रबी फसलें (Rabi Crops)
- समय: बुवाई: अक्टूबर-नवंबर, कटाई: अप्रैल-मई
- आवश्यक मौसम: ठंडा व शुष्क मौसम, न्यूनतम तापमान 10°C से 15°C और पकते समय हल्की गरमी
- उदाहरण: गेहूँ, जौ, चना, सरसों, मटर, मसूर
- मुख्य उत्पादक राज्य:
- गेहूँ: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश
- चना: मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र
- सरसों: राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश
- मटर: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश
- मसूर: उत्तर प्रदेश, बिहार
- उत्पादन व आँकड़े:
- 2023 में भारत में गेहूँ उत्पादन लगभग 112 मिलियन टन
- रबी दालों (चना, मसूर) का उत्पादन भी लगातार बढ़ रहा है
- भूमिका:
- पोषण सुरक्षा (पोषक तत्त्वों की उपलब्धता)
- आटे, दालों, खाद्य तेलों के रूप में प्रसंस्करण उद्योगों को कच्चा माल
- उत्पादन बढ़ाने के उपाय:
- उच्च गुणवत्तापूर्ण बीज, बेहतर जल प्रबंधन
- सूक्ष्म पोषक तत्त्व (micronutrients) की पूर्ति
- फसल चक्र अपनाना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का उपयोग
ख़रीफ़ फसलें (Kharif Crops)
- समय: बुवाई: जून-जुलाई (मानसून आरंभ), कटाई: अक्टूबर-नवंबर
- आवश्यक मौसम: अच्छे वर्षा की आवश्यकता (ज्यादातर 100 से 200 सेमी)
- उदाहरण: धान (चावल), मक्का, ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, मूंगफली, कपास
- मुख्य उत्पादक राज्य:
- धान: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब
- मक्का: कर्नाटक, बिहार, मध्य प्रदेश
- बाजरा: राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात
- सोयाबीन: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र
- कपास: गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना
- उत्पादन व आँकड़े:
- 2020 में चावल उत्पादन लगभग 118 मिलियन टन
- बाजरा, मक्का जैसी मोटे अनाज (coarse cereals) पोषण से भरपूर
- भूमिका:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में अहम योगदान
- कृषि आधारित उद्योगों के लिए कच्चा माल (कपास से वस्त्र, सोयाबीन से तेल)
- उत्पादन बढ़ाने के उपाय:
- बेहतर मानसून पूर्वानुमान, उन्नत बीज किस्में, संकर बीज (hybrid seeds)
- सिंचाई का विस्तार, सूक्ष्म सिंचाई तकनीक
ज़ैद फसलें (Zaid Crops)
- समय: बुवाई: मार्च-अप्रैल, कटाई: जून-जुलाई
- आवश्यक मौसम: गर्मियों में उगाई जाने वाली छोटी अवधि की फसलें, सिंचाई की उपलब्धता जरूरी
- उदाहरण: तरबूज़, खरबूज़, ककड़ी, लौकी, कुछ दलहन व तिलहन
- मुख्य उत्पादक क्षेत्र: उत्तरी व मध्य भारत में जहाँ गर्मियों में सिंचाई उपलब्ध
- उत्पादन व आँकड़े:
- तरबूज़, खरबूज़ जैसी फसलें गर्मियों के बाज़ार में ताज़ा उपज उपलब्ध कराती हैं
- 2021 में तरबूज़, ककड़ी जैसी ज़ैद फसलों में लगभग 10-15% वार्षिक वृद्धि
- भूमिका:
- किसानों को रबी-ख़रीफ़ के बीच अतिरिक्त आय का स्रोत
- शहरी क्षेत्रों में फलों व सब्ज़ियों की गर्मियों में निर्बाध (uninterrupted) आपूर्ति
- उत्पादन बढ़ाने के उपाय:
- सतत सिंचाई, उन्नत बीज, फसल विविधीकरण
- थरमल स्क्रीनिंग (thermal screening), प्लास्टिक माल्चिंग (mulching) जैसी तकनीक
खाद्य फसलें (Food Crops)
- परिभाषा: सीधे भोजन के रूप में उपभोग की जाने वाली फसलें
- उदाहरण: गेहूँ, चावल, मक्का, दालें, सब्ज़ियाँ, फल
- मुख्य उत्पादक राज्य (चावल, गेहूँ, दालों के आधार पर):
- चावल: पश्चिम बंगाल, यूपी
- गेहूँ: पंजाब, हरियाणा, यूपी, मध्य प्रदेश
- दालें: मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश
