्तन को दर्शाती है।
1. 1951-1965: समाजवादी दृष्टिकोण और बुनियादी उद्योगों की नींव
मुख्य विशेषताएँ: इस चरण की विशेषता 1956 की औद्योगिक नीति थी, जिसने सार्वजनिक क्षेत्र को अर्थव्यवस्था के विकास का मुख्य इंजन बनाया। दूसरी पंचवर्षीय योजना (महालनोबिस मॉडल) के तहत, भारी और बुनियादी उद्योगों (इस्पात, मशीनरी, बिजली) की स्थापना पर जोर दिया गया। आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution) और आत्मनिर्भरता प्रमुख लक्ष्य थे।
परिणाम: इस चरण ने भारत में एक मजबूत औद्योगिक आधार की नींव रखी, लेकिन लाइसेंस राज और निजी क्षेत्र पर नियंत्रण ने प्रतिस्पर्धा और दक्षता को सीमित कर दिया।
2. 1965-1980: मंदी, नियंत्रण एवं लघु उद्योगों का प्रोत्साहन
मुख्य विशेषताएँ: यह चरण युद्ध (1965, 1971), सूखे और 1973 के वैश्विक तेल संकट के कारण औद्योगिक मंदी से चिह्नित था। 1977 की औद्योगिक नीति में लघु, कुटीर और ग्रामीण उद्योगों को बढ़ावा देकर रोजगार सृजन पर ध्यान केंद्रित किया गया, लेकिन बड़े उद्योगों पर नियंत्रण बना रहा।
परिणाम: औद्योगिक विकास की गति धीमी रही। लाइसेंस राज और अन्य नियंत्रणों ने उद्यमशीलता को बाधित किया।
3. 1981-1990: उदारीकरण के शुरुआती संकेत एवं आधुनिकीकरण
मुख्य विशेषताएँ: 1980 की औद्योगिक नीति ने आधुनिकीकरण, तकनीकी उन्नयन और उत्पादकता में सुधार पर जोर दिया। लाइसेंसिंग नियमों में कुछ ढील दी गई और निर्यात को बढ़ावा देने के प्रयास किए गए।
परिणाम: औद्योगिक विकास दर में कुछ सुधार हुआ, लेकिन अर्थव्यवस्था अभी भी संरचनात्मक समस्याओं से जूझ रही थी।
4. 1991-वर्तमान: उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) का युग
मुख्य विशेषताएँ: 1991 के गंभीर भुगतान संतुलन संकट के जवाब में, नई औद्योगिक नीति, 1991 ने एक क्रांतिकारी बदलाव किया। इसने उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण (LPG) के एक नए युग की शुरुआत की।
- लाइसेंस राज की समाप्ति: अधिकांश उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई।
- सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में कमी: विनिवेश (disinvestment) की प्रक्रिया शुरू की गई।
- विदेशी निवेश को प्रोत्साहन: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लिए दरवाजे खोले गए।
परिणाम: इस चरण में उच्च जीडीपी वृद्धि दर, विदेशी निवेश में भारी वृद्धि, और सेवा क्षेत्र का तेजी से विस्तार देखा गया। भारत एक प्रतिस्पर्धी, बाजार-उन्मुख अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा।