परिचय: हाइगेंस का सिद्धांत
1678 में, क्रिस्टियान हाइगेंस ने प्रकाश की तरंग प्रकृति को समझाने के लिए एक सिद्धांत प्रतिपादित किया। यह सिद्धांत बताता है कि प्रकाश तरंगों के रूप में कैसे फैलता है। इस सिद्धांत को समझने के लिए तरंगाग्र (Wavefront) की अवधारणा महत्वपूर्ण है।
तरंगाग्र: किसी माध्यम में खींचा गया वह काल्पनिक पृष्ठ जिस पर स्थित सभी कण कंपन की समान कला में हों, तरंगाग्र कहलाता है।
हाइगेंस के सिद्धांत की अभिधारणाएं
- प्रथम अभिधारणा: तरंगाग्र पर स्थित प्रत्येक बिंदु एक नए तरंग स्रोत की तरह कार्य करता है, जिससे नई तरंगें निकलती हैं। इन नई तरंगों को द्वितीयक तरंगिकाएं (secondary wavelets) कहते हैं।
- द्वितीय अभिधारणा: ये द्वितीयक तरंगिकाएं माध्यम में सभी दिशाओं में प्रकाश की चाल से फैलती हैं।
- तृतीय अभिधारणा: किसी भी क्षण पर, इन सभी द्वितीयक तरंगिकाओं को स्पर्श करता हुआ आगे की दिशा में खींचा गया उभयनिष्ठ पृष्ठ (common envelope) उस क्षण पर नए तरंगाग्र की स्थिति को दर्शाता है।
सिद्धांत के अनुप्रयोग
1. परावर्तन की व्याख्या (Explanation of Reflection)
हाइगेंस के सिद्धांत का उपयोग करके परावर्तन के दोनों नियमों को सिद्ध किया जा सकता है। जब एक समतल तरंगाग्र किसी परावर्तक सतह पर आपतित होता है, तो सतह का प्रत्येक बिंदु एक द्वितीयक तरंगिका का स्रोत बन जाता है। इन सभी तरंगिकाओं का उभयनिष्ठ पृष्ठ परावर्तित तरंगाग्र बनाता है। ज्यामिति का उपयोग करके यह सिद्ध किया जा सकता है कि:
- आपतन कोण (i) = परावर्तन कोण (r)
- आपतित तरंगाग्र, परावर्तित तरंगाग्र और अभिलंब सभी एक ही तल में होते हैं।
2. अपवर्तन की व्याख्या (Explanation of Refraction)
इसी प्रकार, अपवर्तन के नियमों को भी सिद्ध किया जा सकता है। जब एक तरंगाग्र एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है, तो दोनों माध्यमों में प्रकाश की चाल भिन्न होने के कारण वह मुड़ जाता है। सतह का प्रत्येक बिंदु द्वितीयक तरंगिकाओं का स्रोत बनता है जो दूसरे माध्यम में एक नई चाल से चलती हैं। इन तरंगिकाओं का उभयनिष्ठ पृष्ठ अपवर्तित तरंगाग्र बनाता है। इससे स्नेल के नियम को व्युत्पन्न किया जा सकता है:
- sin i / sin r = v₁ / v₂ = n₂ / n₁