- उत्पादन व आँकड़े:
- 2023 में भारत की जनसंख्या 1.42 अरब: खाद्य सुरक्षा हेतु प्रचुर मात्रा में खाद्यान्न उत्पादन आवश्यक
- दालों का उत्पादन 2022 में लगभग 27 मिलियन टन
- भूमिका:
- पोषण सुरक्षा, संतुलित आहार
- पीडीएस (PDS) के माध्यम से सब्सिडाइज्ड (subsidized) खाद्यान्न उपलब्धता
- उत्पादन बढ़ाने के उपाय:
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
- गुणवत्तापूर्ण बीज, मृदा स्वास्थ्य सुधार, सिंचाई विस्तार
व्यावसायिक फसलें (Commercial/Cash Crops)
- परिभाषा: व्यापार, निर्यात या उद्योगों को कच्चा माल देने वाली फसलें
- उदाहरण: कपास, गन्ना, जूट, तंबाकू, चाय, कॉफ़ी, रबर, मसाले
- मुख्य उत्पादक राज्य:
- कपास: गुजरात, महाराष्ट्र, तेलंगाना
- गन्ना: उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक
- चाय: असम, पश्चिम बंगाल
- कॉफ़ी: कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु
- जूट: पश्चिम बंगाल
- उत्पादन व आँकड़े:
- 2021 में कपास उत्पादन लगभग 6 मिलियन टन
- भारत चीनी उत्पादन में अग्रणी और चाय व मसालों के बड़े निर्यातक में से एक
- भूमिका:
- निर्यात आय, उद्योगों (टेक्सटाइल, शुगर, मसाले उद्योग) को कच्चा माल
- किसानों की आय में वृद्धि
- उत्पादन बढ़ाने के उपाय:
- कृषि अनुसंधान व उन्नत किस्में
- निर्यात प्रोत्साहन, बाजार संपर्क (market linkage)
शुष्क कृषि (Dry Farming)
- परिभाषा: कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम पानी माँगने वाली या सूखा-रोधी फसलें उगाने की पद्धति
- उदाहरण: बाजरा, ज्वार, चना, अरहर, मूंग
- मुख्य क्षेत्र: राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के सूखा प्रभावित क्षेत्र
- उत्पादन व आँकड़े:
- 2020 में सूक्ष्म सिंचाई व उन्नत बीज प्रयोग से शुष्क कृषि इलाकों में 15-20% उत्पादन वृद्धि
- भूमिका:
- वर्षा पर निर्भर किसान भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं
- मोटे अनाजों से पोषण में सुधार
- उत्पादन बढ़ाने के उपाय:
- जल संरक्षण तकनीक, वर्षा जल संग्रहण (rainwater harvesting)
- सूखा प्रतिरोधी किस्में, मृदा संरक्षण
झूम खेती (Shifting Cultivation)
- परिभाषा: एक क्षेत्र में कुछ समय खेती के बाद उसे छोड़कर नए क्षेत्र में खेती करना
- क्षेत्र: मुख्यतः उत्तर-पूर्वी भारत के आदिवासी बहुल इलाकों (असम, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड)
- चुनौतियाँ:
- वनों की कटाई और भूमि के क्षरण
- जैव विविधता में गिरावट
- उत्पादन व रुझान:
- बढ़ती जागरूकता व सरकारी प्रयासों से झूम खेती का दायरा घटा
- वैकल्पिक कृषि प्रणाली और स्थायी खेती को बढ़ावा
- उत्पादन बढ़ाने/सुधारने के उपाय:
- आदिवासी समुदायों को वैकल्पिक आजीविकाओं एवं स्थायी कृषि प्रशिक्षण
- वनीकरण, मृदा संरक्षण, सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रम
मुख्य सार:
- रबी, ख़रीफ़, ज़ैद के मौसम आधारित चक्र से ले कर खाद्य एवं व्यावसायिक फसलों तक, सभी फसलें भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग हैं।
- सूखा प्रभावित क्षेत्रों के लिए शुष्क कृषि, आदिवासी क्षेत्रों में झूम खेती जैसी विशिष्ट पद्धतियाँ लागू हैं।
- उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्नत बीज, सिंचाई प्रबंधन, MSP, कृषि अनुसंधान, सरकार की विभिन्न योजनाएँ, निर्यात प्रोत्साहन, एवं बाज़ार संपर्क के प्रयास किए जा रहे हैं।
- यह विस्तृत दृष्टिकोण परीक्षा की तैयारी में सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को कवर करने में सहायक होगा।