परिचय: भारत में आर्थिक नियोजन
आर्थिक नियोजन (Economic Planning) का अर्थ है, राज्य द्वारा देश की आर्थिक संपदा और सेवाओं की एक निश्चित अवधि हेतु आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना। भारत ने स्वतंत्रता के बाद विकास के लिए नियोजन का मार्ग अपनाया, जो मुख्य रूप से तत्कालीन सोवियत संघ (USSR) के मॉडल से प्रेरित था। इसका उद्देश्य उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना और देश का सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित करना था।
भारत की पंचवर्षीय योजनाएं (1951-2017)
भारत में नियोजन की प्रक्रिया मुख्य रूप से पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित की गई, जिनका निर्माण योजना आयोग (Planning Commission) द्वारा किया जाता था और राष्ट्रीय विकास परिषद (National Development Council – NDC) द्वारा अनुमोदित किया जाता था।
पहली पंचवर्षीय योजना (1951-1956)
- मॉडल: यह हैरॉड-डोमर मॉडल पर आधारित थी।
- उद्देश्य: मुख्य ध्यान कृषि क्षेत्र के विकास, सिंचाई और ऊर्जा परियोजनाओं पर था।
- प्रमुख उपलब्धियां: भाखड़ा-नांगल, दामोदर घाटी और हीराकुंड जैसी बहुउद्देशीय परियोजनाएं शुरू की गईं।
- मूल्यांकन: यह योजना सफल रही, इसने लक्ष्य (2.1%) से अधिक (3.6%) की वृद्धि दर हासिल की।
दूसरी पंचवर्षीय योजना (1956-1961)
- मॉडल: यह पी.सी. महालनोबिस मॉडल पर आधारित थी।
- उद्देश्य: तीव्र औद्योगीकरण, विशेष रूप से भारी उद्योगों और सार्वजनिक क्षेत्र पर जोर।
- प्रमुख उपलब्धियां: भिलाई, दुर्गापुर और राउरकेला में इस्पात संयंत्र स्थापित किए गए।
- मूल्यांकन: यह योजना अपने लक्ष्य (4.5%) को पूरी तरह से प्राप्त नहीं कर सकी (4.27% प्राप्त)।
तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-1966)
- उद्देश्य: अर्थव्यवस्था को ‘आत्मनिर्भर और स्वतः स्फूर्त’ बनाना। कृषि और उद्योग दोनों को प्राथमिकता दी गई।
- विफलता के कारण: चीन के साथ युद्ध (1962), पाकिस्तान के साथ युद्ध (1965) और भीषण सूखा (1965-66)।
- मूल्यांकन: यह योजना बुरी तरह विफल रही। लक्ष्य 5.6% के मुकाबले केवल 2.84% की वृद्धि दर हासिल हुई।
योजना अवकाश (Plan Holiday: 1966-1969)
तीसरी योजना की विफलता के कारण, तीन वार्षिक योजनाएं (1966-69) बनाई गईं। इस अवधि में हरित क्रांति की शुरुआत हुई।
चौथी पंचवर्षीय योजना (1969-1974)
- उद्देश्य: “स्थिरता के साथ विकास” और “आत्मनिर्भरता की प्राप्ति”।
- प्रमुख घटनाएं: 14 प्रमुख भारतीय बैंकों का राष्ट्रीयकरण, 1971 का भारत-पाक युद्ध।
- मूल्यांकन: यह योजना भी अपने लक्ष्य (5.7%) को प्राप्त करने में विफल रही (3.3% प्राप्त)।
पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-1978)
- उद्देश्य: “गरीबी हटाओ” और आत्मनिर्भरता पर जोर।
- प्रमुख घटनाएं: इसे जनता पार्टी सरकार द्वारा एक वर्ष पहले (1978 में) ही समाप्त कर दिया गया था।
- मूल्यांकन: यह योजना सफल रही, इसने लक्ष्य (4.4%) से अधिक (4.8%) की वृद्धि दर हासिल की।
अन्य योजनाएं (संक्षेप में)
- छठी योजना (1980-85): गरीबी निवारण और रोजगार सृजन पर केंद्रित। सफल रही।
- सातवीं योजना (1985-90): “भोजन, काम और उत्पादकता” पर जोर। सफल रही।
- वार्षिक योजनाएं (1990-92): केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता के कारण दो वार्षिक योजनाएं लागू की गईं।
- आठवीं योजना (1992-97): LPG सुधारों (उदारीकरण, निजीकरण, वैश्वीकरण) के बाद पहली योजना। मानव संसाधन विकास को प्राथमिकता। सफल रही।
- नौवीं योजना (1997-2002): “सामाजिक न्याय और समानता के साथ विकास”। असफल रही।
- दसवीं योजना (2002-07): अगले 10 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करने का लक्ष्य। सफल रही।
- ग्यारहवीं योजना (2007-12): “तीव्रतर और अधिक समावेशी विकास” की ओर। सफल रही।
- बारहवीं योजना (2012-17): “तीव्र, अधिक समावेशी और धारणीय विकास” इसका मुख्य विषय था। यह भारत की अंतिम पंचवर्षीय योजना थी।
योजना आयोग से नीति आयोग तक का सफर
2014 में, योजना आयोग को भंग कर दिया गया और उसके स्थान पर 1 जनवरी, 2015 को नीति आयोग (National Institution for Transforming India) की स्थापना की गई।
नीति आयोग: एक नया दृष्टिकोण
- संरचना: यह एक ‘थिंक टैंक’ या सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है।
- दृष्टिकोण: यह ‘टॉप-डाउन’ (ऊपर से नीचे) के बजाय ‘बॉटम-अप’ (नीचे से ऊपर) दृष्टिकोण पर आधारित है।
- सहकारी संघवाद: यह राज्यों को नीति निर्माण प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार बनाकर सहकारी संघवाद को बढ़ावा देता है।
- वित्तीय शक्ति: योजना आयोग के विपरीत, नीति आयोग के पास राज्यों को वित्तीय आवंटन करने की शक्ति नहीं है। यह कार्य अब वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाता है।