परिचय: कोशिका विभाजन (Cell Division)
कोशिका विभाजन वह मौलिक जैविक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक जनक कोशिका (parent cell) विभाजित होकर दो या अधिक संतति कोशिकाओं (daughter cells) का निर्माण करती है। यह प्रक्रिया जीवों में वृद्धि, मरम्मत, और प्रजनन के लिए अत्यंत आवश्यक है। कोशिका विभाजन मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है: समसूत्री विभाजन (Mitosis) और अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis)।
कोशिका चक्र (The Cell Cycle)
कोशिका विभाजन एक चक्रीय प्रक्रिया का हिस्सा है जिसे कोशिका चक्र कहते हैं। इसकी दो मुख्य अवस्थाएं हैं:
इंटरफेज (Interphase) – तैयारी की अवस्था
यह कोशिका के जीवन का सबसे लंबा चरण है, जिसमें वह विभाजन के लिए खुद को तैयार करती है। इसके तीन उप-चरण हैं:
- G1 (गैप 1): कोशिका आकार में बढ़ती है और प्रोटीन व अन्य अणुओं का संश्लेषण करती है।
- S (संश्लेषण): कोशिका अपने डीएनए की एक सटीक प्रतिलिपि बनाती है (DNA Replication)।
- G2 (गैप 2): कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक अतिरिक्त प्रोटीन और ऊर्जा का निर्माण करती है।
एम-फेज (M-Phase) – विभाजन की अवस्था
यह वास्तविक विभाजन का चरण है, जिसमें माइटोसिस या मियोसिस होता है।
समसूत्री विभाजन (Mitosis)
यह कायिक कोशिकाओं (somatic cells) में होने वाला विभाजन है। इसका मुख्य उद्देश्य जीवों की वृद्धि करना और क्षतिग्रस्त ऊतकों की मरम्मत करना है। इस प्रक्रिया में, एक द्विगुणित (diploid, 2n) जनक कोशिका विभाजित होकर दो समान द्विगुणित संतति कोशिकाओं का निर्माण करती है।
माइटोसिस की अवस्थाएं
- प्रोफेज (Prophase): क्रोमेटिन संघनित होकर गुणसूत्र (Chromosomes) बनाते हैं। केंद्रक झिल्ली टूटने लगती है।
- मेटाफेज (Metaphase): गुणसूत्र कोशिका के मध्य में एक प्लेट पर पंक्तिबद्ध हो जाते हैं।
- एनाफेज (Anaphase): गुणसूत्रों के जोड़े (sister chromatids) अलग होकर कोशिका के विपरीत ध्रुवों की ओर चले जाते हैं।
- टेलोफेज (Telophase): गुणसूत्र ध्रुवों पर पहुँच जाते हैं, और उनके चारों ओर नई केंद्रक झिल्ली बन जाती है। इसके बाद कोशिका द्रव्य का विभाजन (Cytokinesis) होता है।
अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis)
यह जनन कोशिकाओं (germ cells) में होने वाला विभाजन है, जिसका उद्देश्य लैंगिक प्रजनन के लिए युग्मक (gametes) जैसे शुक्राणु और अंडाणु का निर्माण करना है।
मियोसिस की प्रक्रिया
- इसमें दो चरण होते हैं: मियोसिस-I और मियोसिस-II।
- मियोसिस-I: इसमें समजातीय गुणसूत्रों के जोड़े अलग होते हैं। इसी चरण में जीन विनिमय (Crossing Over) होता है, जिससे आनुवंशिक विविधता उत्पन्न होती है। इसके अंत में दो अगुणित (haploid, n) कोशिकाएं बनती हैं।
- मियोसिस-II: यह माइटोसिस के समान होता है, जिसमें दोनों अगुणित कोशिकाएं फिर से विभाजित होकर कुल चार अगुणित संतति कोशिकाओं का निर्माण करती हैं।
- परिणाम: चार आनुवंशिक रूप से भिन्न अगुणित (n) कोशिकाएं बनती हैं।
माइटोसिस और मियोसिस में मुख्य अंतर
- विभाजन का स्थान: माइटोसिस कायिक कोशिकाओं में होता है, जबकि मियोसिस जनन कोशिकाओं में होता है।
- संतति कोशिकाएं: माइटोसिस में दो समान कोशिकाएं बनती हैं। मियोसिस में चार भिन्न कोशिकाएं बनती हैं।
- गुणसूत्रों की संख्या: माइटोसिस में संतति कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या समान (2n) रहती है। मियोसिस में यह संख्या आधी (n) हो जाती है।
- उद्देश्य: माइटोसिस का उद्देश्य वृद्धि और मरम्मत है। मियोसिस का उद्देश्य युग्मक निर्माण और आनुवंशिक विविधता है।
परीक्षा हेतु महत्वपूर्ण तथ्य
- कोशिका चक्र (Cell Cycle) में दो मुख्य अवस्थाएं होती हैं: इंटरफेज (तैयारी की अवस्था) और एम-फेज (विभाजन की अवस्था)।
- माइटोसिस को समसूत्री विभाजन भी कहते हैं क्योंकि इसमें गुणसूत्रों की संख्या समान रहती है।
- मियोसिस को अर्धसूत्री विभाजन कहते हैं क्योंकि इसमें गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है।
- आनुवंशिक विविधता का मुख्य कारण मियोसिस-I में होने वाला जीन विनिमय (Crossing Over) है।
- कैंसर कोशिकाओं का अनियंत्रित माइटोसिस विभाजन है।